दूसरे कि उन्नति को देखकर जलना नहीं चाहिये उसकी उन्नति के कारण से सीखना चाहिये-आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
सुरेन्द्र जैन रायपुर
संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि दूसरे कि उन्नति को देखकर जलना नहीं चाहिये जबकि उसकी उन्नति का क्या कारण है इसे देखकर उससे सीखना चाहिये और अपनी अउन्नति के कारण को भी देखना चाहिये | कई बार कारण ज्ञात नहीं होता है तो पक्ष और विपक्ष रखकर भी देखा जाता है | आज आपके सामने एक ऐसा पक्ष लाकर रख रहे हैं कि आपके पंख उड़ने लायक हो जाये | एक आँख से हम देख सकते हैं, एक पैर से हम चल सकते है जबकि एक पंख से पक्षी उड़ नहीं सकता है | दो व्यक्ति है एक के पास बहुत पैसा है और दूसरे के पास भी बहुत पैसा है दोनों में कोई अंतर नहीं है तो कोई बात नहीं | लेकिन एक के पास 21 है और दूसरे के पास यदि 19 या 20 है तो 21 वाला अन्दर ही अन्दर खुश हो जाता है कि वह दूसरे से आगे है | ऐसा क्यों होता है इसका क्या कारण है इसके बारे में कभी आपने विचार किया है ? विद्यार्थी भी कक्षा में परीक्षा के बाद जब रिजल्ट आता है तो वह दूसरे कि ओर देखता है और सोचता है कि मेरा नंबर सबसे ज्यादा आये और दूसरे का नंबर उससे कम ही आये | जबकि उन्हें यह सोचना चाहिये कि उसकी उन्नति का क्या कारण है और उसे देखकर सीखकर अपनी उन्नति करना चाहिये | सर्वार्थसिद्धि में जिन महिमा का मंडन किया गया है जिसमे जिनेन्द्र भगवान के गुणों को बताया गया है | सौधर्म इंद्र अपने परिवार के सदस्यों को कहता है कि सभी को भगवान के समवशरण में चलना है तो परिवार के सभी सदस्य चलने को तैयार हो जाते हैं लेकिन परिवार में कुछ सदस्य ऐसे होते हैं जो आना कानी करते है | लेकिन सौधर्म इंद्र के कहने पर साथ में चले जाते है फिर समवशरण में पहुचते ही सौधर्म इंद्र अपना सारा वैभव भगवान के सामने बिखेर देता है और भक्तिमय होकर ताण्डव नृत्य करने लग जाता है जिसे देखकर सभी देव ताली बजाने लग जाते हैं (वैसे तो देव कभी ताली बजाते नहीं है लेकिन सौधर्म इंद्र कि भक्ति में सभी उत्साहित होकर ताली बजाने लगते हैं ) | भगवान का सिहासन कमल के जैसा होता है और भगवान उससे 4 उंगल ऊपर उठकर विराजमान रहते हैं | सौधर्म इंद्र अपना किरीट (मुकुट) उतारकर भगवान के चरणों में रख देता है और चरणरज (वहाँ चरणरज तो होता नहीं है लेकिन यह सम्मान का प्रतिक है कि चरण छूकर ललाट पर लगा लेते हैं) को अपने माथे में लगा लेता है | यह देखकर जो सदस्य यहाँ आने के लिये आना कानी कर रहा था वह अपने आप को धन्य मानता है कि सौधर्म के साथ आकर ऐसा समवशरण का दर्शन प्राप्त हुआ | वह सौधर्म इंद्र को देव समझता था उसे प्रतिदिन प्रणाम करता था आज वह सौधर्म इंद्र भी इस देवो के देव के सामने अपना सर झुका (नतमस्तक हो जाता है ) रहा है | वह भी भगवान को प्रणाम करता है और वह सोचता है कि यदि आज यहाँ नहीं आता तो जीवन बेकार था इसके सामने कुछ है ही नहीं आज जीवन सार्थक हो गया | आपकी दृष्टि इधर उधर जा सकती है लेकिन भगवान कि दृष्टि नाशा दृष्टि होती है जिसको कोई आशा नहीं होती वही नाशा दृष्टि होती है | एक तरफ जड़ है और एक तरफ चेतन है | समवशरण में भगवान के साक्षात दर्शन होता है यहाँ (धरती पर) हम उनका बिम्ब स्वरुप में दर्शन कर रहे हैं | वह भगवान के साक्षात दर्शन कर जीवन को सुसंस्कारित कर लिया और आह्लाहिद हो गया अब क्या करना है ? अब कषायों का उन्मूलन करना है और मोक्षमार्ग में चलकर मुक्ति को प्राप्त करना है | भगवान से यही प्रार्थना है कि जैसे आपके गुण प्रगट हुए ऐसे ही हमारे गुण भी प्रगट हो जाये | भगवान के दर्शन मात्र से कई लोगो को सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाता है | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य अष्टम प्रतिमा धारी सुधा जी बेन परिवार को प्राप्त हुआ