Let’s travel together.
nagar parisad bareli

नर्मदा जयंती::नर्मदा के दर्शन मात्र से मिलता है पुण्य लाभ

0 81

नर्मदा जयंती माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। धार्मिक ग्रंथों में यह तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। नर्मदा जीवनदायिनी मां है। यह पूरी दुनिया की अकेली रहस्यमयी नदी है। चारों वेद इसकी महिमा का गान करते हैं। इस बार मां नर्मदा की जयंती 7 फरवरी 2022, सोमवार को मनाई जा रही है। कैलेंडर के मत-मतांतर से नर्मदा जयंती कई स्थानों पर 8 फरवरी को भी मनाई जाएगी। कहते हैं कि कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा अमरकंटक के पर्वत पर 12 वर्ष की कन्या के रूप में नर्मदा को उत्पन्न किया गया।
नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि ‘प्रलय में भी उसका नाश न हो। उसका हर पाषाण शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो।’ 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योर्तिर्लिंग ओंकारेश्वर नर्मदा नदी के तट पर ही स्थित है। इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर, चंद्र द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि 55 तीर्थ भी नर्मदा के विभिन्न घाटों पर स्थित हैं। वर्तमान समय में तो कई तीर्थ गुप्त रूप में स्थित हैं।
पुराणों में नर्मदा जी- स्कंद पुराण के अनुसार, नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।
नर्मदा अनादिकाल से ही सच्चिदानंदमयी, आनंदमयी और कल्याणमयी नदी रही है। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में नर्मदा के महत्व का वर्णन मिलता है। नर्मदा शब्द ही मंत्र है। नर्मदा कलियुग में अमृत धारा है। नर्मदा के किनारे तपस्वियों की साधना स्थली भी हैं और इसी कारण इसे तपोमयी भी कहा गया है। विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि नाग राजाओं ने मिलकर नर्मदा को वरदान दिया है कि जो व्यक्ति तेरे जल का स्मरण करेगा उसे कभी सर्प विष नहीं फैलेगा।
नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त बतलाया गया है। वायु पुराण में उसे पितरों की पुत्री बताया गया है और इसके तट पर किए गए श्राद्ध का फल अक्षय बताया गया है। नर्मदा पत्थर को भी देवत्व प्रदान करती है और पत्थर के भीतर आत्मा प्रतिष्ठित करती है।

नर्मदा जी के अवतरण की कथा- एक बार भगवान शिव लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैखल पर्वत पहुंचे। उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई। जो शांकरी व नर्मदा कहलाई। शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भू-भाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैखल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैखल-सुता भी कहलाई।

एक दूसरी कथा के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश दिया। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा। इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं।
अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, शांडिल्य, कपिल आदि ऋषियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की है। ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर ही आदि शंकराचार्य ने शिक्षा पाई और नर्मदाष्टक की रचना की। भगवान शंकर ने स्वयं नर्मदा को दक्षिण की गंगा होने का वरदान दिया था। पुराणों के अनुसार नर्मदा का उद्भव भगवान शंकर से हुआ। तांडव करते हुए शिव के शरीर से पसीना बह निकला। उससे एक बालिका का जन्म हुआ जो नर्मदा कहलाई। शिव ने उसे लोककल्याण के लिए बहते रहने को कहा। कहते हैं कि वैशाख शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा में गंगा का वास रहता है।
नर्मदा का सफर- अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है। विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्यप्रदेश में यह प्रवाहित होती है। नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा का निर्माण नहीं करती। इसकी कई सहायक नदियां भी हैं।
नर्मदा परिक्रमा का महत्व- नर्मदा ही विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि मार्कण्डेय, अगस्त्य, महर्षि कपिल एवं कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है। शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है। मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
हमारे पुराणों में वर्णन है कि संसार में नर्मदा ही एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मावन आदि करते हैं। माघ शुक्ल सप्तमी पर अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक नर्मदा के किनारे पड़ने वाले ग्रामों और नगरों में उत्सव रहता है क्योंकि इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती है।

नर्मदा जयंती सोमवार, 7फरवरी 2022

माघ शुक्ल सप्तमी तिथि का प्रारंभ- 07 फरवरी, 2022 को प्रात:काल 04.37 मिनट से।

सप्तमी तिथि की समाप्ति- 08 फरवरी, 2022 को सुबह 06.15 मिनट पर।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

तलवार सहित माइकल मसीह नामक आरोपी गिरफ्तार     |     किराना दुकान की दीवार तोड़कर ढाई लाख का सामान ले उड़े चोर     |     गला रेतकर युवक की हत्या, ग़ैरतगंज सिलवानी मार्ग पर भंवरगढ़ तिराहे की घटना     |     गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों से गूंज उठा नगर     |     नूरगंज पुलिस की बड़ी करवाई,10 मोटरसाइकिल सहित 13 जुआरियों को किया गिरफ्तार     |     सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर एसडीओपी शीला सुराणा ने संभाला मोर्चा     |     सरसी आइलैंड रिजॉर्ट (ब्यौहारी) में सुविधाओं को विस्तारित किया जाए- उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल     |     8 सितम्बर को ‘‘ब्रह्मरत्न’’ सम्मान पर विशेष राजेन्द्र शुक्ल: विंध्य के कायांतरण के पटकथाकार-डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चंन्द्र     |     कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के छात्र कृषि विज्ञान केंद्र पर रहकर सीखेंगे खेती किसानी के गुण     |     अवैध रूप से शराब बिक्री करने वाला आरोपी कुणाल गिरफ्तार     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811