सुरेंद्र जैन
श्री श्री 1008श्री आदिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र बाड़ी कलां में मूल नायक प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ स्वामी बड़े बाबा की चतुर्थकालीन जिन प्रतिमा के बैंसे तो कई अतिशय देखने को मिल चुके हैं लेकिन इस बार निर्वाणोत्सव पर निर्वाण लाडू चढ़ाने के दौरान भी क्या बड़े बाबा कोई अतिशय दिखा रहे थे।
भारतवर्ष ही नहीं अपितु सारी दुनिया में जहां जहां जैन मंदिर ओर जैन समाज के लोग हैं हर जगह 1नवंबर को अंतिम केवली चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का 2551 वाँ निर्वाणोत्सव भक्ति भाव के साथ मनाया गया अतिशय क्षेत्र बाड़ी में भी समाज ने बड़े ही भक्ति भाव के साथ निर्वाणोत्सव मनाया
इस दौरान समाज ने 25किलो51ग्राम का प्रथम निर्वाण लाडू का निर्माण कराया था दानदाताओं के मन में प्रथम लाडू चढ़ाने की भावनाएं जोर कर रही थी बोलियों के माध्यम से दानदाताओं को या शौभाग्य मिला लेकिन जब अभिषेक शांतिधारा पूजन के बाद निर्वांकांड हुआ ओर पच्चीस किलो इक्यावन ग्राम के प्रथम निर्वाण लाडू को चढ़ाने हाथों में उठाना था तो अचानक वह लाडू इतना भारी लगने लगा जैसे कि क्विंटलों बजनी हो आमतौर पर पच्चीस किलो बजनी कोई भी सामान एक व्यक्ति आसानी से उठा सकता है लेकिन यहां तो 25 किलो 51ग्राम का निर्वाण लाडू अकेले एक व्यक्ति से उठा ही नहीं दो तीन साधर्मियों ने हाथों में उठाया तो मानो ऐंसा लग रहा था जैसे क्विंटलों बजनी हो निर्वाण लाडू का अचानक इतना अधिक भारी होना स्पष्ट संकेत दे रहा था हो न हो यह बड़े बाबा का अतिशय ही है
इसके पूर्व भी इस अतिशय क्षेत्र में कई अतिशय हुए हैं जिनमें एक अतिशय तो परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री 108विद्यासागर जी महामुनिराज के सानिध्य में 18दिसंबर 1995 की सुबह हुआ था जब गुरुदेव ने मूल नायक बड़े बाबा की अतिशयकारी प्रतिमा को बड़े गढ़वाले में विराजित देखा था और उनके सामने दीवार होने से दृष्टि बाहर न आते देख गुरुदेव ने समाज को बुलाकर बड़े बाबा को बीच की वेदी पर प्रतिष्ठित करने का आशीर्वाद दिया रातभर वेदी का काम चला सुबह जब जिनकी बोली थी
वह सौभाग्यशाली खरी वालो का परिवार बड़े बाबा की प्रतिमा को बीच की वेदी पर प्रतिष्ठित करने गढ़वाले में उठाने पहुंचे लेकिन काफी लोगो द्वारा उठाने का प्रयास करने पर भी बड़े बाबा की प्रतिमा वहां से नहीं उठी थी तब आचार्यश्री स्वयं ही पहुंचे जैंसे ही गुरुदेव ने बड़े बाबा की प्रतिमा को हाथ लगाया बैंसे ही अदृश्य देवो द्वारा बड़े बाबा का अभिषेक किया जाने लगा और प्रतिमा तर बतर हो गई आचार्यश्री के शुभ हाथों ही जिन प्रतिमा बीच की बेदी पर विराजित हुईइस तरह के बड़े बाबा के पहले भी अतिशय हुए हैं क्या यह भी बड़े बाबा अतिशय दिखा रहे थे