आलेख
हरीश मिश्र
किसी जानकारी को अधिक से अधिक प्रसारित करने के साथ साथ जब यह भी प्रयत्न हो कि जनता प्रसारित संदेश को न केवल स्वीकार करें अपितु उसके अनुरूप कोई कदम भी उठाएं या करवाई भी करें तो यह प्रक्रिया सूचना या प्रकाशन से एक कदम आगे प्रचार या प्रोपेगेंडा कहलाती है। जब किसी सूचना का प्रचार प्रसार किसी साज़िश या फिर अति से ज्यादा हो जाये तो सम्प्रचार या प्रोपेगेंडा कहा जा सकता है।
आज़ादी के अमृत वर्ष में स्टूडियो में बैठे एंकर हमारे कानों में विष घोल रहे हैं। तुम हिन्दुस्तानी नहीं !हिंदू-मुसलमान,सिख-ईसाई हो । अमृत वर्ष में पत्रकारों को अपनी स्वयं की छवि को दर्पण में देखना चाहिए। अपनी कलम से विश्वसनीयता पुनः अर्जित करना होगी।
औद्योगिक घराने कलम पर धनबल से अतिक्रमण कर खबरों से दुराचार कर रहे हैं। इन घरानों ने ना सिर्फ पत्रकार की कलम और वाणी को बंधक बनाया है बल्कि दर्शकों की भावनाओं से खेलने का नया ज़रिया भी बना लिया है। ऐसा लगता है कि कुछ आंचलिक पत्रकारों ने पत्रकारिता के धर्म को बचा रखा है।
पत्रकारों को अपने समाचार पत्र/चैनल के सुनाम पर गर्व करना चाहिए । प्रामाणिकता एवं जोश के साथ खबरों को दिखाना चाहिए। लेकिन किसी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार, धर्म गुरु, अधिकारी का चरित्र हनन करना कहां तक न्यायोचित है? जबकि आज की पत्रकारिता ने चरित्र हनन की फैक्ट्रियां खोल रखी हैं।
समाचार वाचक तीखी, कर्कश आवाज़ में खबरों का विश्लेषण कर, हिन्दू-मुसलमान पर व्यर्थ के विवाद पैदा करते हैं ।
सनातनी कभी भी कट्टरपंथी नहीं होता। सामान्यत: वह हिंसक और उग्रवादी भी नहीं होता । लेकिन आज की मीडिया उसे कट्टर बनाने पर तुली हुई है। यदि सनातनी सांप्रदायिक, कट्टर होता तो संख्या के आधार पर देश विभाजन के समय ही हिंदू राज्य घोषित हो जाता। कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता। वक्फ बोर्ड को न्यायालय का दर्जा नहीं मिलता । अल्पसंख्यक आयोग नहीं होता। मुस्लिम लॉ लागू नहीं होता।
आज के पत्रकारों में खबर खोजने के लिए उत्साह नहीं है बल्कि खबरें फैक्ट्रियों में बना रहे हैं। प्रमाणित खबरों के स्थान पर, व्यर्थ में टी आर पी के लिए प्रोपेगेंडा कर रहे हैं । यह जानते हुए भी कि ख़बरों को जन्म देने के लिए प्रजनन करना संवैधानिक अपराध है, फिर भी कर रहे हैं।
पिछले पांच दिनों से देश स्तब्ध है।सभी समाचार चैनल एक ही समाचार दिखा रहे हैं। जैसे देश की सभी समस्याओं का समाधान हो गया हो। स्टूडियो की फैक्ट्रियों में तथ्यों से छेड़छाड़ हो रही है। वही दिखा रहे हैं, जो उनका एजेंडा है। शिक्षित वर्ग चाहता है सभी धर्म और पंथों से अंधविश्वास का उन्मूलन हो। यदि बाबाओं के जादू-टोने दिखाने की ललक है, तो मुल्ला की झाड़ फूंक भी दिखाने का साहस पैदा कीजिए। चर्च की सेवा की आड़ में विस्तार नीति भी दिखाइए।
सरकारों, दलों, नेताओं, कंपनियों से पैसा, विज्ञापन लेकर खबरें दिखाएं । उनको सम्मान दें ।सबका साथ , सबका विकास, अच्छे दिन आ गए खूब दिखाएं । जितना चाहें महिमा मंडित करें, सबसे तेज दिखाएं ! सबको आगे रखें ! बात पते की करें! विकास दिखाएं !
आपका व्यापार है। लेकिन महंगाई, भूख , बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,अवैध उत्खनन भी दिखाएं ! परंतु कम से कम
खबरों के साथ दुराचार, अनाचार, छल , बल प्रयोग, कुकर्म, दुष्कर्म तो न करें।
कलमकार मित्रों ! सरकार से बड़ा देश ! व्यक्ति से बड़ा धर्म है ! एक ना एक दिन मूक होकर माटी में मिलना है ! इसलिए सिद्धांतों पर चलें ! खबर का प्रसारण विधि अनुसार, देश हित में, गण हित में, तंत्र हित में कीजिए ! किसी व्यक्ति, संस्था, दल, धर्म गुरु के पीछे हाथ धोकर पड़ जाना, चरित्र हनन करना पाप है ! दृढ़ रहिए , पर हठी नहीं ! परिवर्तनशील बनिए पर कमजोर नहीं ! आवश्यकता पड़े तो सम्मान की रक्षा के लिए जीवन और धन दोनों की बली दीजिए !
स्पष्टवादी, चुस्त रहिये । कमजोरी परलोक के लिए अच्छी है, जीवित रहने के लिए नहीं । जो कुछ प्रकाशित किया है, उसकी जिम्मेदारी लीजिए । व्यर्थ दोषारोपण करना पाप है।