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जौनपुर में क्या कहता है वोटों का गणित, धनंजय सिंह के बाहर आने से क्या कुछ बदलेगा?

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पूर्व सांसद धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है. उनकी जमानत याचिका को मंजूर कर लिया गया है. हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सजा पर रोक नहीं लगाए जाने से धनंजय सिंह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. उन्हें रंगदारी मांगने के मामले में 7 साल की सजा सुनाई गई है. सजा के ऐलान के बाद से ही वह जौनपुर जेल में बंद थे लेकिन, शनिवार को उन्हें बरेली जेल ट्रांसफर किया गया इस पर विवाद गहराया हुआ था. इसी बीच हाईकोर्ट से बड़ा फैसला आया है.

धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी उर्फ श्रीकला सिंह जौनपुर लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार हैं. जौनपुर लोकसभा सीट पर उनके आने से चुनावी माहौल खासा गरमा गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर सीट बहुजन समाज पार्टी के पाले में गई थी.

कृपाशंकर और बाबू सिंह की सांसें अटकी

पिछले दो दशक से जौनपुर की राजनीति धनंजय सिंह के इर्द -गिर्द घूम रही है. लोजपा से जेडीयू होते हुए बसपा से सांसद बनना और फिर सांसद रहते अपने पिता को विधायक बनवा देना जौनपुर में ये जलवा धनंजय सिंह का है. 2002 में जौनपुर की राजनीति में धनंजय सिंह की एंट्री हुई और आजतक जिले में उनकी हनक बरकरार है. लेकिन इस हनक को बरकरार रखने की कीमत भी धनंजय सिंह को चुकानी पड़ी और करीब 41 मुकदमे उनपर दर्ज हैं. हालांकि सजा सिर्फ अपहरण एवं रंगदारी मांगने के मामले में ही हुई है.

धनंजय सिंह के जमानत पर बाहर आने से जौनपुर का राजनीतिक समीकरण बदल सकता है. जौनपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं और जानकार बता रहे हैं कि मल्हनी को छोड़कर प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दस से पंद्रह हजार वोट धनंजय सिंह के व्यक्तगित संबंधों पर हैं. मल्हनी में तो धनंजय सिंह का एकतरफा माहौल रहता ही है. धनंजय की पत्नी श्रीकला धनंजय बसपा से चुनाव लड़ रही हैं.

धनंजय सिंह के मुसलमानों के साथ भी अच्छे संबंध

अनुसूचित जाति के करीब 15 फीसदी वोटर अगर बसपा के साथ मजबूती से जुड़े रहते हैं तो करीब दस फीसदी राजपूत वोटर निर्णायक हो सकते हैं. जानकार बता रहे हैं कि जौनपुर में मुसलमानों के साथ धनंजय सिंह के व्यक्तिगत संबंध अच्छे रहे हैं. श्रीकला को इसका लाभ मिल सकता है. बसपा से निष्कासित होने के बाद धनंजय लगातार तीन चुनाव हारे अब जबकि उनकी पत्नी बसपा से चुनावी मैदान में हैं तो इसका भी फायदा उनको मिल सकता है.

2019 में सपा-बसपा गठबंधन से श्याम सिंह यादव चुनाव जीते थे तब उनको 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे जबकि बीजेपी के केपी सिंह 42 फीसदी से ज्यादा वोट पाए थे. उस चुनाव में राजपूत बीजेपी के साथ थे. इस चुनाव में जौनपुर की राजनीतिक फिजा के साथ साथ वोटबैंक की राजनीति भी बदली हुई है. राजपूत बीजेपी से खुश नहीं है का नरेटिव बना हुआ है और जौनपुर में भी इसको भुनाने की कोशिश होगी.

धनंजय के बाहर आने से किसे हो सकता है नुकसान?

वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का कहना है कि धनंजय की छवि बाहुबली की है और अब उत्तर प्रदेश में योगी जी के राज में अगेंस्ट माफिया माहौल बना हुआ है तो रॉबीन हुड वाली छवि अब नहीं चलेगी, हां ये जरूर है कि धनंजय के आने से राजपूत वोट बंटेगा और इसका सबसे ज्यादा नुकसान कृपा शंकर सिंह को होगा.

लड़ाई सपा और बसपा के बीच में हो सकती है

धनंजय सिंह के जेल से बाहर आने के बाद जौनपुर की राजनीतिक फिजा में जबरदस्त बदलाव देखने को मिल सकता है! लड़ाई त्रिकोणीय होने के आसार हैं, कृपा शंकर सिंह के बारे में कहा जाता है कि वो बाहरी हैं इसलिए मुख्य लड़ाई सपा और बसपा के बीच में देखने को मिल सकती है, लेकिन एक बात यह भी थे कि धनंजय सिंह बाहुबली और माफिया वाली छवि से बाहर नहीं निकल पाए हैं, ऐसे में धनंजय को नुकसान भी हो सकता है, साथ ही अब तक जेल में रहते पत्नी को सहानभूति मिल रही थी, वो अब खत्म हो जाएगी.

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