व्यक्ति के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु निर्धारित हो जाती हैं लेकिन उसे अंत में मोक्ष प्राप्त होगा या नहीं यह उसके कर्मों पर निर्भर करता है. मुख्य रूप से मोक्ष प्राप्ति का अर्थ होता है जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. मोक्ष का मिलने के बाद व्यक्ति को दोबारा इस मृत्युलोक पर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं रहती है. इसलिए हर व्यक्ति मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता है. इसके लिए शिव पुराण में कुछ ऐसे पवित्र स्थानों का वर्णन किया गया हैं जहां व्यक्ति मोक्ष की प्राप्त के लिए जा सकता है.
शिव पुराण में मोक्ष स्थानों का वर्णन
शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता के बारहवें अध्याय में मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का संपूर्ण वर्णन प्रस्तुत है. शिव पुराण के अनुसार, पर्वत, वन, काननों के साथ इस पृथ्वी का विस्तार पचास करोड़ योजन है. भगवान शिव की इच्छा से पृथ्वी ने इन सभी को धारण किया है. भगवान शिव ने धरती पर अलग-अलग जगहों पर प्राणियों को मोक्ष देने के लिए शिव क्षेत्रों का निर्माण किया. जिसमें कुछ जगहों को देवताओं और ऋषियों ने अपना निवास स्थान बना लिया जिससे उन स्थानों को तीर्थत्व प्राप्त हो गया. बहुत से तीर्थ ऐसे भी है जो स्वयं प्रकट हुए हैं. इन स्थानों पर जाकर व्यक्ति को हमेशा स्नान, दान और जाप करना चाहिए.
गंगा, सरस्वती, सोनभद्र और नर्मदा
सिंधु और सतलुज नदी के तट पर बहुत से पुण्य क्षेत्र है और सरस्वती नदी परम पवित्र और साठ मुख वाली है अर्थात उसकी कुल साठ धाराएं हैं. शिव पुराण के अनुसार, इन धाराओं के तट पर निवास करने से परम पद की प्राप्ति होती है. हिमालय से निकली हुई पुण्य सलिला गंगा सौ मुख वाली नदी है. इसके तट पर काशी, प्रयाग आदि पुण्य क्षेत्र हैं. शिव पुराण के अनुसार मकर राशि में सूर्य होने पर गंगा नदी की तट भूमि अधिक प्रशस्त और पुण्य दायक हो जाती है. सोनभद्र नदी की कुल दस धाराएं हैं बृहस्पति के मकर राशि में आने पर यह अत्यंत पवित्र और अभीष्ठ फल देने वाली है. इस समय यहां स्नान और उपवास करने से विनायक पद की प्राप्ति होती है और पुण्य सलिला महानदी नर्मदा के चौबीस मुख हैं. इसमें स्नान करने और तट पर निवास करने से मनुष्य को वैष्णव पद की प्राप्त होता है.
अन्य मोक्षदायक नदियां और स्थान
शिव पुराण में और भी बहुत से पवित्र और मोक्षदायी स्थानों के बारे में वर्णन किया गया है. जिसमें बहुत सी पवित्र नदियों का वर्णन प्रस्तुत है. शिव पुराण के अनुसार, तमास के बारह और रेवा के दस मुख हैं. परम पुण्यमयी गोदावरी के इक्कीस मुख हैं. यह ब्रह्महत्या तथा गोवध का नाश करने वाली तथा रुद्रलोक देने वाली है. कृष्णवेणी नदी समस्त पापों का नाश करने वाली है. इसके अठारह मुख है और यह विष्णु लोक प्रदान करने वाली है. तुंगभद्रा दस मुख वाली एवं ब्रह्मलोक देने वाली है. इसके अलावा सुवर्ण मुखरी के नौ मुख है. इस नदी तट पर ब्रह्मलोक से लौटे जीव जन्म लेते हैं. इन नदियों और स्थानों के साथ शिव पुराण में बहुत से ऐसे स्थानों का वर्णन मिलता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है.