सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती का अनुरोध करने वाली वकील और कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल की याचिका पर निर्वाचन आयोग और केंद्र से सोमवार को जवाब मांगा. वर्तमान में, वीवीपीएटी पर्चियों के माध्यम से केवल पांच रैंडम रूप से चयनित ईवीएम के सत्यापन के मौजूदा चलन के विपरीत चुनावों में वीवीपैट पर्चियों की पूरी गिनती की मांग की है. इस पर प्रतिपक्षों से चार सप्ताह में जवाब तलब किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव आयोग के दिशानिर्देश को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि वीवीपैट सत्यापन क्रमिक रूप से किया जाएगा. याचिका में कहा गया है कि चुनाव न केवल निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि दिखना भी चाहिए, क्योंकि सूचना के अधिकार को भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1) (ए) और 21 के संदर्भ में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना गया है.
वीवीपीएटी के वोट को सत्यापित करने का अधिकार
मतदाता को आर्टिकल 19 और 21 के तहत सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत चुनाव आयोग (2013) में न्यायालय के निर्देशों के अनुसार अपने द्वारा डाले गए वोट और वीवीपीएटी के पेपर वोट को सत्यापित करने का अधिकार है. याचिका में चुनाव आयोग को सभी वीवीपैट पेपर पर्चियों की गिनती करके वीवीपैट के माध्यम से मतदाता द्वारा ‘डाले गए वोटों के रूप में दर्ज’ किए गए वोटों के साथ अनिवार्य रूप से क्रॉस-सत्यापन करने के लिए ईसीआई को निर्देश देने की मांग की गई है.
चुनाव आयोग और केंद्र को नोटिस जारी
याचिका में चुनाव को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि मतदाता को वीवीपैट से निकली पर्ची को मतपेटी में डालने की अनुमति दी जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मतदाता का मत ‘रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है. कोर्ट ने याचिका पर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. विषय की सुनवाई 17 मई को हो सकती है. याचिका में कहा गया है कि सरकार ने तकरीबन 24 लाख वीवीपैट की खरीद पर करीब 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन वर्तमान में, लगभग 20,000 वीवीपैट पर्चियां ही सत्यापित हैं.