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डॉक्टर आर के बादल याने अंग्रेज़ी साहित्य के विलक्षण व्यक्तित्व का जाना-राजेश बादल

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आलेख

राजेश बादल

उमर के कई दशक साइकल पर गुज़ारने वाले मेरे बड़े चाचा जी डॉक्टर राकेश बादल को कभी यह गुरूर नहीं रहा कि जब अंग्रेज़ी जानने,समझने या बोलने वालों की संख्या अत्यंत कम थी,तब उन्होंने साठ पैंसठ के आसपास इस परदेसी भाषा में पीएचडी हासिल की थी ।इसका विषय एंग्लो इंडियन लिटरेचर था । उन्हें यह भी घमंड नहीं था कि आधी सदी पहले जब अंग्रेज़ी में किताबें लिखना बहुत टेढ़ी खीर थी,तब वे एक के बाद एक किताबें लिखकर भारत के आंग्ल आकाश पर छा रहे थे । आर के नारायण , प्रीतीश नंदी और मुल्कराज आनंद से उनका नियमित पत्र व्यवहार होता था और उन दोनों पर भी उन्होंने किताबें लिखी थीं ।


वर्षों बाद उन्होंने लेंब्रेटा स्कूटर खरीदा । उसी स्कूटर से मैने भी ड्राइविंग सीखी । छात्रों के ऐसे चहेते कि स्कूटर पर जाते किसी ने हाथ दे दिया,तो बादल सर का पैर ब्रेक पर चला जाता । जब तक उस छात्र का शंका समाधान नहीं हो जाता , तब तक वहीं स्कूटर क्लास चलती रहती । अपने छात्रों को पी एच डी कराने का उनको जुनून था । एक के बाद एक उन्होंने पी एच डी छात्रों की झड़ी लगा दी । कोई भी छात्र या छात्रा किसी भी समय उनसे ज्ञान लाभ कर सकती थी और उनके माथे पर शिकन न आती । कई पीढ़ियां उन्होंने अपनी विद्वता से तराशी ।
हमारा महाराजा महाविद्यालय शिक्षा के लिए दूर दूर तक विख्यात था । फिर भी उस कॉलेज में कुछ प्राध्यापक ऐसे भी थे जो अंग्रेज़ी को भी हिंदी माध्यम में पढ़ाते थे । लेकिन बादल सर और दास सर ऐसे थे, जिनकी क्लास से अंग्रेज़ी की निरंतर खुशबू आती थी । मिजाज़ से वे एकदम देसी,ठेठ बुंदेली और हिंदी साहित्य प्रेमी थे ।मगर कक्षा में वे एक अलग डॉक्टर बादल थे । उनके छात्रों में कई आई ए एस, पत्रकार, डॉक्टर, विधायक, सांसद और मंत्री शामिल हैं । राज्यसभा के पूर्व उप सभापति पी जे कुरियन विश्वविद्यालय में उनके रूम मेट थे और तैंतीस बरस जेलों में काटने वाले विश्व के सबसे बड़े क्रांतिकारी पंडित परमानंद से उनकी घंटों गपशप होती थी । चंद्रशेखर आज़ाद के सहयोगी रहे भगवान दास माहौर , सदाशिव मलकापुरकर और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के वे चहेते थे । उन दिनों आकाशवाणी जिन्हें बुलाती थी, वे स्टार से कम नही होते थे ।

लेकिन बादल सर अपनी व्यस्तताओं के चलते कई बार रेडियो स्टेशन जाने से इनकार कर देते थे । फिर भी सौ दो सौ बार उन्होंने हिंदी और अंग्रेज़ी साहित्य पर अपने ज्ञान के ज़रिए आकाशवाणी को उपकृत किया । अंग्रेज़ी सिखाने के लिए आकाशवाणी पर उनका धारावाहिक बहुत लोकप्रिय हुआ था। अनेक विश्वविद्यालय उन्हें अपने आयोजनों में आमंत्रित करने में शान समझते थे । उनकी कई किताबें विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं।
मैं जब तेरह चौदह साल का था,तो उनके साथ रहने लगा था । गांव से पहुंचे उस राजेश बादल को न ढंग से हिंदी आती थी, न अंग्रेजी और न उर्दू । यहां तक कि खड़ी हिंदी भी मैं नही बोल सकता था । लेकिन चाचाजी की लाइब्रेरी ने मेरी कायापलट कर दी । मेरी पत्रकारिता उन्ही दिनों परवान चढ़ी । पहले मुझे उन्होंने इतिहास का प्राध्यापक बनाना चाहा,लेकिन मेरी नियति ऐसा नहीं चाहती थी ।उनके कहने पर मैने एक साल महाविद्यालय में अध्यापन किया ।लेकिन महान संपादक राजेंद्र माथुर के बुलावे पर नई दुनिया ज्वाइन कर ली । आज मैं जो भी हूं,उनके ही आशीर्वाद से ।


मेरी चाची जी पिछले साल ही लंबी बीमारी के बाद हमें छोड़ गई थीं । जब वे ब्याह कर आईं तो स्नातक नही थीं । चाचाजी की प्रेरणा से उन्होंने संस्कृत में एम ए किया और सिल्वर मेडल हासिल किया । उनके जाने के बाद चाचाजी कुछ अनमने रहने लगे थे । लगभग पचासी साल के थे लेकिन सेहत एकदम चंगी थी । न ब्लड प्रेशर , न डायबिटीज और न ही कोई अन्य बीमारी ।कौन जानता था कि एक बस की ठोकर काल का संदेश लेकर आई और पल भर में हमसे छीन ले गई ।उन्होंने एक सप्ताह पहले ही अपनी डायरी में लिखा था कि मैं इस संसार से बिना तकलीफ़ के ख़ामोशी से चला जाना चाहता हूं ।यह टिप्पणी उन्होंने अपने छोटे भाई सुरेश चंद्र बादल के अचानक हार्ट अटैक से निधन के बाद लिखी थी । हमारे परिवार में बीते एक साल में यह चौथी विदाई है । परिवार के एक बुजुर्ग का जाना याने अनुभव के एक बड़े ख़ज़ाने का चला जाना है। चित्र उनकी अनेक किताबों में से कुछ ।

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