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भारतीय संस्कृति को समझना है ,तो संस्कृत को जानना होगा-जगदगुरू रामभद्राचार्य जी महाराज

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देवेश पाण्डेय सिलवानी रायसेन

सिलवानी के रघुकुल फार्म हाउस साईं खेड़ा रोड पर ,शिववरण सिंह रघुवंशी,प्रशांत सिंह रघुवंशी के द्वारा उनके गुरुजी डाँ. रामाधार शर्मा जी की पुण्य स्मृति में ,श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का आयोजन जगद्गुरु रामानंदाचार्य, परम पूज्य स्वामी रामभद्राचार्य जी के कथा व्यासत्व में किया जा रहा है। चौथे दिवस की कथा के अवसर पर, परम पूज्य सद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज ने सभा को संबोधित करते हुए, कहा कि हमारी संस्कृति संसार में श्रेष्ठतम संस्कृति है। इस संस्कृति को समझना है, तो सबसे पहले संस्कृत को जानना होगा। हमारा यह प्रयास होना चाहिए, कि हम अपने बच्चों को संपूर्ण धार्मिक साहित्य से परिचित करवाएं ,उनके अंदर संस्कार का विधिवत रोपण करें। जिससे कि बालक अपने जीवन को धर्म के आधार पर पूरा कर सकें। जबकि बच्चे पाश्चात्य संस्कृति में, कॉन्वेंट संस्कृति में अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके, धर्म के मूल तत्वों से अलग हो रहे हैं। जिससे कि उनके मन में धर्म का गौरव, भारतीयता का मान एवं संस्कृति के प्रति जो लगाव होना चाहिए ,वह दिखाई नहीं दे रहा।

माता-पिता का परम कर्तव्य है, कि अपने बच्चों को संस्कृत और संस्कृति की शिक्षा देकर ,सनातन परंपरा में पूरी तरह से दीक्षा संस्कारित करके, उनके जीवन में संस्कृत साहित्य का समावेश करें। तभी हमारी धर्म ध्वजा बहुत दृढ़ता के साथ, संसार में उच्च रहेगी। आगे जगतगुरु जी ने कहा कि माता पिता का कर्तव्य होना चाहिए, कि एक बहुत श्रेष्ठ प्रबंधन के साथ, अपने पुत्र पुत्रियों का पालन पोषण करें । जिसमें उन्हें स्कूली शिक्षा जो कि उन्हें रोजगार प्रदान करती है, वह तो दिलवाए लेकिन धार्मिक शिक्षा भी उनके लिए अनिवार्य रूप से दिलवाए, जिससे कि उनके जीवन में अपने धर्म का ज्ञान हो सके। अपने कर्तव्यों का भान हो सके। और राष्ट्रप्रेम का संचार हो सके। तभी उनका जीवन श्रेष्ठ बनेगा। अज्ञानतावस कोई भी युवा बालक बालिका किसी दूसरे धर्म की ओर बिना जाने समझे आकर्षित हो जाता है। जो कि दुखदाई है ,बिना किसी दूसरे के धर्म संस्कृति को जाने समझे, उसको स्वीकार करना अज्ञानता का कारण है। वर्तमान में सनातन के ऊपर लोग प्रहार करने में लगे हैं, लेकिन उसकी रक्षा करना भी हमारा ही कर्तव्य है, तो हमको आश्रय लेना होगा संस्कृत भाषा, धर्म संस्कृति ,मूल्य और साहित्य का । जिसमें वेद, पुराण, उपनिषद एवं अनेक साहित्य से परिपूर्ण हमारी निधियाँ हैं।उसका भली-भांति शिक्षण दायित्व निभाना पड़ेगा । तभी राष्ट्र के प्रति, धर्म के प्रति, युवाओं में प्रेम और समर्पण जागृत होगा। माता पिता और समाज स्तर पर इस कार्य को बड़ी कुशलता के साथ करने की आवश्यकता है। आगे जगत गुरु जी ने कहा कि संसार में जब अपने भक्तों को पीड़ा में भगवान देखते हैं, तो वह उनको बचाने के लिए विभिन्न स्वरूपों में प्रकट हो जाते हैं। उन्होंने बड़ी करुण कथा के रूप में उत्तरा के गर्भ की रक्षा भगवान के द्वारा की गई थी, उसकी मार्मिक कथा का वर्णन करते हुए कहा कि, उत्तरा वह महानतम महिला हैं, जिन के गर्भ में भगवान श्री कृष्ण इसलिए प्रकट हुए थे, क्योंकि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग उनके गर्भ में पल रहे पुत्र परीक्षित की हत्या के लिए कर दिया था ।उस ब्रह्मास्त्र की पीड़ा से उत्तरा जी को भगवान ने मुक्त करके उत्तरा को भी यह गौरव प्रदान किया कि, उत्तरा भगवान की बेटी के रूप में भी जानी जाती हैं, और भगवान जब उनके गर्भ में प्रवेश कर गए तो ,उत्तरा उनके लिए मां के तुल्य भी हो गईं।जगत गुरु जी ने करुणामई इस कथा को सुनाते हुए कहा कि, उत्तरा वह अनुभूति करती हैं कि भगवान जब उनके गर्भ में प्रकट होते हैं ,तो उन्हें मातृत्व के रूप में भी सम्मान देकर, उनके पुत्र परीक्षित की रक्षा हुई और भगवान ने उत्तरा को बहुत सम्माननीय माता के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान कर दी आगे जगत गुरु जी ने कहा कि यह संसार हमारा नहीं है, यह संसार जगत पिता का है और जगत पिता नारायण जो सभी के पालनहारे हैं ,वह इस संसार को अपने आधार पर संचालित करते हैं एवं जो उनका भक्त है ,उसकी रक्षा तो करते ही हैं, लेकिन प्रत्येक सज्जन व्यक्ति की रक्षा भगवान करते हैं, जो सद मार्ग पर चल रहा है, जो अपने जीवन में बहुत अनुशासन और मर्यादा के अनुसार जीवन का निर्वाह करता है। उसकी रक्षा भी भगवान स्वयं करते हैं। इसीलिए अनेक दुर्दांत दैत्यों का अत्याचार इस धरा पर बढ़ गया तो, भगवान की करुणा जागृत हुई और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के रूप में देवकी जी और वसुदेव जी को निमित्त बनाकर, इस संसार में अवतार लिया। जिससे कि सज्जनों की रक्षा की जा सके। आगे महाराज श्री ने कहा कि इसी प्रकार वर्तमान में धर्म के ऊपर संकट यदि आएगा तो ,भगवान किसी न किसी रूप में प्रकट होकर, उस संकट को दूर कर देंगे। भगवान सनातन की रक्षा करने के लिए ,अनेक प्रकल्प को प्रकट करने की क्षमता रखते हैं। जब जब हमारे धर्म और संस्कृति पर प्रहार हुए हैं, अनेक परिस्थितियों में भगवान ने ऐसी परिस्थितियां स्वत: प्रकट कर दी हैं, जिससे कि धर्म और संस्कृति की रक्षा हुई है। यह धर्म और संस्कृति जगत की सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में से एक है। लोग कितना भी प्रयास करें कि, हम सनातन संस्कृति को नष्ट कर देगें,लेकिन यह संस्कृति नष्ट होने वाली नहीं है । यह संस्कृति मानव मूल्यों की रक्षा के लिए है ,मानवता की सुरक्षा के लिए है। और हमारा जो ध्येय रहा है कि सभी लोग सुखी रहें,सभी लोग निरोगी हों, कोई कष्ट में ना रहे।

