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सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय ‘बैगा जनजाति एवं संस्कृति’ विषय पर विशेष व्याख्यान

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।• बैगा जनजाति अपने को प्रकृति के क़रीब रखती है
रायसेन।  सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में ‘बैगा जनजाति एवं संस्कृति’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। विश्वविद्यालय के लोकपाल व पूर्व ज़िला न्यायाधीश श्री उमेश कुमार गुप्ता ने बैगा जनजाति पर बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, शहडोल के अनुभवों व उनके बीच जाकर किए गए कार्यों और अध्ययन के बारे में बताया। श्री गुप्ता ने बैगा जनजाति के खान-पान, रहन-सहन, शादी-ब्याह, बच्चे की पैदाइश से लेकर मौत के बाद होने वाले क्रियाकर्मों के बारे में विस्तार से बताया।


साँची विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि बैगा जनजाति स्वयं को प्रकृति के बेहद करीब रखती है। जड़ों से जुड़ी हुए इन लोगों को पिछड़ा कहना अन्याय है। सरकार ने भी बैगा जनजाति को मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास किए है।
न्यायाधीश श्री उमेश कुमार गुप्ता ने बताया कि बैगा जनजाति हर साल खेत नया बनाती है। उन्होंने बताया कि बैगा लोग ओझा की बात मानते हैं। न्यायाधीश महोदय ने बताया कि बैगा समाज में देवी-देवता की पूजा पुरूष ही करते है। महिलाएं घर के काम के साथ खेती में भी हाथ बंटाती है। बैगा जनजाति में झाड़फूंक-टोना-टोटका को महत्व देती हैं लेकिन अब ये लोग स्वास्थ केंद्रों में भी जाने लगे हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि घास-फूस के कच्चे मकानों की पहली मंजिल पर कोदू-कुटकी-मक्का का भंडारण किया जाता है।


श्री उमेश कुमार गुप्ता ने बैगा जनजाति में महिलाएं अपने शरीर पर पारंपरिक तरीके से गुदना गुदवाती हैं जिसका कारण परलोक की अवधारणा है। ये कान-नाक नहीं छिदवाती हैं। उन्होंने बताया कि बैगा जनजाति में 6 तरह के विवाह होते है जिसमें लड़की को वर चुनने की स्वतंत्रता होती है। विवाह होने पर पुरुष को दहेज देना होता है। इनमें पुनर्विवाह की अनुमति है। बच्चों के नाम दिन और तिथि के हिसाब से रखे जाते हैं। न्यायाधीश श्री उमेश गुप्ता ने बताया कि बैगा पूर्वजों को अपना देवता मानते हैं तथा मढ़ई इनका प्रमुख त्यौहार होता है। गांव की रक्षा के लिए ठाकुर देव की पूजा करते हैं। आजीविका के लिए खेती वनोपज पर आश्रित है। ये 30 किलोमीटर दूर तक जंगल में जाकर दोना-पत्तल बनाकर साप्ताहिक बाज़ार में बेचते हैं। ये लौकी, तुमड़ा से अपने वाद्य यंत्र बनाते हैं।
व्याख्यान में कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी, इतिहास संकलन समिति के पदाधिकारी श्री सत्यनारायण शर्मा, श्री नारायण व्यास व श्री राजीव चौबे सम्मिलित हुए। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. नवीन कुमार मेहता ने किया।

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