सुरेन्द्र जैन रायपुर
संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि कल आप लोगो के सामने कल्पवासी और अह्मिन्द्र के बारे में बताया था | आपने अवश्य इसके बारे में जाना होगा | हर एक व्यक्ति के साथ चिंतन का विषय होता है प्रायः करके अपने विषय को दूसरे के साथ तूलना करते हैं | लिखना, पढना, पढ़ाना आदि क्रियाओं में यह प्रायः देखा जाता है कि सामने वाला कौन – कौन सी और कैसी – कैसी वस्तु उसके पास है | आप लोगो से प्रायः सुनने में आता है कि हमारा खर्चा दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है | हम खर्चा ज्यादा करते हैं या होता है | आप अपनी आवश्यकताओं कि अपेक्षा दूसरों कि वस्तु को देखकर अपनी इच्छाओं कि पूर्ति के कारण ज्यादा खर्चा करते हो | खर्चा हो रहा है या कर रहे है | स्वर्गों में कई प्रकार के स्वर्ग होते हैं | एक ही स्वर्ग के कुछ लोग समवशरण में गए तो वहां पर उनको एक कोठी में बैठने का स्थान मिला जहाँ वे पास – पास बैठ गए उनमे से एक ने दूसरे कि कोठी कि ओर देखा और तूलना करना चालू हो गयी कि दूसरी कोठी में जो बैठे हैं उनका वर्ण अलग है, वेशभूषा अलग है, मुकुट अलग है, मुकुट में जो मणि लगी है वह अलग है आदि | जो अपने पास नहीं है तो उसमे तूलना क्यों करना | तूलना ठीक नहीं दूसरे कि वस्तु से तूलना करने कि अपेक्षा अपनी वस्तु को देखना चाहिये | वह कहता है कही न कही पक्षपात हो रहा है | पक्षपात पहले जमाने में भी होता था और आज भी हो रहा है | उस व्यक्ति ने समवशरण में अपने प्रश्न को दूसरे के माध्यम से पुछवाया कि यहाँ भगवान के समवशरण में ऐसा पक्षपात क्यों है ? इसमें गलती किसकी है ? अपने – अपने को आगे बैठा देते होंगे | तो इसका उत्तर भगवान कि ध्वनि के माध्यम से मिला कि पूर्व में आप जब धर्म कर्म कर रहे थे तो उस समय आप जो अष्ट मंगल द्रव्य चढाते हैं तो उसमे चावल, लौंग, बादाम, छुवारा, केसर चढाते है उसमे आपने निम्न कोटि (क्वालिटी) का उपयोग किया और अपने उपयोग (खाने) के लिये अच्छी कोटि (उच्च क्वालिटी) का उपयोग किया | आपने सोचा कि भगवान तो इसका उपभोग या उपयोग करेंगे नहीं तो डुप्लीकेट चावल चढ़ा दिया और स्वयं के खाने के लिये अच्छा चावल | केसर कि जगह श्रृंगार के फूल का उपयोग किया और स्वयं के खाने के लिये कश्मीर से केसर मंगवाया जिसको खाने से बादामी शरीर हो जाता हैं | खाने, पहनने, बर्तन कि अपेक्षा इनके अलग है | तुमने जिस प्रकार पूर्व भव में धर्म के लिये अलग और अपने उपयोग और खाने के लिये अलग वस्तु को रखा जिसके परिणाम स्वरुप यह हुआ | दिखावट नहीं ये दिखाने कि बीमारी है | इससे पेट तो भरता नहीं | पेट तो अनाज से भरता है परन्तु किसी – किसी का पेट दिखाने से भरता है | चक्कर आ रहा है | पूछा कि क्यों चक्कर आ रहा है तो कहते हैं कि शुगर कि बीमारी है इसलिए चक्कर आ रहा है | गुड के द्वारा शक्कर कि बीमारी ठीक हो जाती है | गुरुओं ने गुड, खांड, शक्कर, अमृत ये चार प्रकार के कर्म के फल बताये हैं इसमें सबसे निचे गुड फिर खांड फिर शक्कर फिर सबसे मीठा अमृत को बताया तो ऐसे में स्वर्ग के देवों में शक्कर कि बीमारी ज्यादा होना चाहिये | ये वस्तुतः हमारी गलती है क्योंकि हमारे भाव घटिया है | “गुरु तो गुड होते है और चेला शक्कर |” आज जो चेले है ये एक प्रकार से गुरु से भी आगे है | आज माता पिता कहते है कि यह बच्चा जब पेट में था तभी इसको शुगर हो गयी थी, चस्मा लग गया था और इसके बैंक अकाउंट में बहुत राशी भी जमा हो गयी थी | भाग्य है इसका इसकि स्तिथि अलग है | जब तूलना करते है तो हमारे दोष ही सामने आ जाते है | जब स्पष्ट हो गया कि गलती तो हमारी है | हमारे परिणामों के द्वारा कर्मों के फल हमारे सामने आ जाते है | जब पंगत में भोजन करने बैठते हैं तो आपकी दृष्टि अपनी थाली में कम और दूसरे कि थाली में ज्यादा होती है | सेठ साहूकार होकर दूसरे कि थाली में देखते है जबकि खुद कि थाली सोने कि है फिर भी संतुष्ट नहीं है | दृष्टि को प्रशिक्षित करना है | इसके लिये आज कोई विद्यालय या महाविद्यालय नहीं है | समवशरण महाविद्यालय में सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं | दूसरे के सम्यग्दर्शन को देखकर आप स्वयं के सम्यग्दर्शन को संभाल सकते हो और अपने सम्यग्दर्शन को पुष्ट कर सकते हो | गृहस्थ को खाने के बीच में कम से कम 3 से 4 घंटे का अन्तराल रखना चाहिये और मुनि 1 दिन का अन्तराल रखे | जितना अन्तराल रखोगे उतनी ही तपस्या बढ़ेगी अनुकूलता होना चाहिये | धारण और पारण दो क्रियाये है | पार होना चाहते हो तो दृष्टि को आप अपनी ओर रखो | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्रीमान प्रभुलाल जी ज्ञानचन्द्र जी जैन बोराव (राजस्थान) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ |