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विदेश में राहुल के बयानों से उनकी छवि सुधरेगी या खराब होगी?- अजय बोकिल

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आलेख
अजय बोकिल

 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल में ब्रिटेन में कई कार्यक्रमों में भाग लिया। पहले उन्होंने ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ में छात्रों को संबोधित किया। फिर उन्होंने ‘इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन’ के कार्यक्रम में अपनी बात कही। साथ ही वहां ‘हाउस ऑफ़ कॉमन्स’ के सभागार में विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद वीरेंदर शर्मा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल में ब्रिटेन में कई कार्यक्रमों में भाग लिया।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल में ब्रिटेन में कई कार्यक्रमों में भाग लिया।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान जिस तरह भारत में सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ( आरएसएस) पर तीखे हमले किए हैं, उसका देश में राजनीतिक संदेश यही है कि हमारे यहां अब राजनीतिक सौहार्द को तिलांजलि दी जा चुकी है। इससे भी अहम सवाल यह है कि राहुल के इन तेवरों से खुद उन्हें और उनकी पार्टी कांग्रेस को कितना लाभ होगा या उल्टे घाटा ही होगा? राजनीतिक प्रेक्षक इस बात का भी गहराई से आकलन कर रहे हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा से राहुल की गंभीर नेता की जो छवि बनने लगी थी, उनका नया किरदार उसे और मजबूत बनाएगा या फिर चार महीने की मेहनत पर पानी फिरने के आसार है?

विदेशी धरती पर क्या बोले राहुल?
भाजपा और संघ समर्थकों के अक्सर निशाने पर रहने वाले राहुल गांधी ने पहली बार दोनों के खिलाफ बहुत जमकर रिएक्ट किया है और वो भी विदेशी धरती पर। अमूमन स्वदेश में राजनेता एक दूसरे पर कितना ही कीचड़ उछालें, लेकिन विदेश में ऐसी कोई भी बात कहने से बचते हैं या फिर इशारों में कहते रहे हैं कि ताकि देश की छवि को धक्का न लगे।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हाल में ब्रिटेन में कई कार्यक्रमों में भाग लिया। पहले उन्होंने ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ में छात्रों को संबोधित किया। फिर उन्होंने ‘इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन’ के कार्यक्रम में अपनी बात कही। साथ ही वहां ‘हाउस ऑफ़ कॉमन्स’ के सभागार में विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद वीरेंदर शर्मा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अपने भाषण में राहुल गांधी ने भारत को ‘यूनियन ऑफ स्टेट्स’ यानी भारत को ‘राज्यों के संघ’ के रूप में परिभाषित किया। ‘राजनीति और जनता: धारणा से प्रदर्शन तक’ नामक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने मीडिया के साथ बातचीत की। कार्यक्रम का संचालन इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (आईजेए) के अध्यक्ष दानिश खान ने किया था।
मोदी सरकार पर निशाना
इसमें राहुल गांधी ने कहा कि देश की संघीय संवैधानिक व्यवस्था में ये जरूरी है कि केंद्र सरकार लगातार राज्यों के साथ विचार-विमर्श करती रहे। उनका आशय था कि आज और खासकर मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसा नहीं हो रहा है यानी केन्द्र सरकार जो चाहे सो करती है। अपने हिसाब से फैसले ले लेती है। इससे गैर भाजपा शासित राज्यों में दूरियां बढ़ रही हैं। अविश्वास का दायरा और चौड़ा होता जा रहा है। राहुल गांधी ने यह आरोप भी लगाया कि भारत के ‘लोकतांत्रिक ढांचे पर लगातार सरकारी हमले हो रहे हैं।

आज संसद, न्यायपालिका और प्रेस पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। राहुल का आशय यह था कि देश में संवैधानिक संस्थाएं भी सरकार के इशारे पर काम कर रही है। उनमें सरकार का सीधा हस्तक्षेप भले न हो, लेकिन इन संस्थाओं की कार्यशैली यह संकेत दे रही है कि वो सरकार की अनुकूलताओं को ध्यान में रखकर ही अपना काम कर रही हैं। राहुल ने कहा कि मोदी सरकार भारत में मीडिया का दमन कर रही है।

