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‘राइट क्लिक’::राज्यों का परस्पर अभिनंदन: अच्छी पहल, कुछ सवाल भी! -अजय बोकिल

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आलेख
अजय बोकिल

बात छोटी सी है, मगर बहुत गहरी भी है। हैरत की बात है कि पहले किसी के ध्यान में यह बात क्यों नहीं आई? देश के दो अग्रणी पड़ोसी राज्यों ( ‍िजनका बड़ा हिस्सा कभी एक राज्य में ही शामिल था) महाराष्ट्र और गुजरात के 64 वें स्थापना दिवस 1 मई पर बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ संकल्प के तहत अब सभी राज्य एक दूसरे के स्थापना दिवस परस्पर बधाई देंगे और इस पावन मौके पर सम्बन्धित राज्यों के राज्यों के राजभवनों में सालगिरह मना रहे राज्य अथवा राज्यों की सांस्कृतिक झलक दिखाने वाले उत्सव भी होंगे। इसी के अंतर्गत 1 मई को मप्र की राजधानी भोपाल स्थि‍त राजभवन में ‘अखंडता का उत्सव’ सम्पन्न हुआ। इसमें मध्यप्रदेश में रहने वाले मूलत: गुजरात और महाराष्ट्र से आए लोगों ने अपने अपने राज्य की सांस्कृतिक झलक बहुत अच्छे ढंग से पेश की। साथ शहर के मराठी और गुजराती समाज के गणमान्य लोगों ने भी बड़ी तादाद में इसमें शिरकत की। सोने पे सुहागा यह रहा कि इसका समापन मेजबान मप्र की आदिवासी सांस्कृतिक विरासत भगोरिया नृत्य के प्रदर्शन से हुआ। इस अवसर मुख्यमंत्री शिवराज ने मप्र के दो पड़ोसी और विकास में अग्रणी राज्यों की सराहना की और मप्र की सर्वसमावेशी संस्कृति का भी ‍िजक्र किया। राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने भी भारत की सांस्कृतिक एकता की बात की।


