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विशेष टिप्पणी ::चंद्र विजय : अब दक्षिण को अशुभ न कहे कोई…! अजय बोकिल

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सौंदर्य और शीतलता, ताब और दाग के प्रतीक चंद्रमा पर 23 अगस्त के ( धरती पर) सूर्यास्त के समय हुआ भारतीय विज्ञान का सूर्योदय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुका है। इस बार समूचे भारत के दिल में विश्वास तो था, लेकिन मन में हल्की सी धुकधुकी भी थी कि कहीं 2018 वाला अनचाहा प्रसंग न दोहराया जाए। लेकिन हमारे वैज्ञानिको की प्रतिभा और संकल्प ने उस अशुभ विचार को इस बार पृथ्वी तो क्या चांद के गुरूत्वाकर्षण से भी बाहर रखा। सब कुछ तय शुदा तरीके से, वैज्ञानिक स्क्रिप्ट के हिसाब से होता गया। बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान 3 के 4 के पैरों ने चांद की धरती को चूम लिया। इस अद्भुत चुंबन की कौंध को भारत के 140 करोड़ लोगों ने महसूस किया। अंतरिक्ष की इस महाविजय ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि भारत सैन्य विजयों में नहीं, संकल्प विजयों में भरोसा करता है। एक महाकठिन सा मिशन अब कामयाबी के रूप में हमारे सामने है। गर्व से कहो, हमने चांद को जीत लिया है।


चंद्रयान 3 का मिशन कई मायनो में अहम है। पहला तो यह कि वैज्ञानिक मिशन महज टोटकेबाजी से पूरे नहीं होते। याद करें 2018 में आखिरी घड़ी में नाकाम रहा चंद्रयान 2 का ‍िमशन। जिसकी असफलता के बाद इसरो के चेयरमैन बच्चों की तरह फफक कर रो पड़े थे और कुल पिता की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनको ढाढस बंधाया था। इसमें यह भाव निहित था कि असफलताएं ही सफलता का राजमार्ग तैयार करती है। नाकामियों पर रोने की जगह उसे नई चुनौती के रूप में स्वीकार करें। गलतियों से सबक लेना और अगली बार उसे न दोहराना ही मनुष्य की ‍िजजीविषा और अथाह मेधा की पहचान है। इसरो के वैज्ञानिको ने वही कर दिखाया। इस बार ‘जीरो मिस्टेक’ मिशन पर काम हुआ और नतीजा सामने है। हो सकता है कि चांद का असल चेहरा, उसकी गड्ढों भरी सतह की तस्वीरें, उसकी बेहवा फिजां शायरों का हौसला कुछ कम करे, लेकिन एक सक्षम राष्ट्र के रूप में भारत का तिरंगा वहां गड़ चुका है।


हमारे वैज्ञानिकों ने एक और धारणा को ध्वस्त किया है। चंद्र मिशन के लिए चांद के उस दक्षिणी ध्रुव को चुना गया, जहां अभी तक कोई नहीं पहुंचा था। चंद्रमा के अंधेरे में डूबे दक्षिणी हिस्से में रहस्यों के खजाने छिपे हैं। मिशन चंद्रयान उनकी कुछ पर्तों को खोलेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो हमने चांद पर दक्षिण द्वार से प्रवेश कर विजय पताका फहराई है, उस दक्षिण दिशा को, जिसे भारतीय परंपरा में ‘अशुभ’ से जोड़ दिया गया है। इसीलिए लोग दक्षिण मुखी घर, दक्षिण दिशा में जाने आदि को टालते हैं। क्योंकि दक्षिण में मृत्यु के देवता यम का निवास है। मानो दक्षिण दिशा मृत्यु का तोरण द्वार हो। पारंपरिक मान्यताअोंके अपने आधार और आग्रह हो सकते हैं लेकिन विज्ञान के लिए दक्षिण एक दिशा भर है, जिसके जरिए ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना जा सकता है। इन रहस्यों को जानना और मानव कल्याण के लिए उनका उपयोग करना ही विज्ञान का सच्चा धर्म है। इस बार समूचे देश ने मिशन चंद्रयान की सफलता की कामना की। गनीमत रही कि किसी ने चंद्रयान के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने को लेकर आशंका का धुआं उड़ाने की हिमाकत नहीं की। लिहाजा वैज्ञानिक पूरे मनोयोग से अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके। चंद्रयान 3 की कामयाबी में राजनीतिक चांदनी भी महसूस की गई। यह इस मायने में सही है कि आज देश का नेतृत्व जिनके हाथो में है, उनका संकल्प और योगदान तो है ही। लेकिन सफलता का पहला श्रेय तो हमारे उन वैज्ञानिकों को है, जो जी जान से इस मिशन में लगे रहे और उनमें से ज्यादातर ये देश उतना भी नहीं जानता जितना सोशल मीडिया पर बेहूदा डांस या कमेंट करने वालों को जानता है। यह इस देश की नाकामी है।

चंद्रयान के लिए अगले 14 दिन काफी महत्वपूर्ण है। चांद की धरती को चूमना ही काफी नहीं है, उसके आगे विक्रम और प्रज्ञान को काफी काम करना है। यकीनन हम चांद को देखकर खुश होते हैं, पर चांद इन विज्ञान यांत्रिकों को देखकर कौतुहल के साथ मुस्कुरा रहा होगा।

लेखक ‘सुबह सवेरे’ के वरिष्ठ संपादक हें।

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