संपूर्ण विश्व हमारा परिवार है, इस बात को लेकर हम लोग चलते हैं। हम किसी को कष्ट नहीं देते हैं ।तो प्रयास हमारा यही होना चाहिए कि, अन्य लोग भी हमारी संस्कृति को समझने का प्रयास करें। बिना समझे झूठे आरोप लगाना बिल्कुल उचित नहीं है ।आगे जगत गुरु जी ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होना बहुत अनिवार्य है ।युवाओं को संबोधित करते हुए महाराज श्री ने कहा कि युवा अपने जीवन में समय का दुरुपयोग बहुत कर रहे हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए ,कहा कि मोबाइल में जो अनावश्यक चित्र संदेश हैं, उनको देखकर युवाओं की मनोदशा बदलती है। इसलिए ऐसे अनावश्यक संदेशों से दूर होकर ,अपने आत्मबल में वृद्धि करें। हो सके उन्होंने कहा कि तकनीकी ज्ञान सकारात्मक होना चाहिए और राष्ट्र निर्माण में धर्म की सेवा में, उस तकनीकी का उपयोग होना चाहिए अंग्रेजी भाषा को जानना ठीक है, विश्व परिदृश्य में हमारे संस्कारों को प्रकट करने की एक भाषा अंग्रेजी हो सकती है। लेकिन हमारी आत्मा की भाषा हमारी निज भाषा है। जिसका गौरव हम को बढ़ाना अनिवार्य है। बच्चों को विदेशी भाषा पढ़ाओ लेकिन ,अपनी भाषा उनको आत्मसात करवा दो। जिससे कि उनका व्यक्तित्व प्रखर हो सके । अखिल भारतीय व्यास संघ के प्रदेशाध्यक्ष अरविंद शास्त्री जी ने भी अपने प्रवचन के माध्यम से बहुत मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया ।

कथा का संचालन डॉक्टर बृजेश दीक्षित जबलपुर ने किया। कथा के प्रारंभ में पंडित रामकृपाल शर्मा एवं शिववरण सिंह रघुवंशी ,प्रशांत सिंह रघुवंशी ने पुराण पूजन किया। क्षेत्रीय विधायक रामपाल सिंह ने पूरे समय उपस्थित रहकर ,श्रीमद् भागवत कथा श्रवण की। कथा का विश्राम 13 मई को होगा, कथा समय दोपहर 2:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक है ।कथा के आयोजक रघुवंशी परिवार ने धर्म अनुरागी सज्जनों से , माताओं बहनों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर ,कथा श्रवण करने का आग्रह किया है।

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