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एक-दूसरे पर गरजते-बरसते और फब्तियां कसते राहुल-मोदी-अरुण पटेल

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आलेख
अरुण पटेल

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद संसद सत्र काफी हंगामेदार रहा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एक-दूसरे पर गरजते-बरसते, फब्तियां कसते नजर आये। लोकसभा में दस साल के बाद नेता प्रतिपक्ष के रुप में राहुल गांधी का मुकाबला नरेन्द्र मोदी से रहा और दोनों ने एक-दूसरे पर बढ़त लेने की भरपूर कोशिश की।

राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के तेवर भी काफी तीखे रहे और एक बार उनकी सभापित जगदीप धनखड़ से नोंकझोक भी हो गयी। वहीं राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी अपने अंदाज में समझाइश देने की कोशिश की। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां अपने अंदाज में यह जताने की कोशिश की कि भले ही भाजपा लोकसभा में बहुमत से काफी पीछे रह गयी हो लेकिन उनके चुनाव पूर्व गठबंधन को बहुमत मिला है इसलिए उनकी कार्यशैली में कोई अन्तर आने वाला नहीं है। जिस प्रकार उन्होंने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सरकार चलाई थी उसी अंदाज में वह अभी भी हैं, जबकि विपक्ष ने राहुल गांधी की अगुवाई में यह अहसास कराने की कोशिश की कि विपक्ष अब काफी मजबूत है और वह सदन से लेकर सड़क तक मोदी सरकार की घेराबंदी करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देगा। इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपनी मांगों की लम्बी फेहरिस्त केंद्र सरकार के सामने रख दी है, देखने वाली बात यही होगी कि उनकी मांगों को केंद्र सरकार किस सीमा तक पूरा करती है, यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा पेश किए जाने वाले बजट प्रावधानों से ही पता चल सकेगा। लेकिन नायडू कांग्रेस से भी अपने तार तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवन्त रेड्डी के माध्यम से जोड़े रखना चाहते हैं।गुरु-शिष्य की यह जोड़ी राजनीति में क्या कोई नया गुल खिलायेगी या नहीं इस पर राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजरे लगी हुई हैं। रेवंत रेड्डी के राजनीतिक गुरु नायडू हैं और इस समय दोनों अलग-अलग राजनीतिक खेमों में बल्लेबाजी कर रहे हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में एक जीवन्त लोकतंत्र का न केवल अहसास कराया गया बल्कि हंगामे, तीखी नोंकझोंक और एक-दूसरे पर फब्तियां कसने का कोई अवसर सत्तापक्ष व विपक्ष ने नहीं छोड़ा। अपने प्रयासों में कौन कितना सफल रहा यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि किसकी बात मतदाताओं के गले उतरी।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर राहुल गांधी ने सीधे-सीधे तीखा शाब्दिक हमला करते हुए कहा कि अपने को हिन्दू कहते हैं और हमेशा हिंसा फैलाते रहते हैं, हिंसा की बात करने वाला हिंदू नहीं हो सकता। इस पर बीच में हस्तक्षेप करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पूरे हिन्दू समाज को हिंसक कहना गलत है। इस प्रकार उन्होंने हिन्दू समाज में अपने ढंग से यह संदेश देने की कोशिश की कि राहुल हिन्दू समाज के खिलाफ बोल रहे हैं, लेकिन तुरन्त ही राहुल ने भी कहा कि नहीं-नहीं, नरेंद्र मोदी, संघ और भाजपा, पूरा हिन्दू समाज नहीं है। राहुल का कहना था कि भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या ने भाजपा को संदेश दिया है। अयोध्या की जनता के दिल में नरेंद्र मोदी जी ने भय पैदा कर दिया, उनकी जमीन ली, घर गिरा दिये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे लोकतंत्र ने सिखाया है कि विपक्ष के नेता को गंभीरता से लेना चाहिये। सोमवार एक जुलाई को दोनों सदनों में इस मायने में जीवन्त लोकतंत्र का अहसास हुआ जब दिन भर बहस चली, बायकाट नहीं हुआ और हंगामा तो खूब हुआ पर पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों ने संयम दिखाया। सत्तापक्ष ने हस्तक्षेप कर आपत्ति दर्ज कराई लेकिन बहस चलती रही। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष

