सुरेन्द्र जैन धरसींवा रायपुर
मंगलवार को अपने अनमोल वचनों में परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री108 विद्यासागरजी महामुनिराज ने कहा कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक होता है ।
दिगंबर जैन तीर्थ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में ससंघ विराजमान आचार्य श्री ने कहा कि बचपन में हमने विद्यालय में एक कहानी पढ़ी थी कि एक कछुवा रहता जो बहुत धीरे – धीरे रेंगता है और एक खरगोश रहता है जो बहुत तेज भागता है | खरगोश के आगे के दो हाथ कहो या पैर छोटे होते हैं और पीछे के पैर बड़े होते हैं इसलिए ढलान में वह लुडकता है और जब ऊपर चढ़ना रहता है तो वह छलांग लगाता है जिससे उसकी रफतार तेज हो जाती है | एक दिन दोनों के बिच कुछ संवाद होता है जिसमे वे एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं | खरगोश तेज भागता है तेज होना सही नहीं माना जाता है तेज बोलना, तेज चलना और तेज होना आदि | खरगोश को मान होता है और वह मान लेता है कि वह यह प्रतिस्पर्धा आसानी से जीत जायेगा | मान होना और मान लेना शब्द समान से लगते हैं | खरगोश तेज रफतार से लक्ष्य कि ओर दौड़ता है किन्तु बीच – बीच में आराम भी करता रहता है | लक्ष्य के बहुत करीब पहुचकर वह एक पेड़ के निचे आराम से सो जाता है कि कुछ देर आराम कर लेता हूँ अभी कछुवा थोडा दूर है | दूसरी तरफ कछुवा धीरे – धीरे रेंगता हुआ बिना कही रुके अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है और प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करता है | यह कहानी सभी के लिये प्रेरणा दायक है | इसी प्रकार हमें भी अपने कार्य को चाहे वह दादा हो, पुत्र हो या नाती हो जो भी काम लिया है या मिला है उसे लगन से, रूचि पूर्वक, उत्साहित होकर, निर्दोष रूप से करना चाहिये जिससे कार्य में आनंद आये और कार्य समय में पूर्ण हो सके और जो इस कार्य क्षेत्र में पारंगत है उन्हें हमेशा स्मरण में रखना चाहिये जिससे हम भी उनकी तरह अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर सके | इसी प्रकार मोक्षमार्ग में भगवान को हम हमेशा अपने स्मरण में रखते हैं और उनका गुणगान करते हैं कि हम भी उनके जैसे बन सके | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी मयूरी दीदी प्रतिभास्थली जबलपुर परिवार को प्राप्त हुआ