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आखिर कांग्रेस के हुए नंदकुमार साय-अरुण पटेल

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आलेख
अरुण पटेल

पूर्व सांसद भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता तथा अविभाजित मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे नंदकुमार साय ने धीरे से भाजपा को जोर का झटका देते हुए पार्टी छोड़ने के दूसरे दिन ही कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस प्रकार नंदकुमार साय अब उस कांग्रेस के हो गए जिससे उन्होंने एक आदिवासी नेता के रुप में अभी तक न केवल संघर्ष किया बल्कि 2003 के चुनाव में अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ताच्युत करने में अहम् भूमिका अदा की थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार एक मई को कांग्रेस की सदस्यता साय को दिलाई। इस अवसर पर राजीव भवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, वन मंत्री मोहम्मद अकबर, प्रेमसाय सिंह टेकाम, अनिला भेड़िया, सत्यनारायण शर्मा सहित कई नेता मौजूद थे। साय के राजीव भवन पहुंचने पर उनका बैंड बाजे के साथ स्वागत किया गया और फटाखे भी फोड़े गये। कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता साय के प्रवेश करते ही झूमते हुए नजर आये। बकौल नंदकुमार साय उन्हें लम्बे समय से पार्टी में षडयंत्रपूर्वक किनारे किया जा रहा था। एक

दिन पूर्व अपने वीडियो में उन्होंने पार्टी के लिए किए गए अपने योगदान और षडयंत्रपूर्वक किनारे किए जाने का विस्तृत ब्यौरा देते हुए कहा कि आज मैं पार्टी छोड़ते हुए भयभीत, भयाक्रान्त और व्यथित हूं। नंदकुमार साय भाजपा के उन कुछ गिने हुए नेताओं में रहे हैं जो छत्तीसगढ़ होने के बावजूद अविभाजित मध्यप्रदेश में भी पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। छत्तीसगढ़ में जनसंघ काल से लेकर भाजपा तक पार्टी का आधार स्तम्भ रहे लखीराम अग्रवाल के अति विश्वासपात्र लोगों में नंदकुमार की गिनती होती थी और वे दिलीप सिंह जूदेव के भी विश्वासपात्र रहे हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा में वह भाजपा के पहले नेता प्रतिपक्ष थे और बाद में भी वे पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उनका महत्व इसी से समझा जा सकता है कि वे तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रहे। जब छत्तीसगढ़ में इसी साल के अन्त में विधानसभा चुनाव होना है ऐसी परिस्थितियों में भाजपा को नंदकुमार ने ऐसा झटका दिया है कि उसे पहले अपने आपको और चुस्त दुरुस्त करने तथा आदिवासी अंचलों में होने वाले नुकसान की भरपाई करना होगी। नंदकुमार साय भाजपा के एक बड़े आदिवासी नेता थे और उन्होंने पार्टी पर आरोप लगाते हुए उसे न केवल छोड़ा बल्कि सत्ताधारी दल कांग्रेस में जाकर उसे और मजबूत करने का प्रयास किया। वैसे भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस काफी मजबूत है और भाजपा विधायकों की संख्या डेढ़ दर्जन से भी कम है।

उन्होंने पार्टी छोड़ते हुए भाजपा नेताओं पर उनकी छवि धूमिल करने का आरोप लगाया है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को जो इस्तीफे का पत्र उन्होंने दिया है उसमें भारतीय जनता पार्टी के गठन और अस्तित्व में आने के प्रारंभ से पार्टी छोड़ने तक का विस्तृत ब्यौरा दिया है। उन्होंने कहा है कि विभिन्न महत्वपूर्ण पदों का जो उत्तरदायित्व व जिम्मेदारी मुझे दी गयी उसे पूरे समर्पण एवं कर्तव्यपरायणता के साथ मैंने अपने उत्तरदायित्व एवं पदों का निर्वहन किया है जिसके लिए मैं पार्टी का आभार व्यक्त करता हूं। पिछले कुछ वर्षों से भारतीय जनता पार्टी में मेरी छवि धूमिल करने के उद्देष्य से मेरे विरुद्ध अपनी ही पार्टी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के द्वारा षडयंत्रपूर्वक मिथ्या आरोप और अन्य गतिविधियों द्वारा लगातार मेरी गरिमा को ठेस पहुंचाई जा रही है, जिससे मैं अपने आपको अत्यंत आहत महसूस कर रहा हूं। जिस प्रकार कर्नाटक में एक के बाद एक बड़े नेता कांग्रेस में जा रहे हैं ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ में नंदकुमार का भाजपा का साथ छोड़ना और कांग्रेस में जाना अपने आप में काफी कुछ कह जाता है।

लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार है।

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