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परमपिता परमात्मा को भाई मान कर चलना ही सदा सुखी रहना है- ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी

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विदिशा।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मंसापूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र द्वारा भाई दूज का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया।

राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अखिल भारतीय स्वर्णकार महासभा लायन अरुण कुमार सोनी ने बताया कि रेखा दीदी ने भाई दूज का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा कि होली पर्व के बाद भाई दूज का फॉर्म मनाया जाता है ।जिसमें बहन भाई की लंबी उम्र के लिए भाई को तिलक लगाकर ईश्वर से प्रार्थना करती है। इस पर्व के संबंध में एक कथा प्रचलित है कहते हैं यमुना और यम दोनों बहन भाई थे। यम को यमपुरी में आत्माओं के कर्मों के हिसाब किताब देखने और कर्म अनुसार फल देने की सेवा मिली यमुना अपने भाई यम को घर आने का निमंत्रण देती रहती थी। यमराज को रोज ही आत्माओं का लेखा-जोखा करना होता था। एक दिन भाई आने को वचनबद्ध हो गया। भाई को घर आया देख यमुना की खुशी का ठिकाना ना रहा बड़े ही प्यार से शुद्धिपूर्वक उन्हें भोजन करवाया। बहन के निश्चल स्नेह से प्रसन्न होकर यमराज ने वर मांगने को कहा यमुना ने कहा मैं सब रीति से भरपूर हूं मुझे कोई कामना नहीं है यम ने का बिना कुछ दिए में जाना नहीं चाहता बहन ने कहा हर वर्ष इस दिन आप मेरे घर आकर भोजन करें। मेरी तरह जो भी बहन अपने भाई को स्नेह से बुलाए स्नेह से सत्कार करें । उसे आप सजाओं से मुक्त करें। यमराज ने तथास्तु कहा और यमुना को वस्त्र आभूषण देकर वापस लौट आए। हमने भक्ति मार्ग में भगवान को कहा त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, भावार्थ यह है कि भगवान को माता-पिता तो माना ही सखा और भाई भी माना। एक समय था जब हम आत्माएं और बंधु रूप परमात्मा इकट्ठे एक ही घर परमधाम में रहते थे। परमात्मा पिता का ही दूसरा नाम यमराज भी है। यम का एक अर्थ यह भी है कि वह आत्माओं के कर्मों का हिसाब किताब करते हैं और दूसरा अर्थ नियम संयम का ज्ञान देते हैं। दोनों ही कर्तव्य परमात्मा के हैं। आधा कल्प के बाद द्वापर युग से हम आत्माएं अपने पिता परमात्मा को सभी रूपों में, भाई रूप में भी याद करती आई हैं और पृथ्वी लोक में आ पधारने का निमंत्रण देती आई है। परंतु वह समय भक्ति काल का होता है ।परमात्मा पिता के धरती पर अवतरण का नहीं। कलयुग के अंत में जब पाप की अति हो जाती है ।

तब वे साधारण मानवीय तन का आधार ले अवतरित हो जाते हैं। आधा कल्प की पुकार का फल परमात्म अवतरण “के रूप में पाकर हम आत्मायें धन्य हो जाती हैं। हम धरती पर अवतरित बंधु रूप परमात्मा को दिल में समाकर स्नेह से भोग लगाती है। भगवान हमारे इस स्नेह को देख वरदानों से भरपूर कर देते हैं। और कहते हैं जो आत्मायें धरती पर अवतरित मुझ परमात्मा को पहचान कर सत्कार पूर्व आतिथ्य करेंगी। मेरी श्रीमत पर चलेंगी। उन्हें में सजाओं से मुक्त कर दूंगा। परमपिता परमात्मा को भाई मानकर चलना ही सदा सुखी रहना है । कभी बहन को किसी प्रकार की परेशानी का सामने नहीं करना पड़ेगा। इस प्रकार यह त्यौहार परमात्मा के साथ बन्धु का नाता जोड़ने और निभाने का यादगार है ।

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