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चिन्तन-मनन और संकल्पों का अवसर-अरूण पटेल

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आलेख

जिस समय हम स्वाधीनता दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं उस समय हर देशवासी का सीना गर्व से फूला हुआ, सिर उठा हुआ और आत्मविश्वास हिमालयीन उछाल मार रहा है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि हम देश में 76वीं बार लालकिले की प्राचीर से अपने प्यारे राष्ट्रीय ध्वज को लहराते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देख रहे हैं। पहले प्रधानमंत्री के रुप में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगा झंडा फहराया था और यह झंडा लाखों लोगों की कुर्बानी, त्याग व तपस्या से मिली आजादी और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक ऐसा झंडा है जो हमें अपने प्राणों से भी प्यारा है और इसे शान से लहराते हुए देखने से सबके मन में हर्ष व उल्लास होना स्वाभाविक है। आजादी के अमृत महोत्सव को हम मना रहे हैं तो यह भी अपने आपमें एक विशेष अवसर है जिसमें प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर हर घर में तिरंगा लहराने का जो बीड़ा उठाया गया है वह वास्तव में हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने और भविष्य की एक सुनिश्चित रुपरेखा बनाते हुए संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ उन सपनों को और आगे ऊंचाइयों तक ले जाने का अवसर प्रदान करता है। स्वाधीनता दिवस के अमृत महोत्सव का समय एक ऐसा समय है जब हमें चिन्तन-मनन कर संकल्पों को पूरी प्रतिबद्धता, निष्ठा और ईमानदारी से साकार करना है। चिन्तन-मनन इस बात का होना चाहिए कि इन 75 सालों की यात्रा में हमने क्या पाया है और यदि कहीं कोई कमी रह गयी है तो उसे दूर करने नये संकल्पों के साथ कैसे आगे बढ़ें। जहां तक देश के आगे बढ़ने का सवाल है भारत ने काफी विकास किया है और वह दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस अभियान को और कैसे अधिक गतिमान कर सकते हैं इसके लिए हर देशवासी को अपनी सहभागिता के लिए मन, वचन और कर्म से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। यह स्वीकार करने में हमें तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए कि आज परस्पर विश्वास और साख का संकट है तथा राजनीतिक फलक के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के लिए राजनेता अपनी लकीर लम्बी करने के स्थान पर दूसरे की लकीर छोटी करने में भिड़े हैं। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें अपनी लकीर बडी करने के लिए किसी की लकीर को छोटा करने की विकसित हो रही मनोवृत्ति को त्याग कर परस्पर विश्वास, भाईचारा व सहयोग की भावना को विकसित करना चाहिए। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब रही है और इसे कैसे मजबूत किया जाए इस बारे मे सभी को चिन्तन करने की आवश्यकता है।
बीते सप्ताह देश के एक मीडिया घराने और सर्वे करने वाली संस्था ने जो सर्वे किया है उसमें एक बात यह भी उभर कर आई है कि 50 प्रतिशत से कुछ ही कम लोगों ने यह माना है कि देश में लोकतंत्र व लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं। इसलिए यह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि इस प्रकार के भाव यदि लोगों के मन में पैदा हो रहे हैं तो ऐसा क्यों हो रहा है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है इस पर गंभीर चिन्तन-मनन करने की जरुरत है। इसमें सत्तापक्ष की बड़ी जिम्मेदारी है और केंद्र के सत्ताधारी दल को पूरी गंभीरता से इस बात के लिए प्रयास करने होंगे ताकि लोगों के मन में ऐसा भाव यदि पैदा हो रहा है तो उस धारणा को कैसे दूर किया जाए यह सुनिश्चित हो सके। लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष एक गाड़ी के दो पहिये हैं। उनके बीच मुद्दों व सिद्धान्तों पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। कोई किसी का दुश्मन नहीं है और न शत्रु है बल्कि दोनों ही लोकतंत्र रुपी गाड़ी के दो पहिए हैं और दोनों ही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी हैं। आजाद भारत का सपना देखने वाले