तिल गणेश चतुर्थी विशेष :: विंध्याचल पर्वत पर हैं श्री सिद्ध गणेश धाम,हर साल तिल बराबर बढ़ती है प्रतिमा
-कहते हैं जामवंतजी ने की श्रीगणेश जी की स्थापना
कमल याज्ञवल्क्य बरेली रायसेन
मध्यप्रदेश अपनी ऐतिहासिक प्राचीन धरोहरों के लिए विश्व विख्यात है। प्रदेश के रायसेन जिले का भी अपना ऐतिहासिक महत्व है। जिले भर में प्रागैतिहासिक कालीन सभ्यता इसकी विशिष्ट पहचान है। प्राचीन पुरातात्विक धरोहरों से समृद्ध रायसेन जिले की बरेली तहसील मुख्यालय से करीब पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर उदयगिरि गांव के पास विंध्याचल पर्वत पर विघ्न विनाशक भगवान् श्रीगणेश जी का ऐतिहासिक प्राचीन सिद्ध स्थल तिल गणेश जी के नाम से विख्यात है। यहाँ तिल गणेश चतुर्थी को बड़ा मेला लगता है। इस मेला में आसपास के दर्जनों गांवों के भक्त शामिल होते हैं। यहाँ की विशेषता यह है कि भगवान् श्रीगणेश जी को मोदक तिल के लड्डू का भोग लगाया जाता है।
भगवान् श्रीगणेश जी के इस प्राचीन स्वयं सिद्ध स्थान पर करीब चालीस बर्षो से जुड़े समाजसेवी पंडित शिवनारायण शर्मा तथा पंडित नरसीप्रसाद शर्मा और पंडित कमल किशोर शर्मा ने बताया कि हमने भगवान् श्रीगणेश की यह प्रतिमा छोटी देखी है अब पहले की तुलना में श्रीगणेश जी मूर्ति काफी बड़ी हो गई है। साहू समाज के बरिष्ठ प्रतिनिधि एवं समाजसेवी शिवदयाल सिमरैया ने बताया कि घनघोर जंगल में विराजमान भगवान् श्रीगणेश जी सबका मंगल करते हैं। यहां के गणेश जी स्वयं सिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को यहां सुविधाओं की ओर ध्यान देना चाहिए ताकि भक्तों को सुलभता से भगवान् श्रीगणेश जी के दर्शन हो सकें। समाजसेवी पटेल शशिमोहन शर्मा एवं विद्युत ठेकेदार पंडित मनीष शर्मा ने बताया कि हमने बुजुर्गों से सुना है कि यहां विराजमान भगवान् श्रीगणेश जी की स्थापना जामवंत जी ने की थी। उन्होंने यह भी बताया कि श्रीगणेश की यह प्रतिमा पहले छोटी थी। हमने भी बचपन में भगवान् श्रीगणेश जी की प्रतिमा छोटी देखी है अब तो बड़ी हो गई। काफी भक्तों का मानना है कि हर साल तिल के बराबर भगवान् श्रीगणेश जी प्रतिमा बढ़ रही है। यहां तिल गणेश चतुर्थी पर काफी बड़ा मेला लगता है। इस मेला में काफी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। इसके अलावा भी यहां अनुष्ठान होते रहते हैं। यहां मंगल मूर्ति की कृपा से घनघोर जंगल में भी मंगल जैसा माहौल रहता है।