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‘कंगना कल्चर’ के अपने ही नेताओं से परेशान भाजपा….अजय बोकिल

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आलेख

अजय बोकिल

बेशक, राजनीति में बेबाकी भी एक व्यक्तिगत गुण है, लेकिन बेबाकी और अविवेकी होने में बुनियादी फर्क है। अगर बगैर राजनीतिक समझ के कोई सार्वजनिक बयान दिया जाता है तो यह या तो मूर्खता है या फिर उद्दंडता। बिना सोचे समझे सिर्फ सुर्खियां पाने के लिए कुछ भी कह देना खुद अपने और अपनी पार्टी के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

बीते छह माह में संविधान, आरक्षण, जातिगणना और किसान आंदोलन के मुद्दे भाजपा की ऐसी दुखती रग बन गए हैं कि वो उसे कहां और कैसे राजनीतिक नुकसान पहुंचाएंगे, इसका अंदाजा भाजपा भी ठीक-ठीक नहीं लगा पा रही है। इनमें भी लंबे किसान आंदोलन के चलते तीन विवादित कृषि कानून मोदी सरकार द्वारा वापस ले लिए जाने के बाद यह मामला पिछले कुछ समय से हाशिए पर चला गया था, लेकिन भाजपा सांसद और बड़बोली अभिनेत्री कंगना रनौत ने इन हरियाणा विधानसभा चुनाव के पहले फिर इस मुद्दे को कुरेद कर भारतीय जनता पार्टी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है।


लगता है पार्टी को अब अपने ही नेताओं के ऐसे घर जलाऊ बयानों पर पानी डालने के लिए अलग से फायर ब्रिगेड रखनी पड़ेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो पार्टी में कंगना जैसे नेता हो तो दुश्मनों की जरूरत ही नहीं है। एक समय तक कांग्रेस मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा जैसे बड़बोले नेताओं से परेशान थी। लेकिन अब लगता है यह काम भाजपा में भी कुछ लोगों ने अपने हाथ में ले लिया है।
भाजपा की बेबसी यह है कि वह इन मुद्दों पर लगातार नुकसान झेल रही है, लेकिन इसका कोई तोड़ या ठोस जवाब उसके पास नहीं है। यहां तक कि ऐसे नेताओं के खिलाफ वह कोई प्रभावी कार्रवाई भी नहीं कर पाती। इसके पीछे कारण या तो असहायता है या फिर खुद ऐसे लोगों को पार्टी की शह है।

बेशक, राजनीति में बेबाकी भी एक व्यक्तिगत गुण है, लेकिन बेबाकी और अविवेकी होने में बुनियादी फर्क है। अगर बगैर राजनीतिक समझ के कोई सार्वजनिक बयान दिया जाता है तो यह या तो मूर्खता है या फिर उद्दंडता। बिना सोचे समझे सिर्फ सुर्खियां पाने के लिए कुछ भी कह देना खुद अपने और अपनी पार्टी के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। वैसे भी कंगना रनौत ऐसे ही विवादित बयानों के लिए जानी जाती हैं। वो बेहतर अभिनेत्री हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक और सामाजिक समझ भी उतनी ही परिपक्व हो, जरूरी नहीं है। वरना कोई कारण नहीं था कि हरियाणा विस चुनाव के ऐन पहले काफी हद तक ठंडे पड़ चुके किसान आंदोलन को बुरे लफ्जों में कोसा जाता।

कंगना के बयान के बाद हरियाणा में नाराज किसानों के प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। हैरानी की बात यह है कि कंगना ने ऐसा बयान तब दिया है कि जब वो इसी मुद्दे पर सीआईएसफ की एक महिला कांस्टेबल के हाथों सरेआम थप्पड़ खा चुकी हैं।

किसान आंदोलन कितना जायज, तार्किक और राजनीति से प्रेरित था, इसके पीछे किन ताकतों का हाथ था, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन उसे अलगाववादियो और विदेशी हाथों से संचालित होने के आरोप लगाना और वो भी इस समय, राजनीतिक बुद्धिमानी कतई नहीं है। अगर यह साफगोई भी है तो उसमें समझदारी का तत्व गायब है। वैसे भी कंगना न तो स्वयं किसान परिवार से हैं और न ही इस आंदोलन के साथ उनका किसी तरह का कोई सम्बन्ध रहा है। हाल में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि दिल्ली की सीमा पर हुए किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शन स्थल पर लाशें लटकती देखी गईं और बलात्कार हो रहे थे।