राहुल ने वैसे तो रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भारत की नीति की तारीफ की मगर उन्होंने चीन को लेकर भारत की विदेश नीति पर निशाना भी साधा। राहुल ने गंभीर आरोप लगाया कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को चीन से ‘खतरे का अंदाजा नहीं’ है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। राहुल के बयानों की प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही था।


बाद में राहुल ने सफाई दी कि मैंने कभी अपने देश का अपमान नहीं किया है और न ही ऐसा कभी करूंगा।

राहुल के बयान पर बीजेपी का पलटवार
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल को उनके बयानों के लिए आड़े हाथों लिया। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने पलटवार करते हुए कहा कि राहुल गांधी अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए विदेशी धरती पर भारत की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।

ठाकुर ने कहा कि राहुल गांधी विवादों का तूफ़ान बन गए हैं। चाहे विदेशी एजेंसियां हों या चैनल, वो भारत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था और वे खुद लोकतंत्र का उपदेश दे रहे हैं।

इस बारे में खुद राहुल गांधी का कहना है कि सियासत में यह खेल तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू किया था, जब उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री विदेशी धरती पर अपने भाषणों में साफ कहा था कि बीते 60 सालों में देश में कोई विकास नहीं हुआ। मोदी ने कहा वह भी सही नहीं था। लेकिन उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था।

राहुल के अनुसार पीएम मोदी ने ऐसा बोलकर उन तमाम मेहनतकशों का अपमान किया, जिन्होंने भारत को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया है। राहुल ने कहा कि जो व्यक्ति विदेश जाकर भारत को बदनाम करते हैं वो भारत के प्रधानमंत्री हैं। हालांकि, मोदी ने जो कहा था, वह भी सही नहीं था, लेकिन उन्होंने किसी का का नाम नहीं लिया था। जबकि राहुल सीधे नाम लेकर हमला कर रहे हैं।
अपने बयान पर राहुल की सफाई
बाद में राहुल ने सफाई दी कि मैंने कभी अपने देश का अपमान नहीं किया है और न ही ऐसा कभी करूंगा। भारत में विपक्ष के संदर्भ में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में विपक्ष एकजुट है और मजबूती से मिलकर काम कर रहा है। विपक्ष के अंदर ये बात बहुत गहरे से बैठी हुई है कि उन्हें आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ लड़ने और उन्हें हराने की जरूरत है।

उन्होंने माना कि कुछ मामलों को लेकर विपक्ष एक दूसरे से छिटका हुआ है लेकिन वो मिलकर उन मामलों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात अलग है कि राहुल के बयान के दूसरे ही दिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बैनर्जी ने अगला लोकसभा चुनाव अलग लड़ने का ऐलान कर दिया और कुछ समय बाद ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने भी अलग राह पकड़ने का संकेत दे दिया।

ब्रिटेन में राहुल गांधी ने यह भी कहा कि भारत में विपक्ष अब किसी राजनीतिक दल से नहीं लड़ रहा है, बल्कि हम भारत के संस्थागत ढांचे से लड़ रहे हैं। हम बीजेपी और आरएसएस से लड़ रहे हैं जिन्होंने भारत की लगभग सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है, जिसके चलते खेलने के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं बची है। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने अडाणी को लेकर भी प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए। साथ में पेगासस स्पायवेयर के जरिए फोन टैपिंग का मुद्दा भी उठाया। चीन को लेकर भी राहुल का बयान विवादों में घिर गया।
ऐसा नहीं कि राहुल ने जो बातें कहीं, वो सफेद झूठ है। आज देश में जो रहा है, उसमें विपक्ष की मुश्कें कसने की हर संभव कोशिश साफ दिखाई देती है। इसके पीछे रणनीति यह भी हो सकती है कि तमाम तरह की कानूनी उलझनों में फंसाकर विपक्ष की विश्वसनीयता ही शून्य कर दी जाए। लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। राहुल के बयानों से लग रहा है कि या तो उन्हें कोई ‘गाइड’ कर रहा है या फिर वो ‘मन की बात’ कहने पर आमादा हैं। दूसरी तरफ राहुल के प्रशंसकों का मानना है कि राहुल ने अंग्रेजों के जमीन पर जाकर मोदी और उनकी सरकार पर निरंकुश होने का खुला आरोप लगाकर गजब की हिम्मत दिखाई है।
क्या सोचती है जनता?
ऐसी हिम्मत, जो किसी भी नेता को बड़ा बना सकती है। लेकिन राहुल गांधी के बयानों पर भाजपा और संघ क्या सोचते हैं, इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि भारत की आम जनता इसके बारे में क्या सोचती है? क्या राहुल का इस तरह विदेश में जाकर अपनी ही सरकार को घेरना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इस तरह हमले करना सही है? या फिर इससे एक गलत परंपरा की नींव पड़ गई है, जिसका खमियाजा आगे चलकर खुद राहुल और कांग्रेस (अगर को केन्द्र में सत्ता में आई तो) को भुगतना पड़ सकता है।