कर्णधारों ने अपने सपने को साकार करने के लिए जिस रास्ते को चुना उस पर हम उनकी मंशा के अनुसार आगे बढ़ रहे हैं या कहीं न कहीं, किसी न किसी रुप में लोकतंत्र की गाड़ी कुछ डगमगा रही है। यदि यह गाड़ी पटरी से उतरती नजर आ रही है तो फिर यह लाजिमी हो जाता है कि हम पूरी गंभीरता के साथ आत्ममंथन करें और अपने दिलों पर हाथ रखकर यह सोचें कि हम उन महापुरुषों के सपनों को साकार कर पाये हैं या शनैः-शनैः सत्ता के मद में अंदर ही अंदर तानाशाही की प्रवृत्ति को आगे बढ़ा रहे हैं। आज कुछ सवाल जनमानस के मन में हिलोरें ले रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है तथा इसमें बदलाव की जरुरत है। यदि यह बदलाव चिंतन-मनन के बाद अभी नहीं किया गया तो फिर परिस्थितियों के और भयावह हो जाने की आहट साफ-साफ सुनाई पड़ने लगेगी। यह आहट वह लोग महसूस कर रहे हैं जिन्हें राजनीति से परे देश की चिन्ता है। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान नये संकल्पों की दरकार है और इस स्थिति को लम्बे समय तक टालना अब किसी के हित में नहीं होगा। आज जरुरत है कि गलत बातों की पूरी निमर्मता के साथ मीमांसा की जाए और परिस्थितियों के प्रति सुधार के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित की जाए। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे अपनी-अपनी मर्यादा की सीमा रेखा को न लांघें। क्योंकि कभी-कभी ऐसा लगता है कि दोनों का व्यवहार अमर्यादित है और कहीं न कहीं मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को लांघने में किसी को परहेज नहीं है। महज विरोध के लिए विरोध और हर मुद्दे पर असहमति का भाव लोकतांत्रिक मूल्यों, परम्परा और शिष्टाचार के विपरीत है। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच जो संवादहीनता की स्थिति निरंतर बढ़ रही है उस पर अंकुश लगना चाहिए क्योंकि यह हालात लोकतंत्र के हित में नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों से जो यह माहौल बन रहा है कि जो हमसे सहमत है वही राष्ट्रभक्त है और हमसे असहमति रखने वाला है वह देश विरोधी है, इस सोच को भी बदलना जरुरी है, क्योंकि सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों ही लोकतंत्र की अहम् कड़ी हैं।
विधानसभाओं व विधानमंडलों में तो लम्बे समय से सदन के अंदर हो-हल्ला, हाथापाई, मारपीट की नौबत आती रही है लेकिन अब यही सब लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में भी होने लगे तो फिर यही माना जाएगा कि हम अपने महापुरुषों के सपनों से दूर होते जा रहे हैं। उनके सपनों को साकार करने के लिए सत्तापक्ष व विपक्ष को नये संकल्प लेना होंगे, यह वर्ष इसके लिए सबसे उचित अवसर होगा, क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यदि सत्तापक्ष व विपक्ष में एक-दूसरे का सम्मान करने की भावनाएं हिलोरें नहीं ले पाती तो फिर हम अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने का नैतिक बल खोते जायेंगे। 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज सबसे बड़ी चुनौती यही उभर रही है जिसमें लोगों को लग रहा है कि शनैः-शनैः जिन संस्थाओं पर लोकतंत्र को पल्लवित व पुष्पित करने की जिम्मेदारी है वे एक प्रकार से अपनी निष्पक्ष भूमिका अदा करने में डगमगा रही हैं। इस चुनौती से यदि हम आंशिक रुप से भी निपटने की दिशा में आगे बढ़ते हैं और परिस्थितियों में परिवर्तन करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति से संकल्पित होते हैं तो यह भी एक बड़ी उपलब्धि होगी जिसे हम आगे चलकर साकार करेंगे और आजाद भारत का जो सपना देखा गया था वह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है इसे भी महसूस करेंगे। अमृत महोत्सव के अवसर पर 76वें स्वाधीनता दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं, इस विश्वास के साथ कि हम नये संकल्पों के साथ आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना करेंगे और जो लोग अभी तक मानसिक गुलामी में जकड़े हुए हैं वे उससे मुक्त होने की दिशा में गंभीर प्रयास करेंगे ।

लेखक राजधानी भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार है।

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