कर्नाटक में 16वीं विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब चंद घंटे बचे हैं। शनिवार को यहां तस्वीर साफ हो जाएगी कि इस बार सत्ता की चाबी किस दल के पास रहेगी। राज्य की 224 सीटों के लिए बीते 10 मई को वोटिंग हुई थी। इस बार मतदाताओं ने उत्साह दिखाया। इसके चलते 65 प्रतिशत वोट पड़े। कर्नाटक की16वीं विधानसभा के परिणाम पर पूरे देश की निगाहें हैं। राजनीतिक दलों में तो जीत की होड़ है ही लेकिन जहां तक राज्य की स्थिरता का सवाल है, आगामी परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हैं। कारण यह है कि बीती विधानसभा के पूरे 5 साल राज्य में सरकारों की अनिश्चतता और अस्थिरता रही। 2018 से 2023 तक आते-आते यहां चार मुख्यमंत्री बदल गए। ये सभी दलों के थे। जब राज्य में अस्थिर सरकार होती है तो वहां के सामान्य प्रशासन, विकास कार्य, बजट और अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है। ऐसे में कल आने वाले चुनाव नतीजे राज्य के भविष्य के लिए भी बहुत मायने रखते हैं।
बहुत उथल-पुथल भरी रही 15वीं विधान सभा
कनार्टक में 15वीं विधानसभा बहुत उथल-पुथल भरी रही। इसका गठन 16 मई, 2018 को हुआ था। भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। फिर उनकी सरकार गिर गई तो जेडीएस के एचडी कुमार स्वामी सीएम बन गए। यह सरकार अधिक दिन नहीं चल सकी और गिर गई। इसके बाद दोबारा येदियुरप्पा सत्ता में काबिज हुए लेकिन दोबारा सत्ता से हाथ धो बैठे। उनके बाद भाजपा के ही बस्वराज बोम्मई सीएम बने और अभी तक कायम हैं।
दो दिन में गिर गई थी येदियुरप्पा की सरकार
17 मई 2018 को बीएस येदियुरप्पा ने तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हालांकि उन्हें विधानसभा में बहुमत का समर्थन नहीं मिल सका और इसके बाद उन्हें कार्यभार ग्रहण करने के दो दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद एच.डी. कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। जुलाई 2019 में 17 विधायकों के इस्तीफे के साथ कुमारस्वामी की सरकार के बहुमत खो देने के बाद येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और इस बार सदन में अपना बहुमत साबित कर दिखाया। उपचुनाव में बीजेपी ने 15 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की और उनके नेतृत्व में 117 सीटों का बहुमत हासिल किया, जिससे उनकी जीत पक्की हो गई। येदियुरप्पा ने अपने चौथे कार्यकाल की दूसरी वर्षगांठ 26 जुलाई 2021 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 28 जुलाई 2021 को बसवराज बोम्मई ने उनकी जगह ली।
भाजपा से पहले सीएम बने, पार्टी छोड़ी, नई बनाई फिर विलय किया
इससे पहले वे 2008 में भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री बने थे। दक्षिण भारतीय राज्य में भाजपा के लिए यह पहली बार सत्तासीन होने का अवसर था। 2011 में भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपित होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। हालांकि इस मामले में उन्हें 2016 में बरी कर दिया गया था। येदियुरप्पा ने भाजपा छोड़ दी थी और अपनी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष का गठन किया था। लेकिन 2014 में उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया और बाद में शिवमोगा निर्वाचन क्षेत्र से 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसे उन्होंने मई 2018 के विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद छोड़ दिया था।
अविश्वास प्रस्ताव के बाद गिरी थी कुमार स्वामी की सरकार
संयोग देखिये कि येदियुरप्पा की सरकार गिरने पर एचडी कुमार स्वामी सीएम बने। फिर कुमार स्वामी की सरकार गिरी तो येदियुरप्पा सीएम बन गए। हरदनहल्ली देवेगौड़ा कुमारस्वामी ने 23 मई 2018 से 23 जुलाई 2019 तक कर्नाटक के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे कर्नाटक राज्य जनता दल (सेक्युलर) के पूर्व अध्यक्ष और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा के पुत्र हैं।
हालांकि वे पहले भी सीएम रह चुके हैं। कुमारस्वामी ने 2006 से 2007 और 2018 से 2019 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकालों में कार्य किया है। उन्होंने 23 जुलाई 2019 को अपनी गठबंधन सरकार द्वारा भारतीय जनता पार्टी के लिए 15 वीं विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
बसवराज बने सीएम, कर्नाटक को दिलाया यह गौरव
बीएस येदियुरप्पा ने अपने कार्यकाल की दूसरी वर्षगांठ पर 26 जुलाई 2021 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 27 जुलाई 2021 को बसवराज बोम्मई इस पद के लिए चुने गए। धर्मेंद्र प्रधान और जी. किशन रेड्डी को भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अगले मुख्यमंत्री के चयन के लिए भेजा था। उन्होंने अगले दिन कर्नाटक के 23वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के वे चौथे मुख्यमंत्री बने।
उनके कार्यकाल में कर्नाटक को उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल हुईं। अगस्त 2021 में बसवराज बोम्मई के कार्यकाल में ही कर्नाटक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना। पहले ही दिन कैबिनेट की बैठक के बाद उन्होंने किसानों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति देने की घोषणा की। उन्होंने विधवाओं, शारीरिक रूप से अक्षम और राज्य के वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन में भी वृद्धि की।
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