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प्राचीन धार्मिक स्थलों की नगरी बाड़ी के विनाश की कहानी

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बाड़ी रायसेन से सुरेन्द्र जैन

विंध्याचल की सुरम्य वादियों की गोद मे बसे प्राचीन धार्मिक स्थलों की ऐतिहासिक नगरी बाड़ी जो कभी देश के महानगरों में भी बाड़ी कलां के नाम से प्रसिद्ध रही आजादी के बाद दूसरी पर उसके विनाश की कहानी लिखी गई है और यह कहानी।
विनाश की दूसरी कहानी को समझने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि किसी भी नगर गांव कस्बा का विकास तभी होता है जब वहां से कोई मुख्य मार्ग निकला हो हाइवे किनारे के कस्बों का गांव का तेजी से विकास होने लगता है क्योकि हाइवे किनारे होने से वहां के लोगो के रोजगार चलने लगते हैं ।
रायसेन जिले में आने वाला बाड़ी कलां कभी प्रमुख व्यवसायिक नगरी भी हुआ करता था नाम के आगे कलां भी इसलिए था कि यहां बारीक से बारीक बेहतरीन कलाकारी करने में लोग माहिर थे सोने पर बारीक से बारीक कलाकारी के चलते मुंबई से भी लोग यहां आया करते थे हालांकि उस जमाने मे आवागमन के साधन नाममात्र के थे बैलागाडी घोड़ा गाड़ी बग्गी आदि के जमाने मे भी बाड़ी चहुओर प्रसिद्ध थी क्योकि यहां सभी धर्मों के अति प्राचीन धर्म स्थल भी हैं।
यहां से शुरू हुई विनाश की कहानी
प्राचीन धर्म स्थलों की ऐतिहासिक नगरी बाड़ी कलां के विनाश की कहानी हाइवे से शुरू होती है
भोपाल से जबलपुर की ओर जाने पहले बाड़ी कलां से ही रास्ता था लेकिन आजादी के बाद जब इसे जयपुर जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 12 घोषित कर उन्नयन शुरू हुआ तो बाड़ी कलां को कट करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग बाड़ी कलां से दो किलो मीटर की दूरी से जंगल काटकर निकाला गया और इसी के साथ बाडी कलां का विनाश शुरू हो गया जो बाड़ी कलां तहसील हुआ करता था तहसील वहां से उठकर हाइवे किनारे बरेली नाम से बसे नए गांव में चली गई हर वर्ग की जहां हजारों की आबादी थी वहां से पलायन शुरू हो गया कोई व्यवसाय करने बरेली कोई मुंबई कोई कही और चला गया इस तरह बाड़ी कलां वीरान होता चला गया प्राचीन धर्म स्थल भी देखरेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण होकर अपना अस्तित्व खोने लगे यहां कुछ बचे भी तो वही लोग जो आसपास के गांवों में कृषि कार्य को ही रोजी रोटी का माध्यम बनाये हुए थे बाड़ी कलां के विनाश की कहानी के साथ बारन नदी के पार जहां से हाइवे गुजरा वहां घनघोर जंगल का सफाया कर नई बाड़ी अस्तित्व में आई जिसे बाड़ी खुर्द कहा जाने लगा अस्सी के दशक के आसपास बाड़ी खुर्द नगर पालिका बनी और धीरे धीरे विकास की ओर बढ़ने लगी बस स्टैंड बना अस्पताल बना स्थानीय लोगो के रोजगार चलने लगे और बाड़ी को जिला बनाने की मांग होने लगी बाड़ी में नगर के भीतर फोरलेन का निर्माण हुआ दर्जनों लोगों की दुकान टूटीं हालांकि बेरोजगार हुए लोग धीरे धीरे पुनः यहां वहां रोजगार से लग गए और बाड़ी विकास की तरफ बढ़ने लगा कि अचानक एक बार फिर बाड़ी पर विनाश का साया मंडराने लगा फोरलेन हाइवे के नाम पर।
