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पुलिस को धन्यवाद देने आई गीता का मुड़ियाखेड़ा में हुआ ज़ोरदार स्वागत

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8 साल की उम्र में गलती से मां-बाप से बिछड़कर पहुंच गई थी कराची पाकिस्तान
-समाजसेवी पूरन पटेल ने किया कार्यक्रम आयोजित

सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट।
बुधवार को विदिशा जाते समय गीता का सलामतपुर के पास मुड़ियाखेड़ा गांव में जोरदार स्वागत किया गया। गांव में समाजसेवी पूरन सिंह लोधी ने कार्यक्रम आयोजित कर गीता का शाल श्रीफल से स्वागत कर सांची स्तूप का स्मृति चिन्ह भेंट किया। इस दौरान मूक बाधिर संस्था इंदौर के ज्ञानेंद्र पुरोहित व गांव के ग्रामीण काफी अधिक संख्या में मौजूद रहे।

गौरतलब है कि परिवार से 22 साल पहले बिछड़कर पाकिस्तान पहुंची गीता को आखिरकार भारत लौटने के 5 साल बाद अपने परिवार से मिलने का मौका मिला है। गीता का असली नाम राधा वाघमारे है। उसे उसकी मां महाराष्ट्र के नैगांव में मिली। मध्य प्रदेश पुलिस ने राधा को आनंद सोसाइटी के सहयोग से स्थापित मध्य प्रदेश मूकबधिर पुलिस सहायता केंद्र के माध्यम से परिवार से मिलवाया। मध्य प्रदेश जीआरपी और इंदौर पुलिस की सहायता से गीता को अपने परिवारजनों से मिलने में सफलता मिली है। गीता अपनी मां से मिलने के बाद मंगलवार को राधा मध्यप्रदेश पुलिस, जीआरपी सहित तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज को धन्यवाद कहने के लिए भोपाल आई। इस दौरान राधा ने डीजीपी से भी मुलाकात की। उन्होंने लिखित में सभी के सहयोग के लिए धन्यवाद कहा।


महज 8 साल की उम्र में महाराष्ट्र के परभणी जिले में रहने वाली राधा गलती से अपने मां-बाप से बिछड़कर समझौता एक्सप्रेस से पाकिस्तान के कराची पहुंच गई थी। तब से लेकर आज तक हर रोज वह अपने परिवार की राह निहारा करती थी। 2015 में भारत लौटी राधा ने पाकिस्तान में बिताए गए 15 सालों के बारे में इशारों में बताते हुए कहा कि वह दिन मेरे जीवन का ऐसा समय रहा जब हर रोज सुबह उठने के बाद मन में एक ही ख्याल आता था कि वह पल कब आएगा जब मैं अपने देश की धरती पर दोबारा लौट सकूंगी। कब मैं अपने मां के आंचल में सुकून की नींद ले सकूंगी। हालांकि, भारत लौटने के बाद भी राधा को अपनी मां से मिल पाने में लगभग 5 वर्ष से अधिक का समय लग गया।भारत लौटने के बाद राधा इंदौर की आनंद सर्विस सोसायटी जो कि एक मूक-बधिर दिव्यांग बच्चों की संस्था है उसकी मदद से अपने मां-बाप तक पहुंच सकी।मूकबधिर गीता को अपनी मां तक पहुंचने में उसके शरीर पर मौजूद एक पैदाइशी निशान मददगार साबित हुआ था।

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