–पर्यटक स्थल पर दो दिन में एक बार पेयजलापूर्ति
देवेंद्र तिवारी साँची रायसेन
सांची विश्व विख्यात स्थल के रूप में विख्यात है यहां विकास सहित सुविधा की बड़ी बड़ी बाते सुनने देखने को मिल जाती है परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है कि अभी गर्मी अपने पूरे शवाब पर भी नहीं पहुंची थी के पेयजल का गंभीर संकट दिखाई देने लगा है नगर परिषद ने अब दो दिन में एक बार जलापूर्ति का नियम बना डाला । जिससे नगर में त्राहि-त्राहि मचने लगी है।
जानकारी के अनुसार यह स्थल एक जाना पहचाना स्थल है यहां देश सहित विश्व भर से लोग इस स्थल की ऐतिहासिकता से रूबरू होने आते जाते रहते हैं वैसे तो इस स्थल पर विकास के नाम पर करोड़ों रुपए फूंक दिए गए तथा विकास की बड़ी बड़ी बाते देखने सुनने में आती रहती है बावजूद इसके जमीनी हकीकत अपनी अनेक समस्याओं की गिरफ्त में जकड़े होने की बयां कर रही है एक ओर इस नगर में जल की कोताही नहीं सुनने मिलती इसके बाद भी अभी गर्मी ने अपना रूप दिखाया भी नहीं था कि लोगों के सामने पेयजल संकट खड़ा हो गया है इतना ही नहीं तथा नगर परिषद प्रशासन ने भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाते हुए आधे नगर को जलापूर्ति दो दिन में एक बार कर दी जबकि आधे प्रभावशाली नगर में हर दिन जलापूर्ति सुचारू चल रही है जिससे एक बार फिर नगर परिषद की कार्यप्रणाली नगर में चर्चित हो गई है दो दिन में एक बार होने के बाद भी जलापूर्ति का समय सुनिश्चित कर दिया गया है इसमें कभी कर्मचारियों की लापरवाही तो कभी बिजली की आंखमिचौली से लोगों को पेयजल आपूर्ति गड़बड़ा जाती है इसके साथ ही कभी कभी दो दिन में मिलने वाली जलापूर्ति में पाइप लाइन फुटने से भी बाधा खड़ी हो जाती है जबकि प्रभावशाली लोगों के लिए न तो कटौती न ही कोई समय सीमा ही रहती है जिससे कारण सड़कों पर आसानी से सैकड़ों लीटर पानी बह जाता है । एक तरफ कटौती तो दूसरी तरफ जिन क्षेत्रों में जलापूर्ति सार्वजनिक स्थलों पर होती है वहां लोगों को अपने वाहनों की आसानी से धुलाई करते देखा जा सकता है यहां प्रशासन नतमस्तक बनकर रह जाता है जिससे नगर की जलापूर्ति से आम आदमी प्रभावित होता दिखाई देता है परन्तु बत्तर हालात के चलते जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी से बचते दिखाई दे जाते हैं जिसका खामियाजा लोगों को भुगतने पर मजबूर होना पड़ता है। जबकि नगर के कुओं का तो अस्तित्व ही खत्म हो चुका है साथ ही नगर में सैकड़ों की संख्या में लगाये गये हेण्डपंपो का अस्तित्व भी लगभग समाप्त हो चुका है जिससे लोगों को पानी के लिए यहां वहां भटकने पर मजबूर होना पड़ता है।