• सांची-विदिशा के प्राचीन ट्रेड रूट को जाना छात्रों ने
• ‘बुद्ध की शिक्षाएं जीवन में अति उपयोगी’
सांची रायसेन।जबलपुर के ज्ञानगंगा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के छात्रों की एक टीम आज सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय पहुंची। शैक्षणिक भ्रमण के उद्देश्य से ज्ञानगंगा इंस्टीट्यूट के प्रो. विजय कर्माकर के नेतृत्व में इस छात्र दल का विश्वविद्यालय में स्वागत किया गया।
छात्रों को विश्वविद्यालय भ्रमण के साथ-साथ सांची विश्वविद्यालय के स्थापना के उद्देश्य से अवगत कराया गया। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने कॉमर्स छात्रों के इस दल को बताया कि भारत की प्राचीन परंपरा में सांची और विदिशा कैसे ट्रेड रूट हुआ करते थे और भारत के भुगतान संतुलन का पूरा दुनिया लोहा मानती थी। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में भारत का 34 प्रतिशत योगदान विश्व जीडीपी को होता था क्योंकि भारत मसालों, दवाओं इत्यादि का उत्पादक देश हुआ करता था। छात्रों को दिए गए विशेष व्याख्यान में प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि उस काल में भारत के समस्त उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होते थे।
विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक्स प्रो. नवीन कुमार मेहता ने छात्रों के साथ संवाद में कहा कि सांची विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य नए ज्ञान का सृजन और प्राचीन ज्ञान को नए रूप से विश्व के समक्ष प्रस्तुत करना है। उन्होंने छात्रों को कई नए एन्टरप्रोन्योर की किताबें, उनकी जीवनी पढ़ने, उनके कार्यों का अध्ययन करने के लिए उभारा। उन्होंने कहा कि वे जीवन के समस्त कार्य नियमानुरूप करेंगे तो समाज और देश दोनों का फायदा होगा।
ज्ञानगंगा इंस्टीट्यूट के प्रो. विजय कर्माकर ने कहा कि बौद्ध अध्ययन के अंतर्गत दी जाने वाली शिक्षाएं हर समय काम आती हैं। उन्होंने छात्रों को विभिन्न भाषाओं को सीखने पर ज़ोर दिया। ज्ञानगंगा जबलपुर के छात्रों के दल ने सांची स्तूप और उदयगिरि की गुफाओं को भी अपने इस शैक्षणिक भ्रमण के दौरान देखा।