दूसरी बार इस तरह लिखी विनाश की कहानी
बाड़ी कलां का विनाश होने के बाद अब दूसरी बार बाड़ी खुर्द के विनाश की कहानी शुरू हुई फोरलेन हाइवे से बॉडी नगर के भीतर तो पूर्व में ही फोरलेन बन चुका था इसलिए अलग से चौड़ीकरण की जरूरत भी नहीं थी बाबजूद इसके नागिन मोड़ को खत्म कर सीधा पहाड़ काटकर फोरलेन हाइवे को सिरवारा के पास उतारकर बाड़ी खुर्द के बाहर से ही निकाल दिया जबकि उसे सिरवारा में पुराने हाइवे से जोड़ा जा सकता था इससे बाड़ी के अंदर से ही फोरलेन पूर्व की तरह होने से किसी के व्यवसाय भी चौपट नहीं होते लेक़ीन नगर के बाहर से हाइवे फोरलेन का निर्माण होने से अब बाड़ी खुर्द का भी विनाश ही माना जायेगा बस स्टैंड चिंतामन चौराहा जहां दिन रात स्थानियो की रोजी रोटी चलती थी रौनक बनी रहती थी अब पहले जैंसी रौनक खत्म हो चुकी है धंधे पानी लगभग न के बराबर रह गए है बस स्टैंड पर ही नगर पालिका कार्यालय था वो भी बस स्टैंड से बाजार में चला गया भविष्य में स्वरथी नेता बस स्टैंड भी यहां से अपनी जमीन के आसपास न ले जाएं यह भय बना रहता है।
बाड़ी ने बड़े बड़े नेता दिये पर नेताओ ने बाड़ी को दिए जख्म
बाड़ी एक ऐंसी पावित्र भूमि है जिसने यहां से राजनीतिक यात्रा शुरू करने वालों को आसमान तक पहुचाया राजनीति के सर्वोच्च शिखर तक पहुचाया भोजपुर विधानसभा का ह्रदय स्थल कहलाने वाला यह वही बाड़ी है जहां कभी डॉ शंकरदयाल शर्मा जी का बहुत आना जाना होता था जिन्होंने मंत्री बनते ही 2 अक्टूबर 1954 को गौड़ राजाओं के किले में आदिबासी आश्रम की स्थापना की थी बाड़ी से उनके अथाह प्रेम का प्रतिफल यह हुआ कि वह एक दिन भारत के राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किये और राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अपनी पहली यात्रा बाड़ी की करना चाही थी लेकिन उस समय भोजपुर के विधायक भाजपा के श्रीसुन्दरलाल जी पटवा थे दलगत की राजनीति कुछ ऐंसी हुई कि सुरक्षा कारणों को माध्यम बना उनकी बाड़ी की यात्रा रद्द हुई भोपाल तक आगमन हुआ बाड़ी के लोग भोपाल जाकर ही शर्मा जी से मिले ।
ठीक इसी तरह गुलाब चंद तामोट जीतकर मंत्री रहे सुंदरलाल पटवा जी इसी क्षेत्र से जीतकर मुख्यमंत्री बने और यही से राजनीतिक यात्रा को गति मिलने के बाद कई नेता मंत्री पद तक पहुचे बाबजूद इसके प्राचीन धार्मिक स्थलों की ऐतिहासिक नगरी बाड़ी कला को सिवाय जख्मों के कुछ नहीं मिला इंजीनियरों की या नेताओ की अदूरदर्शिता कहैं या जो भी कहें लेक़ीन बाड़ी कलां बाड़ी खुर्द कब कैंसे विकसित हॉगा हाइवे कहाँ से निकालें की बाड़ी कलां ओर वहां के प्राचीन धर्म स्थलों एवं रहवासियों का विकास हो इस बारे में सोच विचारकर शायद कभी काम नहीं हुआ यदि आज भी इसी फोरलेन को सिरवारा से जोड़कर नगर के अंदर की फोरलेन से जोड़ दिया जाए और सभी वाहन यही से गुजरे तो ही नगर का विकास हॉगा अन्यथा विनाश की ये कहानी कभी खत्म नहीं होगी।

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