सुरेन्द्र जैन रायपुर
चन्द्रगिरि तीर्थ डोंगरगढ में ससंत विराजमान सन्त शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महामुनिराज ने सोमबार को अपने अनमोल वचनों में कहा कि पूजा, पाठ, स्वाध्याय कर समय का सदुपयोग करें करें सभी।
प्रवचन में आचार्य श्री ने आगे कहा कि कई लोगो को इस विषय में जानकारी नहीं होती है और जिनको होती है तो वे उसकी गहराई को नहीं जान पाते ऐसा हमे लगता है | स्वाध्याय पांच प्रकार का होता है पहला वाचना जिसमे शास्त्र, ग्रन्थ आदि कि वाचना होती है | वाचना के दौरान यदि इसमें कुछ समझ नहीं आता है तो उसे जानने (पूछने) कि जिज्ञासा होती है यह पूछना ही पृछना है | जिज्ञासा का समाधान होने के पश्चात फिर इसका चिंतन, मनन आदि करना अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है | कुछ लोगो को तो स्वप्न में भी स्वाध्याय चलते रहता है | बार – बार इसका शुद्ध पाठ करना आमनाय कहलाता है | अंत में आता है धर्मोपदेश जिसके माध्यम से हमें धर्म के बारे में उपदेश प्राप्त होता है | पहले के लोग समूह में बारी – बारी दो – दो पंक्ति का पाठ किया करते थे जो आज देखने में नहीं आता है | कुछ बुढे लोग इसको आज भी करते हैं | आचार्यों ने कहा कि गुरु वंदना, जिन वंदना, पाठ आदि स्वाध्याय के रूप में आता है | आज अष्टानहिका पर्व प्रारंभ हो चुका है और यहाँ 8 दिन का नंदीश्वर विधान भी किया जा रहा है| आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने नंदीश्वर द्वीप के बारे में बताया है कि अष्टानहिका पर्व में सभी देव मिलकर दिव्य – दिव्य वस्तुओं के माध्यम से अकृत्रिम जिनालय में पूजन, पाठ, प्रक्षाल आदि बहुत भक्ति भाव से करते हैं | आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने इसकी रचना संस्कृत में कि है जिसका हिंदी अनुवाद मुक्तागिरी में किया गया था जो आज आपके सामने रखा गया है | आप लोगो को बहुत गर्मी सहन करने के पश्चात अब शीतल हवा में हलकी बारिश के साथ इसका आनंद लेने का अवसर मिल रहा है | इसमें 60 श्लोक प्रमाण है 30 मिनट का समय आराम से इसका पाठ करने में लगता है | कुछ अर्थ समझ में नहीं भी आता हो तो भी पाठ करना चाहिये| इसका लाभ अवश्य मिलेगा | आप लोग जब इसका पाठ कर रहे थे तो मै बैठा – बैठा सुन रहा था अच्छा लगा | मूलाचार में भी यह प्रसंग आया है कि शास्त्र मात्र का पढ़ना ही स्वाध्याय नहीं है बल्कि स्तुति पाठ आदि भी स्वाध्याय में आता है | नियमसार में आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने 28 मूलगुणों में स्वाध्याय को नहीं रखा क्योंकि गुरु स्तुति, देव स्तुति, गुरु वंदना, देव वंदना, प्रतिक्रमण आदि स्वाध्याय के अंतर्गत ही आ जाते हैं | इसके माध्यम से कम समय में ज्यादा लाभ होता है | द्रव्य संग्रह का पाठ आधे घंटे में शांति के साथ आराम से हो जाता है | यदि मुखाग्र हो जाये तो एकांत में बैठकर इसका पाठ किया जा सकता है | इष्टोपदेश, नन्दीश्वर भक्ति, द्रव्य संग्रह, स्वयंभू स्तोत्र आदि का पाठ करने से बहुत लाभ होता है | स्वयंभू स्तोत्र को आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने २००० वर्ष पूर्व लिखा था जिसमे २४ तीर्थंकरों कि स्तुति कि गयी है | जिसको पढने से मन गद-गद हो जाता है | जब प्रमाद आता है तो पाठ करने से प्रमाद बंद हो जाता है लेकिन इसमें लगन होना आवश्यक है | इसका संस्कृत में जो पाठ है वह बहुत क्लिस्ट है जिसे आप लोगो को पढना बहुत कठिन लगता है | रत्नकरंड श्रावकाचार में १५० श्लोक है यदि प्रतिदिन ५० -५० – ५० किया जाये तो 3 दिन में पूरा हो सकता है और यदि सुबह से शुरू कर शाम को अर्घ्य चढ़ा सकते हैं | कभी – कभी हिंदी बहुत रोचक हो जाती है मातृ भाषा में होने से इसका अर्थ आसानी से समझ में आता है तो रोमांचित हो जाते हैं | इसके माध्यम से स्वाध्याय का लाभ मिल सकता है | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी नीलू दीदी, बबिता दीदी रांझी जबलपुर निवासी परिवार को प्राप्त हुआ
Udyam Registration Number : UDYAM-MP-35-0005861
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