वैसे साल में 18 तारीखें ऐसी पड़ती हैं, जिस दिन देश के वर्तमान 28 में से किसी न किसी राज्य का ‘स्थापना दिवस’ मनता है। लेकिन सम्बन्धित राज्य को छोड़कर बाकी राज्यों और उसके निवासियों को इससे खास मतलब नहीं होता। जबकि इन तारीखो में से 1 नवंबर तो ऐसा दिन है, जब 7 राज्य और 1 केन्द्र शासित प्रदेश अपना ‘स्थापना दिवस’ मनाते हैं। इस मायने में यह दिन तो ‘राज्यों का महास्थापना दिवस’ के रूप में मनाया जाना चाहिए, इसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है। क्योंकि देश के लगभग एक तिहाई राज्य इसी दिन बने हैं। आगामी 1 नवंबर को नए आदेश के तहत सात राज्यों की सांस्कृतिक झलक राजभवन में मिलनी चाहिए !
याद करें कि पहली बार 1 नवंबर 1956 को एक साथ चार राज्य वजूद में आए। ये थे आंध्र प्रदेश (अविभाजित), केरल, मध्‍यप्रदेश ( अविभाजित) तथा तमिलनाडु। इसी तारीख को 1966 में आज के पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ ने आकार लिया। 1 नवंबर 2000 को मप्र के ‍िवभाजन के फलस्वरूप बने नए छत्तीसगढ़ राज्य का जन्म हुआ। लेकिन 1 नवंबर मप्र के अलावा अन्य राज्यों का भी स्थापना दिवस है, यह हममें से कितनों को पता है?
वैसे बता दें कि आजादी के तुरंत बाद यानी 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत में कुल आजादी के तुरंत बाद भारत में कुल 12 पूर्ण राज्य ( जो सीधे ब्रिटिश शासित थे और 565 रियासतें थीं। स्वतंत्र भारत का पहला पूर्ण राज्य बंगाल ( 1971 में बंगलादेश बनने के बाद इसका नाम पश्चिम बंगाल कर दिया गया और इसे वापस बंगाल करने की मांग फिर उठ रही है, जिसे केन्द्र सरकार ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है) था, जिसका स्थापना दिवस 20 जून को पड़ता है। उसके बाद 30 मार्च 1949 को राजस्थान अस्तित्व में आया। फिर 24 जून 1950 को उत्तर प्रदेश ( अविभाजित) बना। स्वतंत्रता से भी पहले अंग्रेजों के शासन काल में बने दो राज्य अभी भी अस्तित्व में हैं। ये हैं बिहार (22 मार्च 1912 यद्यपि स्वतंत्र भारत में बिहार राज्य की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई। तथा उडीसा (अब अोडिशा) 1 अप्रैल 1936। हालांकि 2000 में बिहार का विभाजन होकर नया झारखंड राज्य बना। स्वतंत्रता के बाद एक भाषा, एक संस्कृति के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठी। तत्कालीन नेहरू सरकार ने इसके लिए एक आयोग गठित किया। उसकी रिपोर्ट के आधार पर 1956 में जब पहली बार राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ तो देश में राज्यों की संख्या बढ़कर 14 और केन्द्र शासित प्रदेशों की तादाद 6 हो गई। भाषावार प्रांत रचना और स्थानीय आग्रहों के चलते देश में नए राज्यों और नए केन्द्र शासित प्रदेशों का बनना जारी रहा। 1966 में पंजाब, हरियाणा और केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ बने। लेकिन राज्यों के पुनर्निर्माण में सबसे दिलचस्प तारीख 1 नवबंर है। इस दिन देश में सबसे ज्यादा 8 राज्यों का गठन अलग अलग वर्षों में हुआ है। इसके अलावा 21 जनवरी ऐसी तारीख है, जो तीन नए राज्यों के जन्म की साक्षी है। 21 जनवरी 1972 को तीन नए राज्य बने मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा। 1 मई 1960 को एक ही दिन 2 नए राज्य बने महाराष्ट्र और गुजरात। इस कड़ी में नवीनतम राज्य तेलंगाना है, जो 2 जून 2014 को अस्तित्व में आया। जबकि लद्दाख और जम्मूकश्मीर सबसे नए केन्द्र शासित प्रदेश हैं।
ये राज्य क्यों बने, किन राजनीतिक परिस्थितियों, आग्रहों और जनाकांक्षा के कारण बने, इस पर काफी कुछ कहा गया है। यह भी सिद्ध हो चुका है कि केवल एक भाषा और संस्कृति की वजह से ही कोई राज्य हमेशा एक रहे, जरूरी नहीं है। कुछ के तो नाम भी बदले गए हैं। लेकिन भावनात्मक लगाव, प्रशासनीय सुविधा तथा विकास की आकांक्षा के कारण राज्यों के मानचित्र बदलते भी रहे हैं। बावजूद इन सबके हर राज्य के स्थापना दिवस पर उसे दूसरे राज्यों द्वारा बधाई‍ दिए जाने का चलन कम ही रहा है। अलबत्ता राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जरूर ऐसा करते रहे हैं, क्योंकि वो भारत संघ के मुखिया हैं या फिर सम्बन्धित राज्यों के राज्यपाल व मुख्यमंत्री राज्य की जनता को बधाई देते आ रहे है। बधाई का यह आदान- प्रदान उतना ही आत्म केन्द्रित है, जितना कि फ्लैट या बंगलों में रहने वालो का जीवन। जहां बगलवाले से दूसरे को कोई खास मतलब नहीं होता।
ऐसे में अगर यह शुरूआत की गई है हर राज्य दूसरे सीमावर्ती राज्य का जन्मोत्सव मनाएगा तो यह अच्छी पहल है बशर्तें कि सभी राज्य इसको उसी भाव में लें। ऐसा हुआ तो इससे राज्यों के बीच भावनात्मक एकीकरण को नया बल मिलेगा। साथ ही मूल राज्य के आप्रवासी दूसरे राज्यों को अपनी पितृभूमि से जुड़ाव का अलग अहसास होगा। इस पहल को और व्यापक बनाना चाहिए। क्योंकि किसी भी राज्य में परप्रांतीय ज्यादातर दूध में शकर की माफिक ही रहते हैं, भले ही कुछ राज्यो में राजनीतिक दुराग्रहों के कारण उनके खिलाफ मुहिम चलाई जाती रही है।
अब ये सवाल कि यह सब अभी ही क्यों सूझा या सूझ रहा है? क्या इसका लक्ष्य सांस्कृतिक एकीकरण है या फिर इसके जरिए कोई नया राजनीतिक लक्ष्य है? भारत को एक ही संस्कृति में रंगना है? पहले के राजनेताअों को इसकी जरूरत क्यों महसूस नहीं हुई? देश का तानाबाना टूटने का वैसा डर नहीं था या‍ फिर इस तानेबाने को कायम रखने लिए जरूरी सदिच्छाअो और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी। ये आशंकाएं हो सकती हैं, पर ऐसा ही होगा, इसकी संभावना बहुत कम है। जब सम्बन्धित राज्य के वो निवासी जो बाहर से आकर उस राज्य में बस गए हैं और अब वही उनकी मातृभूमि बन चुकी है, को बिसरा कर अपनी पितृभूमि का इकतारा बजाने लगेंगे, यह व्यावहारिक रूप से भी संभव नहीं है। न ही वो ऐसा कभी करना चाहेंगे। हां ऐसे आयोजनों से उनकी अलग सांस्कृतिक पहचान को स्वीकृति और सराहना ही ‍मिलेगी। दरअसल इस तरह के आयोजन राजभवन में करना अपने आप में सांस्कृतिक विविधता का अभिनंदन करना ही है।
इस पहल में राजनीति ढूंढना सही नहीं होगा, लेकिन वर्तमान राजनीतिक कटुता के बीच यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, देखने की बात है। महाराष्ट्र और गुजरात को बधाई देने में राज्यपाल मंगू भाई पटेल और सीएम शिवराजसिंह चौहान को कोई दिक्कत इसलिए नहीं हुई, क्योंकि ये दोनो और मप्र भी भाजपा शासित है। दिक्कत तब हो सकती है, जब विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को भाजपा शासित राज्यों द्वारा या फिर उसके विपरीत भी सम्बन्धित राज्य के शीर्ष नेता एक दूसरे को बधाई देंगे। यह जानना दिलचस्प होगा कि वो किस मन और भाव से एक दूसरे को बधाई देते हैं? अगर आगामी 1 नंवबर को राष्ट्रवादी शिवराज केरल के वामपंथी सीएम पी. विजयन को और विजयन शिवराज को बधाई देते दिखे और दोनो ही राज्यों के राजभवनों में एक दूसरे के सांस्कृतिक वैभव का आत्मीय भाव से आस्वाद लेते दिखे तो बात कुछ और ही होगी। लेकिन फिलहाल इसकी संभावना कम ही लगती है। ‍


-लेखक ‘सुबह सवेरे’ के वरिष्ठ संपादक है।

 

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