सिंहासन का महत्वाकांक्षी राजा भोज 29वीं बार सिंहासन पर बैठने की कोशिश करता है। वह जैसे ही सिंहासन पर बैठने जाता है, तभी 29वीं पुतली मानवती उसे रोकती है और राजा विक्रमादित्य की एक कहानी सुनाने लगती है। इस बार कहानी राजा की बहन की शादी की है। आइए जानते हैं कि इस किस्से में 29वीं पुतली ने क्या सुनाया
एक बार की बात है, राजा विक्रमादित्य भेष बदलकर राज्य में घूम रहे थे। वो चलते-चलते नदी किनारे पहुंचे और वहां चुपचाप खड़े हो गए। अचानक उन्हें बचाओ-बचाओ की आवाज सुनाई दी। वह तुरंत वहां पहुंचे जहां से आवाज आ रही थी। वहां उन्हें नदी की तेज धारा में एक युवक-युवती फंसे दिखे। वो दोनों किनारे आने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन तेज धारा की वजह से असफल हो जाते थे। यह देख राजा विक्रमादित्य फौरन नदी में कूद गए और दोनों को सकुशल बाहर निकाल लिया। नदी से बाहर निकलने के बाद युवक ने बताया, “हम दोनों परिवार के साथ नौका से कहीं जा रहे थे। बीच भंवर में हमारी नाव फंस गई। वहां से निकलने की हमने बहुत कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। हमारे परिवार के बाकी सदस्य उस भंवर में ही फंसकर मर गए, बस हम दोनों ही किसी तरह तैरकर यहां तक पहुंचे थे।”
राजा विक्रमादित्य ने दोनों से उनका परिचय पूछा। युवक ने बताया, “हम दोनों भाई-बहन हैं और दूर एक देश के रहने वाले हैं।” राजा ने कहा, “चिंता मत करो, आप दोनों को सकुशल आपके देश भेज दिया जाएगा। फिलहाल आप दोनों हमारे साथ चलो।” यह कहकर राजा विक्रमादित्य दोनों को अपने महल की ओर ले जाने लगे। राजमहल के पास जब प्रहरियों ने राजा को प्रणाम किया, तो युवक-युवती को मालूम हुआ कि अपनी जान दांव पर लगाकर उन्हें बचाने वाले खुद महाराजाधिराज थे।
महल पहुंचकर राजा ने नौकरों को बुलाया और दोनों को सारी सुविधाओं के साथ ठहराने को कहा। अब दोनों का मन राजा के प्रति और आदरभाव से भर गया।
वह युवक बहन की शादी के लिए काफी परेशान रहता था, क्योंकि उसकी बहन राजकुमारी की तरह सुंदर थी। इसलिए, वह चाहता था कि उसकी शादी किसी राजा से हो, लेकिन खराब आर्थिक हालत की वजह से उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। अब वह राजा विक्रमादित्य से बहन से शादी का प्रस्ताव रखने की सोच रहा था। यह सोचकर उसने बहन को ठीक से तैयार कराया और उसे लेकर राजा से मिलने राजमहल में गया। राजमहल में पहुंचने पर राजा विक्रम ने उससे हालचाल पूछा और कहा कि दोनों के जाने का प्रबंध कर दिया गया है। युवक ने राजा से कहा, “महाराज, आपने जो उपकार किए हैं, उसे कभी नहीं भूलूंगा।” इसके बाद उसने राजा को छोटा-सा तोहफा देने की बात कहीं। राजा ने मुस्कुराते हुए इसकी अनुमति दे दी।
राजा को खुश देखकर उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने कहा, “मैं अपनी बहन को आपको उपहार में देना चाहता हूं। राजा विक्रम ने कहा, “यह उपहार मुझे स्वीकार है।” यह सुनकर युवक को लगा कि राजा उसकी बहन से शादी करेंगे, लेकिन तभी राजा ने कहा, “आज से तुम्हारी बहन राजा विक्रमादित्य की बहन है और मैं अच्छा-सा वर देखकर इसका विवाह पूरे धूमधाम से करूंगा।” राजा की यह बात सुनकर युवक उनका मुंह ताकता रह गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी बहन की सुंदरता को अनदेखा करके राजा उसे अपनी बहन बना लेंगे।