उन्होंने कहा कि यदि मोदी सरकार ने कड़े कदम नहीं उठाए होते तो किसानों के विरोध प्रदर्शन से भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। इस बयान ने उन भाजपाइयों को भी चौंका दिया जो, लोकसभा चुनाव में हुई चूकों की राजनीतिक दुरूस्ती में लगे हुए हैं। इस बयान से संभावित सियासी नुकसान को भांपकर भाजपा ने तुरंत खंडन जारी किया कि कंगना का बयान पार्टी की अधिकृत राय नहीं है। उन्हें नीतिगत मामलों पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है। साथ में कंगना को चेतावनी दी गई कि वो आइंदा ऐसे मुद्दों पर न बोलें। उधर विपक्ष ने इस बयान को तुरंत लपका और भाजपा पर प्रहार शुरू कर दिए।

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि कंगना का बयान भाजपा की किसान विरोधी नीति का सबूत है। इसे किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि किसानों से किए वादे पूरा करने में नाकाम रहा तंत्र किसानों के प्रति दुष्प्रचार में लगा हुआ है। राहुल ने कहा कि भाजपा कंगना के बयान से असहमत है तो उन्हें पार्टी से बाहर करे। उन्होंने यह भी कहा कि तीन विवादित कृषि कानूनो के खिलाफ 378 दिन चले मैराथन संघर्ष में 700 किसानों ने बलिदान दिया।

उन्हें बलात्कारी व विदेशी ताकतों का नुमाइंदा कहना भाजपा की किसान विरोधी नीति व नीयत का परिचायक है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों का अपमान है। इंडिया गठबंधन किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी दिलवा कर रहेगा। कुछ ऐसे ही बयान आम आदमी पार्टी, सपा की तरफ से भी आए। क्योंकि सबको पता है कि किसानो का मुददा हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लिए कितना संवेदनशील है। इस मामले में कोई भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया भाजपा की जमावट को जड़ से हिला सकती है।

दरअसल, ऐसे आत्मघाती बयान या तो अतिआत्मविश्वास की कोख से जन्म लेते हैं या फिर विवेकहीनता का परिणाम होते हैं। इसमे यह उद्दंड भाव छिपा होता है कि जनता उनकी बंधुआ है। वो कुछ भी करें या कहें, सत्ता उन्हीं के हाथ रहनी है। लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द् मोदी का ‘अबकी बार चार सौ पार का नारा’ भी इसी मुगालते का नतीजा था। तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत और राम मंदिर में भगवान राम की भव्य प्रतिष्ठापना ने ऐसी सियासी धुंध पैदा की कि सत्ताधीशों को शायद सतह के नीचे की खदबदाहट सुनाई देना ही बंद हो गई।

यह राजनीतिक बधिरता ही ऐसे बयानों को प्रेरित करती है, जो अपने घर पर ही ‘बुलडोजर चलाने’ जैसी साबित होती है। लोकसभा चुनाव के समय भी यही हुआ था। ‘चार सौ पार’ इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है, यह नरेटिव गुप्त गंगा की तरह ऐसा लहराया कि चार सौ पार तो दूर भाजपा बहुमत के आंकड़ों से भी 32 सीट दूर रह गई। इसकी शुरूआत भी किसी विपक्षी पार्टी ने नहीं बल्कि ‘कंगना कल्चर’ के भाजपाई सांसदों अनंत हेगड़े, ज्योति मिर्धा, लल्लू सिंह, अरूण गोविल आदि ने की थी। कांग्रेस और विपक्ष ने इसी बड़बोलेपन को अपना अचूक हथियार बनाकर भाजपा की नीयत पर ही हमले शुरू कर दिए। डेमेज कंट्रोल के तौर पर भाजपा ने कुछ सांसदों के टिकट भी काटे, लेकिन पार्टी की मंशा पर उठी उंगलियों को वापस मोड़ देने का कोई कारगर इलाज उसके पास नहीं था। जब तक वो इन सवालों का माकूल राजनीतिक जवाब देती, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भाजपा की परेशानी यह है कि अब राहुल गांधी उसकी दुखती रग बने चारों मुद्दों पर लगातार और बेखौफ हमला किए जा रहे हैं।

ऐसे में राहुल को ‘पप्पू’ अथवा ‘अपरिपक्व राजनीतिज्ञ’ साबित करने के पुराने फार्मूले काम नहीं आ रहे हैं। बीते दस सालों में यह शायद पहली बार है, जब देश तो क्या विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा अपना एजेंडा सेट करने के बजाए विपक्षी हमलो से बचाव के लिए तलवार पर धार करने में ही उलझी है। यह बात मोदी सरकार के कोर मुद्दों पर बैकफुट पर जाने और अपने ही नेताओं को कायदे में न रख पाने से जाहिर है। कंगना के ताजा बयान से हरियाणा में भाजपा का कितना नुकसान होगा या नहीं होगा, यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चलेगा, लेकिन पार्टी कंगना के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है। यह साफ है।

-लेखक मप्र के ख्यात वरिष्ठ पत्रकार हें।

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