उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब विधायिका न्यायपालिका और कार्यपालिका संवैधानिक लक्ष्यों को पूरा करने और लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर काम करती हैं तो लोकतंत्र कायम रहता है और फलता-फूलता है। न्यायपालिका उसी प्रकार कानून नहीं बना सकती जिस प्रकार विधानमंडल एक न्यायिक फैसले को नहीं लिख सकता है।