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30 वर्ष तक ग्रहण नहीं किया अन्न का एक भी दाना, कौन हैं जबलपुर की उर्मिला चतुर्वेदी

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 जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर निवासी संकल्पवान मातृशक्ति उर्मिला चतुर्वेदी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 30 वर्ष तक अन्न का एक भी दाना ग्रहण नहीं किया। रामकृपा के साथ महज, केला, दही, दूध, चाय, उबली लौकी व उबले आलू जीवनी-शक्ति के आधार बने रहे। छह दिसंबर, 1992 का बाबरी विध्वंस के दिन से अखंड उपवास का श्रीगणेश किया, जो 84 वर्ष की आयु में 30 सितंबर, 2022 को साकेत-गमन तक अडिग रहा। वह नवरात्र की पंचमी तिथि थी, जब रात्रि 12 से प्रात: पांच बजे के मध्य उन्हाेंने नश्वर देह का त्याग कर दिया। उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए पुत्रियों डा.कल्पना मिश्रा व चेतना तिवारी ने नर्मदा किनारे से उनकी अस्थियों का अंश अयोध्या ले जाकर सरयू में प्रवाहित किया।

साक्षात्कार जो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ

22 जनवरी, 2024 को उर्मिला चतुर्वेदी का संकल्प आधारित स्वप्न पूर्ण होने जा रहा है, जब अयोध्या में नव्य-भव्य श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में रामलला के श्रीविग्रह की प्राणप्रतिष्ठा होगी। दरअसल, नौ नवंबर, 2019 को जब अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आया और पांच अगस्त, 2020 को श्रीराम मंदिर के भूमिपूजन का दिन निश्चित हुआ, तब स्थानीय मीडिया द्वारा रामलला के लिए आजीवन अन्नाहार त्याग व्रतधारी इस अनूठी नारी रत्न का साक्षात्कार लिया गया, जो इंटरनेट मीडिया पर भी वायरल हुआ।

अभिनंदन किया, जिसे उन्होंने निस्पृह भाव से ग्रहण किया था

तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य दिनेश सहित अन्य ने उनकी साधना का अभिनंदन किया, जिसे उन्होंने निस्पृह भाव से ग्रहण किया था। इससे पूर्व विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डा.प्रवीण भाई तोगड़िया अपने जबलपुर प्रवास के दौरान अभिनंदन कर चुके थे।

सपने में दिखता था श्रीराम मंदिर, भूमिपूजन के बाद सामने आया माडल था हूबहू

गृहस्थ साध्वी उर्मिला चतुर्वेदी के पुत्र देश-दुनिया में चर्चित व बहुप्रशंसित काव्य-पुस्तक ‘स्त्रियां घर लौटती हैं‘ के रचयिता, समकलीन युवा कवियों में अग्रणी विवेक चतुर्वेदी बताते हैं कि मां को सपने में भी श्रीराम मंदिर दिखता था। आश्चर्य किंतु सत्य यह कि उनके इहलोक से परलोक गमन से पूर्व भूमिपूजन के बाद श्रीराम मंदिर का जो प्रस्तावित माडल दिखाई पड़ने लगा, वह लगभग वैसा ही था, जैसा वह अपने सपने में देखती रहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मां को भविष्य में साकार होने वाले श्रीराम मंदिर का पूर्वाभास हो गयाा था। निस्संदेह यह उनकी सतत साधना व संकल्प का ही परिणाम था।

राम ने सुन ली, कोरोना लाकडाउन हटने के बावजूद जीवन रहते नहीं टूटा महाव्रत

महाव्रत परायण के प्रश्न पर वे स्पष्ट शब्दों में कह देती थीं कि जब तक रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अपने आंखों से नहीं देख लेती, उपवास नहीं तोडूंगी। यह प्रक्रिया अयोध्या जाकर ही सम्पन्न करूंगी। किंतु स्वास्थ्यगत स्थिति के कारण शुभचिंतकों व स्वजनों ने दबाव बनाया। अतएव, कोरोना लाकडाउन हटने के बाद 18 अक्टूबर, 2022 की तिथि निर्धारित हुई। किंतु वे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तक उपवास न तोड़ने का संकल्प मन ही मन दोहरा रही थीं। कदाचित इसीलिए राम ने उनकी सुन ली और निर्धारित महाव्रत परायण तिथि से 18 दिन पूर्व ही अपनी प्रिय अखंड उपवासधारी मातृशक्ति को साकेत लोक बुला लिया।

कौन थीं जबलपुर की उर्मिला

आठ अगस्त, 1938 को जिला बांदा के प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में जन्मीं और चित्रकूट नरेश नाथूराम चतुर्वेदी के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर मनोहर लाल चतुर्वेदी से विवाहित रामप्रसाद गंगेले की सुपुत्री उर्मिला कालक्रम के थपेड़े खाते अपने परिवार के साथ कभी जबलपुर आ गई थीं और फिर यहीं रह गईं। इससे पूर्व उन्होंने चित्रकूट नयागांव रियासत का वैभव देखा था किंतु स्वभाव से भक्तिपूर्ण होने के कारण सदैव विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनी रहीं। कला व शिक्षा स्नातक के साथ हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर होने के साथ-साथ शैक्षणिक अभिरुचि के कारण राजहंस संस्कृत विद्यालय, भेड़ाघाट में भारतीय संस्कृति के अध्यापन में जुटी रहीं।

छात्रावास व्यवस्थापन व संस्कृत अध्यापन भी किया

देश के प्रतिष्ठित भारत-भारती विद्यालय में छात्रावास व्यवस्थापन व संस्कृत अध्यापन भी किया। हनुमत चरित्र चित्रण व श्रीमद्भागवत की पुण्य अमृत बूंदें जैसे ग्रंथों की रचना की। श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए साधना व संकल्प को और प्रखर करने का आह्वान किया। कालांतर में आधुनिक विवेकानंद निवर्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि महाराज से गुरु दीक्षा प्राप्त की। उनके समाजहितकारी कार्यों की प्रशस्ति में सस्वती, प्रियदर्शिनी, साधना यथ अर्चन सहित अन्य अलंकरणों से विभूषित किया गया।

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