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वैराग्य भीतर से उमड़ता है -आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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सुरेन्द्र जैन रायपुर

संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि महल के अंतिम छत पर बैठ करके चारों तरफ निगाह दौड़ रही थी और एक से एक, रंग बिरंगी बादलों कि टुकडियां यत्र – तत्र विचरण कर रही थी | उसमे से एक टुकड़ी मन को आकर्षित करने वाली थी, मनोग्य थी | उसने सोचा इसका ज्यों का त्यों चित्र निकाल लिया जाये जो राजकुमार आदि के लिये काम में आ जायेगा | स्याही, कुंजी और कागज़ लेकर वह हू ब हू चित्र बनाना प्रारंभ करता है और कुंजी में स्याही लेकर उसमे रंग भरता जाता है | जैसे ही वह उस रंग बिरंगे बदल कि टुकड़ी कि ओर पुनः देखता है तो वह वहाँ से गायब हो चुकी थी | तब उसे यह संसार कि नश्वरता का बोध हो जाता है कि इस संसार में जो भी है वह नश्वर है यहाँ कोई भी अनश्वर नहीं है | जब यह भाव अन्दर उमड़ा तो ऊपर छत से सिधे निचे आये और जंगल कि ओर चले गए | फिर जंगल में मुनि दीक्षा लेकर तपस्या कि और केवल ज्ञान को प्राप्त कर समवशरण में उपदेश दिया फिर मोक्ष को प्राप्त कर अक्षय पद प्राप्त किया | यह थी भगवान धर्मनाथ तीर्थंकर के जीवन में आये वैराग्य कि घटना | मनुष्य को दो प्रकार से वैराग्य आ सकता है एक को बोधित बुद्ध कहते हैं जिसमे वैराग्य संबोधन, उपदेश आदि के माध्यम से आता है और दूसरे में उपदेश नहीं होता बल्कि कोई घटना या स्वयं का बोध होने पर अन्दर से वैराग्य उमड़ जाता है | तीर्थंकर वासुपूज्य के जीवन में कभी कोई घटना देखने में नहीं आई फिर भी उनको वैराग्य हुआ क्योंकि इनमे मति, श्रुत आदि ज्ञान रहता है | ये स्वयं ही स्वयंभू है | आचार्य कहते हैं कि इन्हें संसार के सम्पूर्ण तीन खंड में किसी कि भी आवश्यकता नहीं होती है | समवशरण में असंख्यात देवी देवता, मनुष्य, तिर्यंच आदि रहते हैं यह सारा वर्णन आचार्यों द्वारा शास्त्रों के माध्यम से बताया गया है वैराग्य कहने से नहीं होता उपदेश से होता तो है लेकिन यह भीतर कि बात है | जब आप लोग भोजन बनाने के लिए बर्तन में भोजन सामग्री डालते हो फिर उसमे पानी डालकर उसे अग्नि के ऊपर रखते हो फिर वह भोजन पकने लगता है और उसकी सुगंध आपको आकृष्ट करती है और अपनी तरफ बुलाती है | घर में किसी अच्छे या बुरे व्यक्ति का वियोग होता है तो आप घर नहीं छोड़ते हैं | उनकी संपत्ति पहले अपने नाम करते हो | यह सब आप लोगो के बीच कि घटना का बोध हमें भी हो जाता है | सांसारिक सामग्री से जो प्रभावित होता है उसे इन घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है वह इसमें और आगे बढ़ते चले जाता है | भगवान महावीर स्वामी का जीव भी इसी संसार में कई भवों तक भटकता रहा | आगे वाला आगे रहता है और पीछे वाला पीछे रहता है लेकिन जैसे ही पीछे वाले का भाव बनता है तो वह आगे वाले से आगे हो जाता है| 8 वर्ष अंतर्मुहूर्त होते ही केवल ज्ञान हो जाता है फिर अंत में मोक्ष हो जाता है | सौधर्म इंद्र का वैभव रहता है वह कुछ काम से घर से बाहर निकलता है फिर पुनः घर वापस लौट जाता है वह विषयों में ही लिप्त रहता है | आप तो कम से कम उपवास आदि संयम रखते हो उसको जैसे ही भूक लगती है तो उसके कंठ से अमृत झर जाता है और वह तृप्त हो जाता है | श्रमण के चरणों में नत मस्तक हो जाता है | वह वैभवशाली है तो यहाँ वैशाली है यह रहस्य है | छोटे कि ओर आकर्षण ज्यादा होता है | अब दादा को बेटा अच्छा नहीं लगता नाती अच्छा लगता है | नाती भी उन्ही कि गोद में जाकर बैठ जाता है | यह राग है | नाती भी दादा से कह सकता है कि मै केवल ज्ञान प्राप्त करने जा रहा हू आप भी चलोगे | जो कल आये थे वो आज नहीं आये, जो आज आये हैं वो कल नहीं आयेंगे | यहाँ नए – नए लोग आते हैं लेकिन वैरागी बहुत कम ही आते हैं | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने केशलोंच किया और आज उनका उपवास है

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