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करियर की चिंता छोड़ छात्र सुनें मन की प्लान बी भी रखें तैयार

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 ग्वालियर। 12 वीं कक्षा में पास होने के बाद विद्यार्थियों को यही चिंता रहती है कि अब आगे क्या करें, कौन सा ऐसा कोर्स चुनें जो उन्हें चमकता हुआ भविष्य दे सके। इस चिंता से सिर्फ छात्र-छात्राएं ही नहीं, अभिभावक भी परेशान रहते हैं। विद्यार्थी रिश्तेदारों और दोस्तों से भी पूछते हैं कि अब आगे क्या करूं? किस फील्ड में अपना करियर बनाऊं? मेरे लिए क्या ज्यादा सही रहेगा? ऐसे में बच्चों के सामने कई विकल्प तो आ जाते हैं, लेकिन उन्हें गाइडेंस देने के नाम पर इतना कंफ्यूज कर दिया जाता है और वह निर्णय नहीं ले पाते। परिणाम स्वरूप बच्चे पर दबाव बनता है और वह डिप्रेशन की स्थिति में जाने लगते हैं। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब बच्चा नीट-जेईई जैसी परीक्षा में किसी वजह से उत्तीर्ण नहीं हो पाता है। अगर आपके साथ भी ऐसी ही समस्या है तो यह खबर आपके लिए है..

इस समस्या से कैसे निजात पाई जाए? छात्र कैसे एक ऐसा करियर का चुनाव करें, जिसमें उसका भविष्य सुरक्षित रहे और बेहतर परिणाम मिलें। नईदुनिया रिपोर्टर विक्रम सिंह तोमर ने शहर के करियर काउंसलर, मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद् से छात्रों की समस्या को लेकर चर्चा की। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- करियर के मामले में अभिभावक बच्चों पर विचार नहीं थोपें, उसकी रूचि के अनुसार भविष्य तय करें। साथ ही करियर को लेकर प्लान बी भी तैयार रखें।

ऐसे करें करियर का चयन

1. सिर्फ किसी की देखा देखी या किसी से राय लेकर करियर का चुनाव न करें, छात्र की रुचि पर विशेष गौर करें।

2. चिकित्सा एवं शिक्षा के क्षेत्र में करियर की अपार संभावनाएं हैं, यदि बच्चे की रुचि पढ़ने-पढ़ाने और मानव सेवा में हो तो यह एक बेहतर विकल्प है।

3. अगर छात्र देश और समाज के प्रति सेवा भाव और जिम्मेदारी का एहसास करता है तो उसके लिए सिविल सेवा में जाना सबसे अच्छा विकल्प है।

4. तकनीक के क्षेत्र में रुचि रखने वाले छात्र अपनी रुचि के आधार पर आइटीआइ, कंप्यूटर जैसे इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं।

5. यह जरूरी नहीं कि परंपरागत कोर्स की आेर ही रुख कर भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है। बच्चे अपने शौक को भी करियर चुन सकते हैं।

ऐसे जाने बच्चे के लिए क्या है बेहतर

– हर विद्यार्थी में कुछ न कुछ खास बात जरूर होती है, जिसका आधार रुचि और गतिविधि होता है। इसकी पहचान बचपन से ही हो जाती है। इसे एप्टिट्यूड कहते हैं। बच्चे का एप्टिट्यूड ही बताता है कि उसके लिए बतौर करियर क्या ठीक रहेगा ।

– अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता के जो सपने पूरे नहीं हो सके हों वह उन्हें अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। वह बच्चे की रुचि पर ध्यान नहीं देते हैं। ऐसा न करें, जो बच्चा करना चाहे उस ओर बेहतर प्लानिंग करें।

– बच्चे की मनोस्थिति को समझना सबसे जरूरी है। इसके लिए स्वजन कोशिश करें कि बच्चे के साथ करियर को लेकर एक हेल्दी डिस्कशन हो सके। इससे वह अपने मन की बात स्वजन के सामने बेहिचक रख सके।

– बच्चा किसी प्रतियोगी परीक्षा में पास नहीं हुआ है तो उसे हतोत्साहित नहीं करना चाहिए, ना ही उसकी तुलना किसी और छात्र से करें। उसे सब्र कर दोबारा प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करें या फिर फील्ड बदलने में बच्चे की सहायता करें।

– बच्चे की काबिलियत और क्षमता के आधार पर उसका आंकलन करें और उसकी ऊर्जा का प्रयोग सही दिशा में कर उसे एक बेहतर करियर चुनने में मदद करें। विशेष तौर पर ध्यान रखें कि जो लोग मुफ्त के सलाहकार बनते हैं उनसे सावधान ही रहें।

डिप्रेशन और एंग्जाइटी से बच्चों को रखें दूर बायोलाजिकल फंग्शन होते हैं डिप्रेशन और एंग्जायटी। इसके लक्षण में बच्चे का अकेला रहना, खाने-पीने में अनियमितता, बाहरी दुनिया से कट जाना, नींद कम आना, रोना या दुखी होना और सुसाइड आइडिया आना शामिल हैं। ऐसा कुछ भी बदलाव बच्चे में दिखे तो उसकी काउंसलिंग करवाएं।

– डा. कमलेश उदैनिया मनोचिकित्सक

करियर में च्प्लान बीज् होना बेहद जरूरी जब भी बच्चे के भविष्य की प्लानिंग करें तो उसकी रुचि का ध्यान रखें। साथ ही कक्षा 10वीं में उसके करियर की रूप रेखा तय कर लें, 11वीं तक उस प्लान का एक विकल्प भी तैयार रखें। यदि तय करियर चयन में समस्या हो तो तुरंत प्लान बी को क्रियान्वित किया जा सका है। ध्यान रखें प्लान बी भी बच्चे की रुचि अनुसार ही चुना जाए।

रिचा वर्मा, शिक्षाविद्

छात्रों में बढ़ रहा तनाव अक्सर ऐसा होता है कि 12वीं का रिजल्ट खराब आने पर छात्रों में तनाव बढ़ने लगता है। ऐसा इस कारण होता है, क्योंकि बच्चे पर कोई स्पष्ट दिशा नहीं होती। स्वजन और समाज के दबाव के चलते कई बार ऐसे कोर्स का चयन करना पड़ जाता है, जिनमें उनकी रुचि नहीं होती है। ऐसे में स्वजन की जिम्मेदारी है कि बच्चे को काउंसलिंग के लिए ले जाएं।

– श्याम मोहन शर्मा करियर काउंसलर

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