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राष्ट्रपति ने किया 7वें अंतरर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन

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नए युग में मानववाद का सिद्धांत की थीम मंत्री सत्र में 4 देशों के मंत्रियों ने किया विचार, विश्व भर के 16 देशों से विद्वान शामिल

भोपाल।राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय और इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित 7वें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना के मूल में है। उन्होंने कहा कि महर्षि पंतजलि ने कहा दुखमेवं सर्वं विवेकिन बुद्ध ने कहा सर्वं दुखम् और नानक ने कहा नानक दुखिया सब संसार लेकिन पीड़ा के समाधान के लिए पंतजलि ने अंष्टांग योग का सुझाव दिया, बुद्ध ने अष्टांग मार्ग का सुझाव दिया और गुरु नानक ने नाम सिमरन का सुझाव दिया। नव युग में पूर्वी मानवतावाद पर केंद्रित धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, इंडोनेशिया, भूटान और श्रीलंका के मंत्री, संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर, राम जन्मभूमि ट्रस्ट गोविन्द देव गिरी , कोषाध्यक्ष, सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, डॉ. नीरजा गुप्ता, कुलपति।

 

राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि राष्ट्रपति भवन में भगवान बुद्ध की 1500 साल पुरानी प्रतिमा है। बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां और गया के बोधिवृक्ष से तैयार दो पौधे भी राष्ट्रपति भवन में स्थापित किए गए है। राष्ट्रपति ने कहा कि धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल रही है। धार्यते अनेन इति धर्म अर्थात जो सबको धारण करता है वहीं धर्म है।

राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल ने कहा कि दो धर्म संस्कृति के बीच सद्भाव और सांस्कृतिक अंतर्संबंधों में विचार किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि युद्ध और पीड़ा से कराहते विश्व के लिए पूरब का मानववाद सहायक सिद्ध होगा।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने उद्बबोधन में कहा कि हमारे यहां गांव गांव में बच्चा बच्चा धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण का घोष करता है जो भारतीय संस्कृति की विस्तृत परिधि को रेखांकित करता है। उन्होने कहा कि दशावतार में 3 अवतार मनुष्य नहीं है और नरसिंह अवतार में अर्धपुरुष और सिंह एक शरीर में है। मुख्यमंत्री ने सनातन संस्कृति में नदियों की पूजा, पेड़ों, पशु पक्षियों की पूजा का वर्ण करते हुए ज्ञान बोध के साथ आंतरिक शांति पैदा करने पर जोर दिया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि साँची विश्वविद्यालय की स्थापना प्रदेश के लिए सौभाग्य का विषय है। राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज ने कहा कि भारत भूमि, प्रकाश, ज्ञान और सीखने की भूमि है। हम किसी पर आक्रांता नहीं हुए, हमने सभी विचारों और विश्वासों का स्वागत किया है।

कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए सांची विवि की कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता ने कहा कि सांची अनूठी संस्कृतियों की संरक्षक और संवर्धक रही है और हमारे विश्वविद्यालय का सौभाग्य है कि शैशव अवस्था में ही माननीय राष्ट्रपति जी का आगमन हुआ है।
राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रो. एस. आर. भट्ट और सांची विवि की कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता द्वारा संपादित “द पेनारोमा ऑफ इण्डियन फिलॉस्फर्स एण्ड थिंकर्स” का विमोचन किया एवं राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु को इसकी प्रति भेंट की।

मंत्री सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्री राम माधव ने कहा कि हमारी संस्कृति में सब चेतन है। पश्चिम एक भगवान की कल्पना करता है वहीं पूर्व में कोई भी भगवान की बात करते हुए सर्व खल्विंद ब्रह्म और अंह ब्रहास्मि की बात होती है। भूटान के गृह मंत्री उग्योन दोर्जी ने वहां के समग्र खुशहाली पैमाने की बात की और पर्यावरण में सामाजिक जिम्मेदारी का उल्लेख किया। श्रीलंका के संस्कृति मंत्री विदुरा विक्रमनायके ने कहा कि पश्चिम में व्यक्तिवाद और भौतिकवाद है वहीं पूर्व में अध्यात्म पर जोर है। उन्होने कहा कि पूर्व एक दूसरे के विचारों के साथ जीना सिखाता है। दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया के बाली के उप राज्यपाल ने कहा कि उनकी संस्कृति में बहुत सी चीजें भारत से है। उनके मुताबिक मौजूदा दौर में समस्याएं या तो राजनैतिक है या फिर आर्थिक। उन्होने बताया कि बाली में हिंदू समाज न्यापी पर्व के दौरान 24 घंटे तक कोई गतिविधि नहीं करते जो कि पर्यावरण के प्रति सम्मान दिखाता है। उन्होने बाली में हिंदू धर्म को भारत का उपहार बताया। उन्होने इंडोनेशिया के कई पुराणों का जिक्र किया जिनका आधार बनाकर वहां नीति निर्धारित होती है। उन्होने अपने भाषण का अंत ऊं नमस्ते और ऊं शांति शांति शांति कहकर की। संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए पर्यावरण और परंपरा आधारित जीवन जीने का आव्हान किया। उन्होने सनातन पद्धति को सर्वश्रेष्ठ जीवन पद्धति बताया।

कीनोट सत्र में राम जन्मभूमि न्यास के सचिव स्वामी श्री गोविंद देव गिरी महाराज, श्रीलंका के पूजनीय प्रो कोटापितिये राहुल अनुष्का थेरो और स्वामीनारायण शोध संस्थान अक्षरधाम के महोमुखोपाध्याय श्री साधु भद्रेश दास जी ने विचार व्यक्त किये। मुख्य सत्र में अमेरिका से प्रो डेविड फ्रॉले, ब्रिटेन के डॉ इयान बेकर, दक्षिण कोरिया के प्रो. जियो ल्योंग ली, थाइलैंड से डॉ सुपची वीरपुचांग, चिन्मय मिशन के स्वामी मित्रानंद और पंजाब केंद्रीय विवि के चासंलर प्रो जगबीर सिंह ने पूर्वी मानववाद पर अपने विचार रखें।

कार्यक्रम में सांस्कृतिक समारोह में मध्यप्रदेश की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर की प्रस्तुति की गई। सबसे पहले अगवानी नृत्य किया गया। साथ ही देश विदेश में प्रसिद्धि पा चुके मध्य प्रदेश की धूलिया जनजाति के गुदुंग बाजा का प्रदर्शन किया गया एवं मां नर्मदा को समर्पित लोकगीतों की प्रस्तुति दी गई।

धर्म धम्म के वैश्विव विचारों को एक मंच प्रदान करने वाले इस सम्मेलन में 15 देशों से 350 से अधिक विद्वान शामिल हो रहे हैं। इस बार भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन से सम्मेलन में सहभागिता है। तीन दिन में 4 मुख्य सत्रों में 25 विद्वान अपने अपने विषय का निरुपण करेंगे। इसी दौरान 15 समानातंर सत्र भी होंगे जिनमें सम्मलेन की थीम नए युग में मानववाद का सिद्धांत (Eastern Humanism in New Era) पर केंद्रित 115 शोधपत्र पढ़े जा रहे हैं।

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