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छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में प्रचार अभियान अब अपने चरम पर पहुंच चुका है क्योंकि प्रचार अभियान थमने में अब केवल एक सप्ताह का ही समय शेष बचा है। जहां यह उपचुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बीच सीधे-सीधे प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है तो वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी के लिए फिर से अपनी पार्टी की जीत का परचम लहराना राजनीतिक अस्तित्व से जुड़ गया है, क्योंकि इस उपचुनाव में वह कुछ खास नहीं कर पाए तो फिर छत्तीसगढ़ के राजनीतिक पटल पर जोगी कांग्रेस के भविष्य को लेकर एक बड़ा सवालिया निशान लग जायेगा। यदि अपनी पार्टी का कुछ रहा-सहा प्रभाव अमित जोगी को कायम रखना है तो इस सीट पर कुछ चमत्कार करके दिखाना होगा, जिसकी फिलहाल कोई विशेष सम्भावना नजर नहीं आ रही है। कांग्रेस की ओर से सारा दारोमदार भूपेश बघेल पर आकर टिक गया है तो भाजपा में भी असली भूमिका इस उपचुनाव में डाॅ. रमन सिंह की रहने वाली है, क्योंकि आजकल राजनीति चेहरों की हो गयी है और फिलहाल ये दो चेहरे ही मुख्य तौर पर यहां अपनी-अपनी पार्टियों की नुमाइंदगी करते हैं। मतदाताओं के मन में कांग्रेस के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए भूपेश बघेल ने उनकी यह चिरपरिचित मांग कि खैरागढ़ को जिला बना दिया जायेगा, को पूरा
करने का इस शर्त पर भरोसा दिलाया है कि उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार यशोदा वर्मा के चुनाव जीतने के बाद 24 घंटे के अंदर खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा की जायेगी और यहां विकास की रफ्तार अत्याधिक बढ़ा दी जायेगी। पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा नेता रमन सिंह कह रहे हैं कि तीन साल में भूपेश बघेल सरकार ने चुनाव के समय किए गए अपने वायदों को पूरा नहीं किया है तो आगे जो भी वायदे कर रहे हैं उन्हें कैसे पूरा करेंगे। अब यह तो नतीजों से ही पता चल सकेगा कि मतदाताओं ने किसके वायदों पर भरोसा किया या किसी दल के अस्तित्व रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।
भूपेश बघेल ने उपचुनाव के लिए स्थानीय लोगों की मांगों को लेकर एक 29 सूत्रीय घोषणा पत्र भी जारी किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि छत्तीसगढ़ में पिछले तीन सालों में विकास ने तेज रफ्तार पकड़ी है और यहां के लोगों की इच्छानुसार विकास के कामों को और गति दी जायेगी। उनके अनुसार कांग्रेस पार्टी आम जनता की आवाज है तथा मतदाताओं को जो वायदा कर रहे हैं उसे हम तेज गति से पूरा करेंगे। पन्द्रह साल चली भाजपा की रमन सिंह सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए बघेल ने कहा कि भाजपा ने जनता को गुमराह किया, किसानों, बेरोजगारों, मजदूरों व आम जनता के सामने केवल बड़ी-बड़ी बातें कीं और उसकी कथनी व करनी में जमीन आसमान का अन्तर रहा है। उपचुनाव का प्रभार वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे को सौंपा गया है। रविन्द्र चौबे अविभाजित मध्यप्रदेश में भी दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में एक प्रभावी, व्यवहार कुशल और परिणामोन्मुखी मंत्री रहे हैं तथा छत्तीसगढ़ में भी उनका अपना इस इलाके में अच्छा-खासा असर है। ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर अपने आपमें संजोये खैरागढ़ का अपना अच्छा-खासा महत्व है और यहां का चुनावी नतीजा बहुत कुछ आदिवासी समाज पर निर्भर करेगा और उसका झुकाव जिस तरफ होगा वह दल आसानी से चुनाव जीत जायेगा। जहां तक इस क्षेत्र में जातिगत समीकरणों का सवाल है यह इलाका लोधी बहुल है, लेकिन मजेदार बात यह है कि भाजपा व कांग्रेस दोनों ने ही इसी समुदाय ये अपने प्रत्याशियों का चयन किया है। इसलिए यह माना जा सकता है कि यहां पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई हो रही है।
