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शिवसेना से पहले पुलिस की खुफिया विंग में लग चुकी थी सेंध, हल्के में ले बैठे ‘पेन ड्राइव कांड’

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नई दिल्ली।महाराष्ट्र में सत्ता का संकट गहराता जा रहा है। बागी विधायकों पर एकनाथ शिंदे की पकड़ मजबूत होती जा रही है। दूसरी ओर शिवसेना प्रमुख एवं राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पास मौजूद विधायकों की संख्या बढ़ने की बजाए घट रही है। बागी विधायकों की संख्या का बढ़ना, शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार के लिए नुकसान का पर्याय बन गया है। जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र में दोतरफा सेंध लगी है। एक शिवसेना में और दूसरी, सरकार में। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार से पहले, वह सेंध राज्य पुलिस की ‘खुफिया’ विंग में लग चुकी थी। गत मार्च में विपक्ष के नेता एवं पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में ‘पेन ड्राइव’ बम फोड़ा था। उस वक्त भी एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इशारों में कहा था, वीडियो रिकॉर्डिंग की लंबी अवधि से पता चलता है कि वह केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा की गई निगरानी की फुटेज है। अमूमन सभी राज्यों में ‘सीआईडी’ को मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं। जहां पर ये व्यवस्था नहीं है तो वहां भी पर्दे के पीछे, ‘डेली रिपोर्ट’ सीएम के पास भी जाती है। दर्जनों विधायक, दूसरे राज्य में पहुंच जाते हैं और मुख्यमंत्री उद्धव को खबर तक नहीं लग सकी। मतलब, उद्धव सरकार ने ‘पेन ड्राइव’ बम को शरद पवार की टिप्पणी के बावजूद गंभीरता से नहीं लिया।

हर राज्य में मुख्यमंत्री के पास पहुंचती है ‘सीआईडी’ रिपोर्ट: तकरीबन सभी प्रदेशों में राजनीतिक गतिविधियों एवं क्राइम से संबंधित हर रिपोर्ट सीएम तक पहुंचाई जाती है। चुनाव, रैली या अन्य कोई बड़ा प्रदर्शन, इन सबकी रिपोर्ट, सीआईडी के मार्फत मुख्यमंत्री तक पहुंचती है। एडीजी रैंक का अधिकारी, सीआईडी विंग का प्रमुख होता है। खुफिया इकाई के एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कहना है, कई राज्यों में गृह मंत्री के पास पुलिस महकमा होता है। वहां भी सीआईडी विंग को मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते हैं। अगर कहीं पर ऐसा संभव नहीं है तो विंग का आईजी स्तर का अधिकारी, सीएम को ‘सीआईडी’ रिपोर्ट ब्रीफ करता है। पिछले दिनों हरियाणा में सीआईडी को लेकर मुख्यमंत्री खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज के बीच हुई तकरार सार्वजनिक हो चुकी है। हालांकि बाद में तय हुआ कि सीआईडी की मुख्य रिपोर्ट सीएम के पास ही जाएगी, गृह मंत्री को भी ब्रीफ किया जाएगा।

राजनीतिक लोगों पर सीआईडी के जरिए रखी जाती है ‘नजर’: रिटायर्ड अधिकारी ने बताया, भले ही बाहर आपको यही बताया जाएगा कि सीआईडी तो आईबी की तरह काम करती है। उसका काम कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा करने वाले लोगों पर नजर रखना है। इसमें आतंकी, गैंगस्टर, स्थानीय गैंग व अन्य आपराधिक वारदात शामिल हैं। राज्य में सीआईडी को विभिन्न मामलों की जांच भी सौंपी जाती है। इसके बावजूद अधिकांश राज्यों में सीआईडी का इस्तेमाल, मुख्यमंत्री कई तरीके से करते हैं। सबसे पहला तो यही है कि राज्य में विधायकों पर नजर रखना। अगर कई दलों की मिली-जुली सरकार है तो ऐसे में खुफिया इकाई का कामकाज बढ़ जाता है। कौन सा विधायक कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है, अनौपचारिक तौर पर ये सब जानकारी मुख्यमंत्री एकत्रित कराते रहते हैं। महाराष्ट्र में एक साथ इतने विधायकों का राज्य से बाहर निकल जाना, बताता है कि मुख्यमंत्री की खुफिया इकाई पर पकड़ नहीं रही। खुफिया इकाई को अविलंब, मुख्यमंत्री को विधायकों के बाहर निकलने की बात बतानी चाहिए था। यहां पर दो बातें हो सकती हैं। पहली, खुफिया इकाई ने मुख्यमंत्री से वह जानकारी छिपाई हो, दूसरा, इंटेल विंग ने विधायकों को ट्रैक ही न किया हो। इस मामले में कहीं न कहीं तो सेंध लगी है।

राज्यों में खुफिया एजेंसी का दुरुपयोग है आम: मार्च में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा किया था। उन्होंने पेन ड्राइव में 125 घंटे की वीडियो रिकॉर्डिंग, विधानसभा अध्यक्ष को सौंपी थी। राज्य सरकार ने इस केस की जांच, सीआईडी को सौंपी थी। गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल ने कहा था, आरोपों के घेरे में फंसे प्रवीण चव्हाण ने सरकारी वकील के पद से इस्तीफा दे दिया है। फडणवीस ने इस मामले को महाविकास आघाड़ी सरकार का महाकत्लखाना बताया था। विपक्ष के नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाने की साजिश रची जा रही थी। प्रवीण चव्हाण, कथित तौर पर पुलिसवालों को यह समझाते हुए दिखे कि भाजपा नेताओं को कैसे फंसाना है। तब गृह मंत्री पाटिल ने पूर्व सीएम से पूछा था कि क्या आपने कोई डिटेक्टिव एजेंसी खोल रखी है। कई नेताओं ने इस मामले में पुलिस से जुड़ी इकाई के शामिल होने का अंदेशा जताया था। आईपीएस अधिकारी, रश्मि शुक्ला पर गैर कानूनी रूप से जन प्रतिनिधियों के फोन टेप का आरोप लगा। रश्मि शुक्ला, जब वर्ष 2017-18 में पुणे पुलिस आयुक्त के पद पर कार्यरत थीं, तो उन्होंने चार जनप्रतिनिधियों के छह फोन टेप किए थे। फोन टेपिंग के लिए कई तरह के फर्जी आधार तैयार किए गए। किसी जनप्रतिनिधि का फोन अमजद खान नाम का ड्रग पैडलर बताकर, टेप किया गया तो दूसरे जनप्रतिनिधि का फोन टेप करने के लिए ड्रग्स बेचने वाले निजामुद्दीन बाबू शेख का किरदार तैयार किया गया था।

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