जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार की नीतीश कुमार सरकार को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जातीय जनगणना पर पटना हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना रोक लगा दी थी।
पटना हाई कोर्ट के 4 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में बिहार सरकार ने कहा था कि जाति जनगणना पर रोक से पूरी कवायद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि जाति आधारित डेटा का संग्रह अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक जनादेश है।
संविधान का अनुच्छेद 15 कहता कि राज्य धर्म, नस्ल, जाति, लिग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा। वहीं, अनुच्छेद 16 कहता है कि राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में नियोजन या नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे।
याचिका में बिहार सरकार ने दलील दी थी कि राज्य ने कुछ जिलों में जातिगत जनगणना का 80 प्रतिशत से अधिक सर्वे कार्य पूरा कर लिया है और 10 प्रतिशत से भी कम काम बचा हुआ है। पूरा तंत्र जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। विवाद में अंतिम निर्णय आने तक इस अभ्यास को पूरा करने से कोई नुकसान नहीं होगा।
लालू ने मोदी सरकार पर साधा था निशाना
इससे पहले राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार पर ताजा तंज कसा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट साझा शेयर करते हुए ट्वीट किया, गंडक नदी में पाए जाने वाले मगरमच्छों की गिनती हो सकती है, लेकिन इन्सानों की नहीं।
इसके जवाब में बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री व राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि सामान्य वर्ग के गरीबों (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता रहेगा। नरेन्द्र मोदी सरकार के इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम मुहर लगाते हुए इसके विरुद्ध दायर याचिकाएं खारिज कर दीं। ऐसा न्यायालय में मजबूती से पक्ष रखने के कारण हुआ। दूसरी तरफ बिहार सरकार की कमजोर पैरवी के कारण जाति आधारित गणना पर रोक लग गई।
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