खैरागढ़ में राजपरिवार और रियासतों का दबदबा रहा है लेकिन लगता है कि जोगी कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद अब शायद इनका वर्चस्व यहां की राजनीति से सिमट जाये। जोगी कांग्रेस ने देवव्रत सिंह के रिश्तेदार नरेन्द्र सोनी को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वह इस चुनाव में केवल वोट-कटवा उम्मीदवार बन कर रह जायेंगे। भाजपा ने अपने पुराने उम्मीदवार कोमल जंघेल पर ही दांव लगाया है जो कि 2018 के विधानसभा चुनाव में देवव्रत सिंह से महज 870 वोटों से पराजित हो गये थे। पूर्व में जंघेल विधायक एवं संसदीय सचिव रह चुके हैं, लेकिन कांग्रेस ने एक नये और महिला चेहरे पर दांव लगाते हुए यशोदा वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। यशोदा वर्मा को पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह एक ऐसा अन्जान चेहरा मानते हैं जिन्हें उनके अनुसार कांग्रेस कार्यकर्ता तक नहीं पहचानते, ऐसे में कांग्रेस चुनाव कैसे जीतेगी। यशोदा वर्मा कांग्रेस की पदाधिकारी हैं तथा जिला पंचायत की राजनीति में सक्रिय रही हैं और वर्तमान में वह लोधी समाज की महिला इकाई की जिला अध्यक्ष भी हैं। जहां तक भाजपा के कोमल जंघेल का सवाल है उनका नाम पूरे क्षेत्र में जाना-पहचाना है, लेकिन उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाने पर भाजपा के ही कुछ नेता अनमने हैं। हालांकि इस पार्टी का मजबूत संगठन है इसलिए पार्टी मानती है कि इक्का-दुक्का नेताओं के अनमने होने से उपचुनाव के नतीजों पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। चूंकि इस क्षेत्र में साहू और आदिवासी मतदाताओं की संख्या भी अच्छी-खासी है इसलिए कांग्रेस ने साहू वोटरों के लिए गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को आगे किया हुआ है तो आदिवासी वोट जो कुछ अपवादों को छोड़कर सामान्यत: कांग्रेस के साथ रहा है उन्हें अपने पाले में लाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम व मंत्री अमरजीत भगत को दूरस्थ अंचलों में जिम्मेदारी सौंप रखी है। भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय राज्यमंत्री प्रहलाद पटेल भी चुनाव प्रचार के अंतिम अंतिम चरण में यहां आ सकते हैं। भाजपा की रणनीति यह है कि राजपरिवार के समर्थकों को अपने साथ जोड़ने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका होगी तो लोधी वोटरों के बीच प्रहलाद पटेल भी काफी असरदार साबित होंगे। जबकि कांग्रेस ने वरिष्ठ मंत्री तथा सरगुजा राजपरिवार के टीएस सिंहदेव को भी प्रचार में लगा रखा है ताकि राजपरिवार का समर्थन भी कांग्रेस को मिले क्योंकि यह राजपरिवार कांग्रेस के साथ माना जाता रहा है।
और यह भी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह लम्बे समय से विंध्य क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं और रुठ कर कांग्रेस से जा चुके लोगों के साथ अन्य लोगों को भी पार्टी से जोड़ रहे हैं ताकि पार्टी को फिर से इस इलाके में मजबूती मिल सके। भाजपा की रीति-नीति पर भी वह इन दिनों काफी आक्रामक हैं और उनका कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सरकार बनाने के लिए थोक में विधायकों की खरीद-फरोख्त की एक नई परम्परा की शुरुआत राज्य में की है जिसके चलते राजनीति की पूरी परिभाषा ही प्रदेश में बदल गयी है। मैहर में जन समस्याओं को लेकर कांग्रेस द्वारा आयोजित धरना प्रदर्शन में भाग लेते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि थोक में विधायकों की खरीद फरोख्त हुई है और जब लेन-देन का सवाल आता है तो अंततः जनता ही परेशान होती है। उनका आरोप था कि अब थोक में बिजली बिलों की वसूली हो रही है क्योंकि पूरी सरकार ही शिवराज ने खरीद ली है तब जनता की चिन्ता क्यों होगी। अब केवल धरना-प्रदर्शन से काम नहीं बनेगा, अब जनता की ओर से आवाज उठाना चाहिये कि बहुत हो गया और नहीं सहेंगे और आगे अब सरकार का फैसला करेंगे। यदि आम आदमी यह सिलसिला शुरु करेगा तभी सरकार घुटने टेकेगी क्योंकि मतदाताओं ने तो कांग्रेस की सरकार बनाई थी। अजय सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिल चुके हैं। अरुण यादव ने भी अब प्रदेशव्यापी दौरा करने का ऐलान कर दिया है। देखने वाली बात यही होगी कि कांग्रेस में बदलाव की जो बयार आने वाली है उसमें इन दो नेताओं को क्या अहम जिम्मेदारियां मिलती हैं क्योंकि दोनों के साथ अपनी-अपनी राजनीतिक विरासत भी है।
–लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक है
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