कुछ देर बाद युवक ने राजा से कहा, “उदयगिरी का राजकुमार उदयन मेरी बहन की खूबसूरती पर मोहित है और वह उससे शादी करना चाहता है।” यह सुनकर राजा विक्रमादित्य ने तुरंत एक पंडित को बुलाया और उसे बहुत-सा धन देकर उदयगिरी राज्य शादी का प्रस्ताव भेजा”, लेकिन पंडित उसी शाम राजमहल लौटा आया और बोला कि रास्ते में कुछ डाकुओं ने सारा धन लूट लिया। यह सुनकर राजा हैरान हुए और सोचने लगे कि उनके शासन में डाकू कैसे हो सकते हैं।
इस बार उन्होंने पंडित को अपने कुछ घुड़सवारों के साथ धन देकर भेजा। साथ ही उसी रात राजा विक्रमादित्य खुद भेष बदलकर डाकुओं का पता लगाने के लिए निकल पड़े। वह उस जगह पहुंचे जहां पंडित को लूटा गया था। वहां उन्हें 4 आदमी बैठे दिखे। राजा समझ गए कि ये वही लुटेरे हैं, जबकि उन चारों ने राजा को कोई गुप्तचर समझा। राजा ने उनसे कहा, “डरो मत, मैं भी तुम्हारी तरह चोर ही हूं।” यह सुन चारों ने कहा कि वे चोर नहीं बल्कि इज्जतदार लोग हैं। राजा ने कहा, “बहाने मत बनाओ, मुझे भी अपने दल में शामिल कर लो।” इसके बाद चारों ने अपनी-अपनी खूबियां बताई। एक चोरी का शुभ मुहूर्त निकालता था, दूसरा परिंदे व जानवरों की भाषा समझता था, तीसरा गायब होने की कला जानता था और चौथा कठिन से कठिन यातना झेल सकता था। ये सब सुनने के बाद राजा विक्रमादित्य ने उनका विश्वास जीतने के लिए कहा कि मैं कहीं भी छिपा हुआ धन देख सकता हूं। जब चारों ने ये विशेषता सुनी, तो उन्होंने राजा को अपने दल में शामिल कर लिया।
इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने चारों के साथ मिलकर अपने ही महल में चोरी करने की साजिश बनाई। वह चोरों को उस जगह पर लेकर गए, जहां शाही खजाने का थोड़ा हिस्सा छिपा हुआ था। चोरों ने सारा माल बटोर लिया और निकलने लगे, लेकिन तभी सुरक्षाकर्मियों ने चोरों को पकड़ लिया। अगली सुबह चारों को राजा दरबार लाया गया। वो डर से कांप रहे थे। उन्होंने अपने साथी को सिंहासन पर देखा, तो दंग रह गए। वो सभी सजा की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन राजा ने उन्हें सजा न देकर माफ कर दिया और उनसे फिर से चोरी न करने और अपने गुणों का इस्तेमाल दूसरों की भलाई के लिए करने का वचन लिया। चारों ने भी अपने राजा की बात मानी और अच्छे इंसान की तरह रहने लगे। बाद में राजा ने उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया। वहीं, राजा उदयन ने भी विक्रमादित्य की मुंहबोली बहन से शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी धूमधाम से की गई।
कहानी सुनाने के बाद 29वीं पुतली मानवती ने राजा भोज से कहा कि अगर तुम भी राजा विक्रमादित्य की तरह समझदार, साहसी और निर्मल स्वभाव के हो, तो ही इस सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ना। इतना कहकर 29वीं पुतली मानवती वहां से उड़ जाती है और राजा भोज सोच में पड़ जाते हैं।
कहानी से सीख :
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें अपने अंदर सेवा की भावना रखनी चाहिए और समय आने पर चतुराई से काम लेना चाहिए।