Let’s travel together.
nagar parisad bareli

कैंसर के उपचार के लिए भी धार, झाबुआ, आलीराजपुर से गुजरात पलायन की मजबूरी

0 23

धार। मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के आदिवासी बहुल धार, झाबुआ और आलीराजपुर से न केवल रोजगार के लिए बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए भी पलायन की स्थिति बनती है। दरअसल इसके लिए भी गुजरात के अहमदाबाद स्थित शासकीय गुजरात कैंसर एंड रिसर्च संस्थान मरीज उपचार करवाने पर भरोसा करते हैं। ऐसी स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि आदिवासी बहुल जिलों में इस तरह के बड़े संस्थान का अभाव है।

अलबत्ता इंदौर में जरूर कैंसर के उपचार के लिए चिकित्सालय है यहां पर भी कई सुविधाओं में कमी होने के कारण मरीज गुजरात ही जा रहे हैं। स्थिति यह है कि गुजरात में शासकीय अस्पताल में भले ही उपचार सस्ते में हो जाता है। इसके बावजूद समय और आने-जाने के खर्च आदि में कैंसर पीड़ित और उसके स्वजनों की स्थिति चिंता जनक हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि आदिवासी बहुल जिलों में कैंसर के मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कीमोथेरेपी से लेकर ऑपरेशन की सुविधा जिला स्तर पर नहीं है। धार जिला मुख्यालय पर इस तरह की सुविधाओं का अभाव है। अलबत्ता झाबुआ में जरूर कीमोथेरेपी और छोटे श्रेणी के ऑपरेशन की सुविधा है।

कैंसर से संबंधित छोटा ऑपरेशन वहां जरूर हो जाते हैं। इन सब के बीच में सबसे बड़ी समस कारण है कि अभी भी आदिवासी अंचल में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी पलायन की स्थिति बनती है।

आदिवासी लोगों के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय चोपड़ा ने बताया कि कैंसर की बीमारी का पता चलने पर अपने आप में एक बहुत बड़ा तनाव शुरू हो जाता है। शिक्षित और संपन्न वर्ग के तो इस बीमारी से निपटना जानता है। लेकिन गरीब अशिक्षित आदिवासी के लिए इस बीमारी से निपटना अपने आप पर चुनौती हो जाता है।

सात दिन बाद हो पाती है जांच

चौपड़ा ने बताया कि सबसे पहले तो आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि तिरला विकासखंड से लेकर बाग, नालछा विकासखंड के लोग उपचार के लिए अहमदाबाद जाते हैं। यहां पर शासकीय चिकित्सा संस्थान में उपचार तो मिलता है लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि समय काफी लग जाता है। सात दिन तो केवल इंतजार करने में लग जाते हैं।

अपने नंबर की बारी आने में ही इतना समय लग जाता है। वहां लंबी प्रकिया होती है। इसके बाद नंबर आता है। उसे यह समझ में नहीं आता है कि वह किस तरह से उपचार करवाएं क्योंकि एक बहुत ही जटिल प्रकिया होती है। साथ ही अंचल के लोगों को इस बीमारी के बारे में जो तथ्य समझानेके प्रयास किए जाते हैं, वह उनकी समझ में नहीं आ पाते हैं।

ऐसे में एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो रही है। प्रतिदिन आदिवासी अंचल से 100 से 200 लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पलायन कर रहे हैं। इसकी वजह है कि गुजरात में ट्रस्ट के चिकित्सालय हैं।शासन के ऐसे अस्पताल हैं जो निश्शुल्क और कम लागत पर सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात के अहमदाबाद में जो अस्पताल है वहां निशशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं। कई सेवाओं व जांच के लिए शुल्क भी लिया जाता है।

भले ही वह न्यूनतम शुल्क है। निजी क्षेत्र के अस्पतालों की तुलना में वह कम है।फिर भी यह एक बहुत बड़ी समस्या है इसमें उन्हें आयुष्मान कार्ड योजना का लाभ भी नहीं मिल पाता है। ऐसी कई समस्याओं से आदिवासी अंचल के लोग जूझ रहे हैं। यदि जिला स्तर पर वह संभाग स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवा होगी तो इस तरह की परेशानी से बचा जा सकता है।