अमूमन भारतीय नेता विदेश में देश की विदेश नीति और आंतरिक मतभेदों पर खुलकर नहीं बोलते रहे हैं। एक जमाना वो भी था, जब कांग्रेस के जमाने में पी. वी. नरसिंह राव सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ में विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल भेजा था ताकि कश्मीर पर भारत की एक आवाज दुनिया को सुनाई दे। आज की कटुता और एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति में यह सियासी उदारता और बड़प्पन नामुमकिन है।

अक्सर चुनावों में हम वो देखते ही हैं। इस बार तो गजब ये हुआ कि भारतीय जनता पार्टी मेघालय में उस संगमा सरकार में शामिल हो गई, जिसे चुनाव प्रचार के दौरान केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश की भ्रष्टतम सरकार कहा था। इससे भी हैरानी की बात यह रही कि कथित भ्रष्टतम सरकार के मुख्यमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण में प्रधानमंत्री को न्यौता दिया, तो वो भी पूर्वोत्तर के प्रति अपने अतीव प्रेम के चलते ‘उदारतापूर्वक’ उसमें शामिल हुए।

बावजूद इन सबके राहुल ने विदेश में जो कुछ कहा कि उससे ज्यादातर लोग सकारात्मक भाव से शायद ही देखें। घर के झगड़े चौराहे पर लाने को कभी अच्छा नहीं समझा गया, फिर चाहे वह राजनीतिक कारणों से ही क्यों न हो। अगर राहुल उनके पूछे गए सवालों के ज्यादा परिपक्व ढंग से जवाब देते तो उसका मैसेज अच्छा जाता। वो यह भी कह सकते थे कि ये हमारे अंदरूनी झगड़े हैं। विदेश में इन पर टिप्पणी ठीक नहीं।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा से राहुल की अपेक्षाकृत गंभीर और समझदार नेता की जो छवि कुछ हद तक बनी थी, विदेश में उनके (भले ही कुछ लोग उसे साफगोई मानें) बयानों से उसे धक्का लगा है। राजस्थान के गहलोत सरकार के मंत्री के बेटे अनिरूद्ध सिंह ने तो सोशल मीडिया पर ट्वीट किया राहुल गांधी के लिए शायद इटली को अपनी मातृभूमि मानते हैं।

उधर राहुल के बयानों के बाद भड़की भाजपा ने उन्हें फिर ‘विदेशी’ कहना शुरू कर दिया है। यह आरोप राहुल की छवि को फिर बिगाड़ सकता है। विवादित मुद्दों पर यूं परदेस में भी बिंदास बयानबाजी से ज्यादा बेहतर यह होगा कि राहुल अपने घर को ठीक करने में ज्यादा समय दें और पार्टी को बड़ी जिम्मेदारी के लिए खड़ा करें, उसे मुस्तैद और सक्रिय बनाएं। दरअसल, राहुल राजनीतिक चतुराई के बगैर उस तरह की राजनीति करना चाहते हैं, जिसका वक्त 1947 में ही खत्म हो गया।

लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार है।

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