फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। होली से पहले पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में रंगभरी एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मां पार्वती से विवाह के बाद फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी पर गौना लेकर काशी आए थे। इस मौके पर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में बड़ा आयोजन होता है। मान्यता है कि इस दिन बाबा विश्वनाथ खुद भक्तों के साथ होली खेलते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी के दिन रजत पालकी में राजशाही पगड़ी बांधे बाबा विश्वनाथ की बारात सजती है। उनके साथ गौरी जी को भी सजाया जाता है और उनके साथ बालरूप गणेश भी रहते हैं। इसी दौरान शिवभक्त भभूत की होली खेलते हैं। इसके बाद शोभायात्रा निकलती है। शोभायात्रा के बाद जब प्रतिमाएं वापस पहुंचती हैं, तो उन्हें गर्भगृह में स्थापित किया जाता है और विशेष आरती की जाती है।