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3 साल में 83 से घटकर 31 हजार पर पहुंचा किसानों के पंजीयन का आंकड़ा

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-समर्थन मूल्य पर अनाज बेचने में जिले के किसानों की घट रही रुचि

-व्यापारी को बेचने में तुरंत मिलता है कैश

शिवलाल यादव रायसेन

समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने किसानों की रुचि लगातार घट रही है।आलम यह है कि पिछले तीन सालों से पंजीयन घटकर 83 से 31 हजार पंजीयन घट कर रह गया है।
किसान रामस्वरुप राजपूत,भगतसिंह धाकड़ भगवान सिंह चैन सिंह संजय मीणा ने बताया कि बाजार में फसल बेचने में एक और फायदा है कि उन्हें दूर बने खरीद केन्द्रों तक अपनी फसल लेकर नहीं जाना पड़ती है। अकसर व्यापारी ही खेत तक आकर वहीं से फसल खरीद लेते हैं। छनाई और सफाई की जटिलता भी नहीं रहती है और रूपए भी नगद मिल जाते हैं। किसान मनोज कुशवाहा गोपालपुर ,मोहर सिंह ठाकुर कौशल सिंह सुरेश कुशवाहा का कहना है कि खरीद केन्द्रों पर फसल की राशि खातों में पहुंचती है। यदि किसान पर कर्ज है तो इसी राशि में से कर्ज की राशि काट ली जाती है। इससे किसान बाजार में अनाज बेचना पसंद करते हैं।
सांठगाठ में शामिल नहीं हो रहे अब ज्यादातार किसान…..
समितियों और व्यापारी की मिलीभगत के चलते किसानों के नाम पर फर्जी पंजीयन कराकर बाजार का गेहूं बेचने की सांठगाठ भी अब नहीं हो पा रही है। क्योंकि अब बाजार में समर्थन मूल्य से अधिक दाम पर गेहूं मिल रहा है। वहीं किसानों के साथ धोखाधड़ी के मामले सामने आने के बाद से किसान भी अब किसी के झांसे में नहीं आ रहे हैं।

 

समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने में नियम कायदों का जंजाल और बाद में भुगतान भी बड़ा कारण….
जिले में समर्थन मूल्य पर गेहूं व अन्य अनाजों की बिक्री में किसानों का रुझान लगातार घट रहा है। उपार्जन केन्द्रों पर आने वाली परेशानियां, पंजीयन को लेकर सर्वर डाउन की समस्या और फसल बेचने के बाद भुगतान के लिए इंतजार के चलते किसान बराबर दाम मिलने पर भी बाजार में फसल बेचने में रुचि दिखा रहे हैं।लेकिन पिछले तीन साल से समर्थन मूल्य से बाजार मूल्य ज्यादा मिलने से किसानों ने समर्थन मूल्य पर अनाज बेचने में रुचि घटा दी है। किसानों का पंजीयन 60 फीसदी तक घट गया है। जिले में वर्ष 2021 में जहां 83 हजार किसानों ने पंजीयन कराया था, वहीं 2022 में 58 हजार 640 किसानों ने समर्थन मूल्य पर अनाज बेचा। इस वर्ष समर्थन मूल्य पर उपज बेचने के लिए पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या सिर्फ 31 हजार 370 रह गई है।
भाड़े में अलग आता है खर्च…..
किसानों को समितियों तक गेहूं ले जाने पर वाहन के भाड़े का अतिरिक्त खर्च का भार पड़ रहा है। खरीदी के न्द्रो में गेहूं के पहुंचने के बाद समितियों द्वारा एक से दो दिन तक तौल नहीं कराया जाता है। गेहूं के एफएक्यू क्वॉलिटी को लेकर सर्वेयरों के द्वारा किसानों को बेवजह परेशान किया जाना। किसान रामकिशन विश्वकर्मा ,परसराम दांगी, सुरेश पाठक उपेंद्र शुक्ला का कहना है कि गेहूं शासन के नियमों में खरा है।फिर भी कृषक सेवा सहकारी समितियों के द्वारा कमीशन के लिए अमानक किए जाने का भय दिखाना। समितियों के द्वारा गेहूं की खरीदी के बाद ट्रांसपोर्टिंग के बाद ईपीओ जारी करना और इसके बाद एक सप्ताह में भुगतान होता है। किसान गुड्डू महाराज का कहना है कि तौल में अधिक खाद्यान्न लिए जाने की भी शिकायतें आती हैं। इन सब कारणों से भी किसानों का समर्थन मूल्य पर उपज बिक्री को लेकर रुझान कम होता जा रहा है।

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