राहुल गांधी ने जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पर सवाल उठाये तो भी सदन पटरी पर रहा। लोकसभा में राहुल गांधी और राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष तथा सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार पर तीखे वार किये और लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष पर लगे आरोपों का करारा जवाब देने की भी कोशिश की। राहुल पर निशाना साधने में कई वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और सत्तापक्ष पीछे नहीं रहा। लोकसभा अध्यक्ष ने बाद में जब राहुल गांधी के भाषण के कुछ अंश कार्यवाही से विलोपित कर दिये इस पर भी राहुल गांधी ने एतराज जताया। जबकि भाजपा की मांग थी कि राहुल गांधी तुरन्त माफी मांगे। भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा का कहना था कि पांच बार के सांसद होने के बाद भी राहुल गांधी संसदीय नियम और मर्यादा नहीं सीख पाये हैं। नड्डा के अलावा केंद्रीय मंत्री अश्वनि वैष्णव, किरण रिजीजू और सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल पर झूठे बयान और अमर्यादित आचरण से नेता प्रतिपक्ष पद की गरिमा गिराने का आरोप लगाया। साथ ही तंज किया कि आसंदी से कही गयी बात राहुल को समझ में नहीं आती, भला नये चुनकर आये सांसद उनसे क्या सीखेंगे?
संगठन में बदलाव करती भाजपा
लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा ने अपने दम पर 370 और सहयोगियों के साथ लगभग 400 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह इस लक्ष्य से काफी पीछे रह गयी, यहां तक कि अपने दम पर वह केवल 240 सीटें ही जीत पायी। अब उसने संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने का बीड़ा उठा लिया है और 24 राज्यों के प्रभारी व सह-प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। ऐसा महसूस न हो कि उसे जहां सफलता नहीं मिली वहां के ही प्रभारी बदले गये हैं, यही कारण रहा कि 29 सीटें जीतने के बाद कई

मध्यप्रदेश के प्रभारी बदल दिये गये हैं। मध्यप्रदेश में मुरलीधर राव की छुट्टी हो गयी है। जहां तक राव का सवाल है उनके कुछ बयानों से अनावश्यक विवादों की स्थिति ही पैदा होती रही थी। मुरलीधर राव प्रभारी रहे हैं लेकिन उनके जाने की वजह शायद यह भी थी कि वे प्रदेश की भाजपाई राजनीति में इतने हाशिए पर खिसक गये थे कि उन्हें पार्टी के ही लोग भूल गये। इसका सबसे बड़ा कारण उनका यह बयान था कि बनिया, ब्राह्मण तो उनकी जेब में हैं। इसके बाद ही पार्टी के नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व से इसकी शिकायत की थी। विधानसभा और लोकसभा चुनाव हो गये, भाजपा ने लोकसभा की सभी 29 सीटें जीत लीं तथा विधानसभा में भी प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया लेकिन मुरलीधर राव कहीं नजर नहीं आये और वे एक प्रकार से प्रतीकात्मक प्रभारी ही रह गये थे।

अब मध्यप्रदेश में यूपी के विधान परिषद सदस्य डॉ. महेंद्र सिंह को प्रभारी बनाया गया है और उनके साथ सह-प्रभारी सतीश उपाध्याय को बनाया गया, जो कि दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा ने विभिन्न प्रदेशो में प्रभारी-सह प्रभारियों की नियुक्ति की है उसके अनुसार छत्तीसगढ़ का प्रभारी विधायक नितिन नवीन को बनाया गया है। झारखंड जहां चुनाव होने हैं वहां सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी संगठन के प्रदेश प्रभारी बनाये गये हैं जबकि केंद्रीय मंत्री तथा विदिशा से सांसद शिवराजसिंह चौहान वहां के चुनाव प्रभारी हैं, सह-प्रभारी के रुप में असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा शरमा बनाये गये हैं।


और यह भी
मध्यप्रदेश की 16वीं विधानसभा का तीसरा सत्र भी हंगामें की भेंट चढ़ गया, यह मानूसन सत्र 19 दिन का था जो पांच दिन में ही समाप्त हो गया। 14 दिन पहले ही सदन की कार्रवाई अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गयी। सत्र के पांचवें दिन 5 जुलाई शुक्रवार को आठ घंटे कामकाज के बाद विधानसभा की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। सत्र 14 दिन पहले समाप्त होने के कारण विधायकों के महत्वपूर्ण सवाल तो धरे के धरे रह गये, हालांकि सरकार ने अपना सरकारी कामकाज पूरा कर लिया। संसदीय कार्यमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि विधानसभा के वर्तमान सत्र के लिए निर्धारित सभी वित्तीय व शासकीय कार्य पूर्ण हो चुके हैं इसलिए कार्रवाई अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी जाए। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, हालांकि विपक्ष ने इसका विरोध किया था। 16वीं विधानसभा और उसके पहले 15वीं विधानसभा के भी कई सत्र निर्धारित समय से पूर्व ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो चुके हैं, देखने वाली बात यही होगी कि इस विधानसभा के कार्यकाल में ऐसा कौन सा सत्र होगा जो निर्धारित अवधि तक चलेगा और विधायकों को समस्यायें उठाने का भरपूर मौका मिलेगा।

लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
-सम्पर्क: 9425010804, 7999673990

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