बैंगलुरु । अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ जाति से संबोधित करना अपराध नहीं होगा जब तक कि यह उस जाति से संबंधित व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से न हो। अत्याचार अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित एक अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए एचसी ने यह भी कहा कि नियम-7 के तहत मामले की जांच एक डिप्टी एसपी की रैंक वाले पुलिस अधिकारी को करनी चाहिए न कि सब-इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को। बैंगलुरु ग्रामीण जिले के बंडेसंद्रा गांव के निवासी वी शैलेश कुमार की दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता को आईपीसी के तहत अपराध जैसे मारपीट आपराधिक धमकी आदि के मामले में मुकदमे का सामना करना होगा। मामला क्रिकेट मैच के बाद दो टीमों के बीच हुए विवाद का है। 14 जून 2020 को इग्गलुरु गांव की जयम्मा ने शिकायत दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि उसका बेटा मनोज और उसका दोस्त प्रदीप एक दुकान के पास खाना खा रहे थे और शाम करीब 4.30 बजे शैलेश कुमार 30 लोगों के साथ दोपहिया और एक कार पर वहां आया और मनोज के खिलाफ गालियां दीं। एक अन्य व्यक्ति ने उन पर हथियारों और बीयर की बोतलों से हमला कर घायल कर दिया और कार में ले जाकर उनके साथ भी मारपीट की।
पुलिस ने मामले की जांच की और अत्याचार अधिनियम और आईपीसी दोनों प्रावधानों को लागू करते हुए आरोप पत्र दायर किया। विशेष न्यायाधीश ने एक मार्च 2021 को एट्रोसिटीज एक्ट के तहत विशेष मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। इसे शैलेश ने चुनौती दी थी जिन्होंने दावा किया कि जाति का नाम लेकर गालियां दी गईं हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इसका इरादा अपमान करना नहीं था।
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में इस पहलू (अपमान करने का इरादा) स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है अत्याचार अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। न्यायाधीश ने कहा कि न तो चार्जशीट और बयान में इस तरह की परिस्थितियों को वर्णन किया गया है। सिर्फ शिकायतकर्ता के बेटे ने ही कहा कि जब उसे गालियां दी गईं तो जातिसूचक नाम का इस्तेमाल किया गया।
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