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उदयपुरा में मनी सक्रांति पर शहीद संक्रांति,शहीदों को याद कर किया नमन

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मिथलेश मेहरा उदयपुरा रायसेन

शहीद ग्राम बोरास में प्रति वर्ष मकर सक्रांति पर स्वन्त्रता संग्राम सेनानियों के परिवार का सम्मान किया जाता है प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी ग्राम बोरास में सम्मान समारोह और शहीदों को श्रद्धांजलि को लेकर सभा आयोजित की गई। जिसमें मुख्य रूप से पूर्व मंत्री रामपाल सिंह राजपूत, उदयपुरा विधायक देवेंद्र पटेल,पूर्व विधायक रामकिशन पटेल,नगर परिषद अध्यक्ष उदयपुरा सीमा बृजेन्द्र सिंह राजपूत,जिला पंचायत उपाध्यक्ष प्रतिनिधि धर्मेन्द्र राजपूत ,पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष केशव पटेल,डॉ विजय कुमार मालानी,श्री राम रघु, साहब लाल तिवारी,गोविंद सिंह राजपूत,रामजी राजपूत,लक्ष्मण धाकड़,पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभाकर मेहरा ने शहीद समारक पर शहीदो को पुष्प अर्पित कर श्रधांजलि अर्पित की ।

आइये आपको बताते है आखिर क्या हुआ था मकर सक्रांति के दिन और किस कारण 14 जनवरी को ग्राम बोरास में शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है इसके लिए हम आपको ले चलते है भूतकाल की घटना की और

भारत की आजादी के साथ भोपाल रियासत के भारत विलय की महक आती है मकर संक्रांति पर्व पर
आजादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगाें को गोलियों से छलनी करने वाले जलियांवाला हत्याकांड की कहानी तो आप सबने सुनी होगी। ठीक वैसा ही एक हत्याकांड भारत आजाद होने के बाद भोपाल के पास नर्मदा तट पर हुआ था, जब तिरंगा फहराने जा रहे छह युवकों को नवाब ने अपनी पुलिस के जरिये गोलियों से भुनवा दिया था।

दरअसल, 15 अगस्त 1947 को भारत तो आजाद हो गया था, लेकिन भोपाल रियासत उस समय भारत में शामिल नहीं हुई थी। यहां के लोग रियासत का भारत में विलय के लिए आंदोलन कर रहे थे, उसी से नाराज होकर नवाब ने यह विध्वंसक कार्रवाई की थी।

मकर सक्रांति मौके पर भारत में आजादी के लिए हुए इस दूसरे हत्याकांड के बाद ही नवाब के शासन की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी।

6 युवक फहराने जा रहे थे तिरंगा, गाेलियों से भूना गया
भोपाल के पास रायसेन जिले में नर्मदा तट पर बोरास गांव है। भोपाल में विलीनीकरण आंदोलन चल रहा था। जगह-जगह शांतिपूर्वक आंदोलन के जरिये भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था। बोरास में भी यही किया जाना था। 14 जनवरी 1949 को बोरास में मकर सक्रांति का मेला भरा था। इस मेले में तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया। छह युवक तिरंगा फहराने के लिए आए। पुलिस ने पहले उन्हें मना किया, लेकिन वे नहीं माने। पुलिस ने इसकी जानकारी भोपाल पुलिस के डीआई और भोपाल के प्रधानमंत्री को दी। इसके कुछ ही देर बाद तिरंगा फहराने जा रहे छह युवकों को एक-एक करके गोली से भून दिया गया। मेले में भगदड़ मच गई और तिरंगा फहराने जा रहे युवक शहीद हो गए।

गोली लगने के बाद भी तिरंगा नहीं गिरने दिया
बताया जाता है कि गोली लगने के बाद भी शहीदों ने तिरंगे को जमीन पर नहीं गिरने दिया। उस समय प्रकाशित होने वाले अखबार नई राह के मुताबिक 16 वर्षीय धन सिंह जब वंदेमातरम गाते हुए तिरंगा फहराने जा रहा था, तो तत्कालीन थानेदार जाफर ने उसे गीत गाने से मना किया। धन सिंह नहीं माने और तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़े, तो उन्हें गोली मार दी गई। धनसिंह के
जमीन पर गिरने से पहले मंगल सिंह नामक किसान ने तिरंगा झंडा थाम लिया। मंगल सिंह को गोली मारी गई, ताे युवक विशाल ने झंडा थाम लिया। विशाल को भी गोली मार दी गई। तिंरगा झंडा तीनों लोगों के खून से लथपथ हो चुका था। विशाल जमीन पर गिरता, इससे पहले उसने डंडे में से झंडा निकालकर अपनी जेब में रख लिया। इसके अलावा तीन और लोगों को भी गोली मारी गई। इस गोलीकांड के लिए नवाब आैर उनके हिमायत करने मुखिया को ही जिम्मेदार ठहराया गया। ऐसा माना गया कि थानेदार जाफर को नवाब के इशारे पर ही तत्कालीन डीआईजी गिरिजेश ने गोली चलाने का आदेश दिया था। बाद में मामले की जांच भी हुई थी।

और शुरू हो गई नवाब काल की उलटी गिनती
इस घटना के बाद देशभर में भोपाल नवाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ। भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए अपने सचिव वीपी मेनन को तत्काल भोपाल भेजा और नवाब पर दबाव डाला कि वे अपने प्रधानमंत्री का तुरंत इस्तीफा लें। इस घटना का व्यापक असर हुआ। घटना के बाद स्वतंत्र देश का सपना देख रहे भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां की सत्ता पर से पकड़ ढीली होती गई और अंतत: उन्होंने भोपाल का भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। 1 जून 1949 को भोपाल भारत का अंग बना।

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