बागली (देवास)। लगभग 20 वर्ष पूर्व इंदौर के समाजवादी इंदिरा नगर से विवाह कर बागली स्थित अपने ससुराल पहुंची दो युवतियों ने सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का नया रास्ता दिखाया। साथ ही अपने परिवार को भी आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया। घरों के एक कमरों में शुरू हुआ चूड़ी बनाने का कार्य नगर के प्रत्येक मोहल्ले में पहुंचा। यह महिलाओं के लिए कौशल विकास का पर्याय भी बना।
8 से 15 महिलाओं को मिल रहा रोजगार
2200 रुपये प्रति लीटर का रसायन, चूड़ी व पाटलों के खाली खोखे और डिजाइनर सामग्री लेकर रजनी व विमला अपने-अपने घरों में पर छोटे से चूड़ी उद्योग को जमाने में लग गई। आरंभ में पड़ोस व समाज की महिलाओं को विक्रय शुरू किया। धीरे-धीरे चूड़ियों की चर्चा नगर में फैल गई। इससे सबसे ज्यादा उन महिलाओं व किशोरियों को अधिक फायदा हुआ, जो कम शिक्षित थीं व सामाजिक वर्जनाओं के चलते मजदूरी करने भी नहीं जा पाती थीं। हाथ से बनी चूड़ियों का जब प्रचार हुआ तो बहुत सी किशोरियां और महिलाओं ने सीखने की शुरुआत भी की। रजनी व विमला के घरों में तो अब चूड़ियों की दुकान खुल चुकी है। 8 से 15 महिलाएं नियमित रोजगार पाती हैं।
लड़कियों को मिल रहा रोजगार
नगर में इन दिनों एक दर्जन से अधिक स्थानों पर चूड़ी बनाई जाती है। इसका फायदा लड़कियों व महिलाओं को हुआ है जो कम शिक्षित हैं। वे अपने घरों का काम खत्म कर सरलता से उद्योगों में काम कर पाती है। यहां उन्हें चूड़ी या पाटले नग बनाने के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं। इसमें 6 घंटे काम करने से ही 200 से 300 रुपये प्रतिदिन तक मिल जाते हैं। चूड़ी उद्योग के लिए नाबार्ड वित्त सुविधा भी उपलब्ध करवाता है, साथ ही विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले हस्त शिल्प मेलों में स्टाल लगाने का अवसर भी देता है।
बता दें कि नए और पुराने फैशन के मध्य कारीगरी किया हुआ बागली का चूड़ी क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। इस कारण नगर सहित अंचल के ग्रामों तक की महिलाएं भी उसे खरीदने के लिए आती है। साथ ही यह इंदौर, भोपाल, देवास, सोनकच्छ, नेवरी, कन्नौद व खातेगांव सहित निमाड़ क्षेत्रों में भी भेजा जाता है। जहां पर इन चूड़ों और पाटले की बहुत मांग है।