सीडलेस खीरे की खेती संकर किस्मों पर आधारित है. इन किस्मों को हॉलैण्ड से देश में लाया गया है. फिलहाल इस किस्म की खेती देश के कई राज्यों में होने लगी है. इस खीरे को उगाने के लिए पॉलीहाउस का सहारा लिया जाता है. यहां ये सालभर उगाए जा सकते हैं।
सरकार द्वारा किसानों को कम अंतराल की मुनाफा देने वाली फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. किसान भी इस ओर अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. खीरा भी इसी तरह की फसल है. साल में किसी भी मौसम में इस फसल की खेती रूकती नहीं है. ऐसे में बाजार में इसकी मांग भी बनी रहती है. इस बीच सीडलेस खीरे की भी डिमांड बाजार में तेजी से बढ़ी है. छोटे और सीमांत किसान इस किस्म की बुवाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
पॉलीहाउस के माध्यम से करें इस खीरे की खेती
सीडलेस खीरे की खेती संकर किस्मों पर आधारित है. इन किस्मों को हॉलैण्ड से देश में लाया गया है. फिलहाल इस किस्म की खेती देश के कई राज्यों में होने लगी है. इस खीरे को उगाने के लिए पॉलीहाउस का सहारा लिया जाता है. यहां ये सालभर उगाए जा सकते हैं, इन्हें किसी भी तरह के परागण की आवश्यकता भी नहीं हैं.
बढ़िया मुनाफा
एक हजार स्क्वायर मीटर में सीडलेस खीरे के 1000 पौधे लगाए जा सकते हैं. एक पेड़ से किसानों को आराम से 4 से 5 किलो तक खीरा मिल सकता है. ऐसे में 1000 खीरे के पौधे से किसान आराम से 400 किलो तक की उपज हासिल कर सकता है. इसे बाजार में बेच वह बढ़िया मुनाफा भी कमा सकता है,
इसलिये बढ़ रही है मांग
हाल के वर्षों में देखा गया है कि खीरे की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है. पहले से ही इसका उपयोग सालाद और जूस के तौर पर होता ही था. अब जबसे बीमारियों का प्रकोप ज्यादा बढ़ा है, तबसे इसके सेवन में भारी इजाफा हुआ है. ऐसे में सीडलेस खीरे स्वाद में कड़वे नहीं होने की वजह से लोगों के पसंदीदा बने हुए है. यही वजह है कि अन्य किस्मों के मुकाबले इन खीरों का रेट भी ज्यादा है.
सीडलेस खीरे की खेती: दूसरे किस्मों के मुकाबले अधिक उत्पादन देने वाली किस्म
पिछले कुछ वर्षों में बाजार में सीडलेस खीरे की मांग बढ़ी है, लेकिन किसानों के सामने एक ही समस्या आती थी कि बीज कहां से खरीदे, जिससे बढ़िया उत्पादन कर सकें। ऐसे में किसान आईसीएआर-आईएआरआई द्वारा विकसित सीडलेस खीरे की खेती कर सकते हैं।
आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए पूसा समाचार लेकर आता है, जिसमें किसानों को नई जानकारी देने के साथ ही उनकी कई समस्याओं का हल किया जाता है। इस हफ्ते किसानों को सीडलेस खीरे की खेती की जानकारी दी जा रही है। आईएआरआई के शाकीय विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ एसएसए डे खीरे की खेती की के बारे में बताते हैं, “जैसे लोग जानते हैं कि पॉली हाउस में खीरे की खेती करते हैं तो उसमें कुछ खास प्रजातियां लगाई जाती हैं, इस तरह की प्रजातियों को हम पार्थेनोकार्पिक कुकुंबर या फ्रेंच कुकुंबर और कभी-कभी चाइनीज कुकुंबर कहते हैं।”
वो आगे कहते हैं, “ये खीरे की दूसरी प्रजातियों से अलग होता है, इसमें एक तो बीज नहीं होते हैं, दूसरा इसकी हर एक गांठ में एक-एक फ्रूट लगते हैं और कभी-कभी एक गांठ में एक से अधिक फल लगते हैं, इसलिए इस प्रजाति के खीरे में ज्यादा उत्पादन मिलता है।”
पूसा ने पार्थेनोकार्पिक खीरे की कुछ नई किस्में विकसित की हैं। डॉ डे आगे कहते हैं, “पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6, ये किस्म किसानों के बीच काफी प्रचलित है। अगर आपके पास कोई प्रोटेक्टेड स्ट्रक्चर, जैसे पॉली हाउस या नेट हाउस है तो साल में तीन बार इसकी खेती सकती है।”
अगर उत्तर भारत की बात करें तो इसे दो बार फरवरी-मई और जुलाई-नवंबर में नेट हाउस में लगाया जा सकता है। लेकिन अगर हम दक्षिण भारत में इसकी खेती करते हैं तो इसे साल में तीनों बार नेट हाउस में लगाना होता है, इस किस्म का बीज आप पूसा संस्थान से ले सकते हैं।
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