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दादी इंदिरा और मां सोनिया की विरासत… रायबरेली सीट राहुल गांधी के लिए कितनी आसान?

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अमेठी और रायबरेली कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के समय संभव है पार्टी को इस बात का अंदेशा हो चला था कि अमेठी राहुल के लिए सुरक्षित नहीं लिहाजा उन्हें वायनाड के चुनावी मैदान में उतारा गया, जहां उनको बंपर जीत हासिल हुई. अमेठी गांधी परिवार की भी परंपरागत सीट रही है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल वायनाड के साथ-साथ अमेठी की बजाय इस बार रायबरेली से चुनावी मैदान में हैं. उत्तर प्रदेश में रायबरेली लोकसभा की ऐसी सीट है जहां देश के आजाद होने के बाद जब भी गांधी परिवार का सदस्य उतरा, उसे जीत निश्चित तौर पर मिली है. ऐसे में चुनावी राजनीति के जानकार मानते हैं कि राहुल के लिए यहां की सीट बहुत मुश्किल नहीं तो बहुत आसान भी नहीं होगी. राहुल की हर गतिविधि और बयान पर बीजेपी के दिग्गजों की नजर रहती है.

वैसे मौटे तौर पर रायबरेली मतलब कांग्रेस के लिए जीत की गारंटी. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौर में भी कांग्रेस ने यहां से सीट निकाली थी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हों या उनके बाद सोनिया गांधी- यहां दोनों की जीत सुनिश्चित रही है. इतिहास के आइने में देखें तो आपातकाल के बाद महज 1977 के लोकसभा चुनाव में यहां इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था. यह इंदिरा विरोध का दौर था और समाजवादी नेता राजनारायण को जीत मिली. उन्होंने इंदिरा गांधी को 52 हजार वोटों से हरा दिया था. राजनारायण ने इससे पहले भी 1971 के चुनाव में इंदिरा को चुनौती दी थी लेकिन तब हार गए थे.

2024 के चुनाव में रायबरेली में क्या होगा?

यह ऐसा सवाल है जो आज हर किसी की जुबान पर है. राहुल गांधी के वायनाड के साथ-साथ रायबरेली से भी चुनाव लड़ने पर बीजेपी को निशाना साधने का मौका मिल गया है. बीजेपी परिवारवाद के नाम पर हमला तो कर ही रही है साथ ही बीजेपी ये कहकर भी दवाब बनाने में जुट गई है कि राहुल वायनाड से भी हार रहे हैं इसलिए उन्हें रायबरेली लौटकर आना पड़ा है. हालांकि राहुल गांधी के लिए रायबरेली सीट का मतलब है दादी इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी की विरासत. सोनिया साल 2004 से ही 2019 तक यहां लगातार जीत दर्ज करती रही हैं. मोदी लहर में बीजेपी उनको हरा नहीं सकी.

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इंडिया अलायंस के पार्टनर्स हैं. राहुल गांधी और अखिलेश यादव फिर से हाथ मिला चुके हैं. कांग्रेस को समाजवादी पार्टी का भी समर्थन प्राप्त है. रायबरेली में विधानसभा की 5 सीटें हैं, जहां समाजवादी पार्टी के पास 4 और बीजेपी के पास 1 सीट है. ऐसे में सपा गठबंधन से कांग्रेस को फायदा मिल सकता है. राहुल गांधी का यहां मुकाबला बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह से है. अब कांग्रेस के गढ़ में सपा का समर्थन राहुल गांधी को कितना लाभ पहुंचा सकेगा, इसका पता 4 जून को चलेगा.

रायबरेली से क्या है कांग्रेस पार्टी का रिश्ता?

कांग्रेस के दिग्गजों का रायबरेली से संबंध आजादी पूर्व से है. 7 जनवरी 1921 में ही पं. मोतीलाल नेहरू ने अपने प्रतिनिधि के रूप में जवाहरलाल नेहरू को यहां भेजा था. यहां तक कि 8 अप्रैल 1930 में यूपी में दांडी यात्रा के लिए भी रायबरेली को ही चुना गया था. उस वक्त पं. मोतीलाल नेहरू खुद रायबरेली गए थे. इस प्रकार ऐसे कई वाकये हैं जब गांधी-नेहरू परिवार का रायबरेली से निकटता बढ़ती गई और उन्होंने आगे चलकर इसे अपना चुनाव क्षेत्र बनाया. आजादी के बाद जब देश में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ तो फिरोज गांधी ने यहां से जीत दर्ज की.

इंदिरा गांधी ने संभाला रायबरेली का मोर्चा

फिरोज गांधी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली में चुनावी मोर्चा संभाल लिया. उन्होंने 1967 से 1971 तक जीत दर्ज की. 1975 से 77 तक देश में आपातकाल का दौर रहा. 1977 के चुनाव में तो राजनारायण से वो हार गईं लेकिन 1980 में उन्होंने वापसी की. तब उन्होंने रायबरेली के साथ-साथ संयुक्त आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से भी चुनाव जीता था.ऐसे में उन्होंने रायबरेली को छोड़कर मेंडक को बनाए रखा.

इंदिरा गांधी के बाद अरुण नेहरू आए

इंदिरा गांधी के रायबरेली छोड़ने के बाद लंबे समय तक परिवार के किसी सदस्य को यहां के चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया हां, इंदिरा के बाद यहां से उनके रिश्तेदार अरुण नेहरू को जरूर प्रत्याशी बनाया गया. अरुण नेहरू मोतीलाल नेहरू के चचेरे भाई के पोते थे. अरुण नेहरू 1981 से 1984 तक यहां से सांसद रहे. लेकिन इसके बाद वो जनता दल में शामिल हो गए. इसके बाद कांग्रेस ने यहां से शीला कौल को उम्मीदवार बनाया. शीला कौल भी गांधी परिवार की रिश्तेदार थीं.

शीला कौल सन् 1989 से लेकर 1991 तक रायबरेली सीट से लोकसभा की सांसद चुनी गईं. उनके बाद सन् 1996 में शीला कौल के बेटे विक्रम कौल तो सन् 1998 में शीला कौल की बेटी दीपा कौल को रायबरेली से उतारा तो गया लेकिन दोनों चुनाव नहीं जीत सके. इसके बाद सन् 1999 में कांग्रेस ने राजीव गांधी के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा को यहां से टिकट दिया, जोकि रायबरेली से सांसद बने. इस साल सोनिया गांधी पहली बार अमेठी से चुनावी मैदान में उतरीं.

राहुल के कंधे पर रायबरेली की विरासत

आगे चलकर जब राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में कदम रखा तो सोनिया ने राहुल को अमेठी सीट दे दी और वह खुद रायबरेली चली आईं. तब से सोनिया ने यहां से लगातार चार बार चुनाव जीता है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया ने रायबरेलीवासियों के नाम एक भावुक पत्र लिखकर उन्हें आभार जताया और चुनावी राजनीति से दूर हो गईं. सोनिया गांधी के रायबरेली छोड़ने के बाद लंबे समय तक इस बात का कयास लगता रहा कि आखिर यहां से अब कौन चुनाव लड़ेगा? प्रियंका, राहुल या कोई और? आखिरकार राहुल के नाम पर मुहर लग गई. अब रायबरेली की विरासत राहुल गांधी के कंधे पर है.

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