यह आ रही है परेशानी

इस संबंध में पीड़ित परिवार के राजेश डाबर ने बताया कि हम लोग अहमदाबाद उपचार के लिए गए थे। जहां एक बहुत बड़ा चिकित्सालय है। वहां पर उपचार के लिए नंबर आने में ही 7 से 8 दिन का समय लग गया। इसके अलावा इतने दिनों तक मरीज और उसके साथ के लोगों के रहने का भी हमें काफी खर्चा आया। खाने पीने से लेकर रहने के लिए हमें होटल का सहारा लेना पड़ा। इसमें काफी राशि खर्च हुई।

उन्होंने कहा कि इसके लिए हमें कर्ज तक लेने की नौबत आ गई थी। ऐसी परेशानियां कैंसर मरीजों के स्वजनों को आ रही हैं। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर बेहतर काउंसलिंग सेंटर हो। अन्य स्तर पर सुविधा महिया करने की कोशिश की जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इंदौर में जो कैंसर सेंटर है।

वहां पर गुजरात की तुलना में अंत्य आधुनिक मशीनों का अभाव है। कीमोथेरेपी की तो सुविधा है लेकिन रेडियो थैरेपी जैसे सुविधाओं के मामले में अभी भी उन्नत मशीनों की कमजोरी बताई जाती है। उन्होंने कहा कि इसीलिए सब लोग अब उपचार के लिए भी गुजरात के लिए पलायन करने लगे हैं।

अनियमित जीवन शैली और खानपान से बढ़ रही चिंता

-इधर डाक्टर आशुतोष मकवाना ने बताया कि वर्तमान में हम देख रहे हैं कि लोगों में खानपान की शैली ही बदल गई है। हर कोई होटल और बाजार का खाना खाना पसंद करता है। इसमें केमिकल युक्त खाना लोगों के पेट में जा रहा है। इससे कैंसर हो रहा है। वही होटल में जिस तेल का उपयोग किया जाता है, वह भी घातक है। इतना ही नहीं तेल का एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार खाद्य सामग्री तलने के लिए उपयोग लिया जाता है।

इस तरह से ऐसे कई छोटे-छोटे कारण जीवन शैली खान-पान के कारण चिंता का विषय बन गए हैं। इसलिए जरूरी है कि लोग अपनी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बढ़ाने के लिए पहले ही अपने खान-पान और जीवन शैली पर ध्यान दें।

इससे कैंसर जैसे गंभीर रोगों से बचा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए जरूरी है कि समय पर जांच करवाई जाए। इससे उसे प्रथम स्टेज पर ही मालूम हो जाए कि वह कैंसर ग्रस्त है। इससे पहली स्टेज में शत प्रतिशत रूप से वह उपचार करवा कर सेहतमंद किया जा सकता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

तलवार सहित माइकल मसीह नामक आरोपी गिरफ्तार     |     किराना दुकान की दीवार तोड़कर ढाई लाख का सामान ले उड़े चोर     |     गला रेतकर युवक की हत्या, ग़ैरतगंज सिलवानी मार्ग पर भंवरगढ़ तिराहे की घटना     |     गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों से गूंज उठा नगर     |     नूरगंज पुलिस की बड़ी करवाई,10 मोटरसाइकिल सहित 13 जुआरियों को किया गिरफ्तार     |     सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर एसडीओपी शीला सुराणा ने संभाला मोर्चा     |     सरसी आइलैंड रिजॉर्ट (ब्यौहारी) में सुविधाओं को विस्तारित किया जाए- उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल     |     8 सितम्बर को ‘‘ब्रह्मरत्न’’ सम्मान पर विशेष राजेन्द्र शुक्ल: विंध्य के कायांतरण के पटकथाकार-डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चंन्द्र     |     कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के छात्र कृषि विज्ञान केंद्र पर रहकर सीखेंगे खेती किसानी के गुण     |     अवैध रूप से शराब बिक्री करने वाला आरोपी कुणाल गिरफ्तार     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811