कुणाल खेमू ने ‘मडगांव एक्सप्रेस’ का निर्देशन किया है. इस फिल्म के लिए उन्होंने दिव्येंदु शर्मा, प्रतीक गांधी और अविनाश तिवारी की कास्टिंग की है. आमतौर पर कोई भी निर्देशक जब अपनी पहली फिल्म बनाता है, तब उसकी कोशिश ये रहती है कि वो किसी बड़े सुपरस्टार को अपनी फिल्म में कास्ट करें. परिवार में करीना कपूर, सैफ अली खान और सारा अली खान जैसे बड़े नाम शामिल होने के बावजूद कुणाल ने अपनी फिल्म के लिए ओटीटी से मशहूर हुए तीन टैलेंटेड कलाकारों का चयन किया. और अपनी कास्टिंग से वो बेहद खुश भी हैं. टीवी9 हिंदी डिजिटल से की एक्सक्लूसिव बातचीत में ‘मडगांव एक्सप्रेस’ फेम दिव्येंदु शर्मा, प्रतीक गांधी और अविनाश तिवारी ने बताया कि किस तरह से ओटीटी प्लेटफॉर्म की वजह से अब एक्टर्स का टाइपकास्ट होना बंद हो गया है और उनकी मेरिट पर ही उन्हें काम मिलने लगा है.
प्रतीक गांधी
‘स्कैम’ के बाद मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं कि मुझे सिर्फ उसी तरह के किरदार नहीं ऑफर हुए. इसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे पहले तो ‘स्कैम’ की शूटिंग होने के बाद लॉकडाउन लग गया था. उस दौरान मैंने अपना लुक पूरी तरह से बदल दिया. इंटरव्यू के समय मैं बिल्कुल अलग दिख रहा था. और दूसरी बात ये है, ओटीटी की वजह से अब टाइपकास्ट होने का डर नहीं रहा. और टाइपकास्ट मतलब क्या होता था? ऑडियंस के कंधे पर बंदूक रखकर चला दी जाती थी, और एक्टर्स को बताया जाता था कि ऑडियंस आपको इस रूप में नहीं देखना चाहती. लेकिन अब ओटीटी की वजह से ये साबित हुआ कि ऐसी कोई बात नहीं है. दर्शकों ने खुद बता दिया है कि वो पूरी तरह से तैयार हैं.
दिव्येंदु शर्मा
दरअसल ओटीटी का सबसे बड़ा फायदा ये रहा है कि इस प्लेटफॉर्म ने लोगों को हिम्मत दी. क्योंकि आमतौर पर फिल्मों में एक्टर को, उनका निभाया हुआ आखिरी किरदार कौन-सा था, इस लिहाज से ही कास्ट किया जाता था. लेकिन ओटीटी में ऐसा नहीं होता. ओटीटी में आपको अलग-अलग किरदार करने का मौका मिल जाता है. और आपको कई तरह के किरदार परफॉर्म करते हुए देख अब कास्टिंग करने वालों की हिम्मत भी बढ़ रही है. मेरे साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ. मिर्जापुर में ‘मुन्ना भैया’ करने के बाद मुझे वैसा एक भी किरदार ऑफर नहीं हुआ. और ये बदलाव अच्छा है. कम से कम अब एक्टर्स को कास्ट करने के पीछे की सोच बदलने लगी है.
अब हमें कास्ट करने वाले हमें बतौर एक्टर देखने लगे हैं. पहले हम सिर्फ हमारा निभाया हुआ किरदार थे. और फिल्मों की कास्टिंग के समय ये भी होता था कि उन पर बॉक्स ऑफिस सक्सेस भी निर्भर होती थी. इसलिए वो ये सोचते थे कि अगर एक फार्मूला चल रहा है, तो इसे ही चिपका देते हैं. लेकिन ओटीटी मेरिट पर चलता है. और उनके आने से टाइपकास्ट होने का डर नहीं रहा.
अविनाश तिवारी
मैं इस पूरे मामले पर जो बात कहने जा रहा हूं, वो शायद अभिमानी लगे. लेकिन मैं कभी सोचता ही नहीं कि सामने वाला (कास्टिंग) क्या चाहता है. सामने वाला तो तुम्हें एक्टर भी नहीं मानना चाहता था. मतलब कास्टिंग वालों के हिसाब से देखा जाए तो शुरुआत में कुछ लोगों ने ये भी कहा था कि मुझे एक्टिंग ही नहीं करनी चाहिए थी और अब मुझे इंडस्ट्री में लगभग 20 साल हो जाएंगे. मुझे ये एहसास हुआ कि लोग क्या कहते हैं इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. मुझे अपनी तरफ से ये सुनिश्चित करना है कि मैं अलग-अलग तरह की फिल्में करूं. और ओटीटी की वजह से ये आत्मविश्वास बढ़ने में मदद हुई.