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वर्षों से चल रहा रेशम केंद्र उजड़ा,बना आवारा पशुओं का चारागाह

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देवेन्द्र तिवारी सांची रायसेन

वैसे तो इस स्थल को हरा-भरा बनाकर इस स्थल के अनुरूप ढालने के प्रयास आजादी के बाद से किये जाते रहे । परन्तु धीरे-धीरे सरकारों की नजर से ओझल होते ही इनके बदहाली के दौर शुरू हो गये जिससे वर्षों से संचालित उद्यान हो अथवा रेशमी कीड़े पलने वाले केंद्र बर्बादी की कगार पर पहुंच गए।
जानकारी के अनुसार इस विश्व विख्यात पर्यटक स्थल को हरा-भरा बनाये रखने सरकारों ने शासकीय उद्यान के रूप में लगभग 11 एकड़ भूमि पर विभिन्न फलदार अथवा छाया दार पौधे रोपित कर न केवल इस स्थल को शुद्ध आक्सीजन मुहैया कराई बल्कि यहां के फल देश भर में विख्यात भी हुए परन्तु इस स्थल के उद्यान को सुंदरता के नाम पर तथा विकास के नाम पर आधा उद्यान पर्यटन विकास निगम के पाले में पहुंच गया जिससे नगर में मात्र आधे सरकारी उद्यान को ही अस्तित्व में रहना पड़ा जिससे लोगों के साथ ही इस स्थल पर आने जाने वाले पर्यटकों को भी शुद्ध आक्सीजन मिलना थम गई । हालांकि इस उद्यान को सुरक्षित रखने आवास भी उठी परन्तु सरकार के आगे वह आवाज भी दब कर रह गई । इस प्रकार अब नगर का एक मात्र रेशम केंद्र से विख्यात सरकारों ने आजादी के बाद इस स्थल पर अस्तित्व में लाया गया इस रेशम केंद्र की बेशकीमती भूमि पर शहतूत के पौधे रोपित कर इस केंद्र पर रेशमी कीड़े पालने एवं उसके लावे से रेशम तैयार करने का सिलसिला बरसों से चलता रहा तथा इस रेशम केंद्र पर गतिविधियों की जानकारी की उत्सुकता अनेक विशिष्ट अतिविशिष्ट व्यक्तियों के अलावा देश विदेश के पर्यटक भी लेते देखे जाते रहे परन्तु इस रेशम केंद्र पर भी बुरी नजर पड़ते ही उजड़ गया । बताया जाता है इस रेशम केंद्र का सभी ताम-झाम विभाग द्वारा समेटा जा चुका है तथा यहां सरकार की लाखों करोड़ों की लागत से निर्मित भवनों को भी भगवान भरोसे छोड़ बर्बाद करने की योजना बना ली गई हालांकि इस रेशम केंद्र पर सरकार की कौन सी योजना अस्तित्व में लाई जा रही है किसी को नहीं पता तथा बताया तो यहां तक जाता है कि रेशम केंद्र का विभाग भी अपना ताम-झाम गोपनीयता के दायरे में रहकर चंपत हो गया इसकी खबर नगर वासियों को नहीं लग सकी अब नगर के रेशम केंद्र के हालात बद से बद्तर बन गए हैं तथा न ही यहां कोई कर्मचारी न ही कोई जिम्मेदार ही दिखाई पड़ता है तथा पूरी तरह उजड़ा हुआ दिखाई दे रहा है यहां तक कि इस केंद्र को आवारा पशुओं ने अपना चारागाह बना डाला तथा शहतूत के पौधे रोपित करने में सरकार की लाखों रुपए की राशि भी स्वाहा हो कर रह गई तथा यहां बेशकीमती जमीन तो बर्बाद हो ही रही है बल्कि यहां रेशम केंद्र के अस्तित्व में रहते हुए ट्यूबवेल जैसे अन्य साज सामान भी बर्बादी की भेंट चढ़ चुके हैं हालांकि इस रेशम केंद्र की उजड़ने एवं बर्बादी की वजह न तो किसी के पास है न ही नगर वासियों को ही इसकी जानकारी हो सकी है बहरहाल धीरे धीरे नगर की हरियाली एवं वर्षों से अस्तित्व में लाई गई योजनाओं को पलीता लगता दिखाई दे रहा है। यहां तक कि इस केंद्र के बड़े बड़े वृक्ष भी कटाई की जद में आ चुके हैं तथा आड़े दिखाई दे रहे हैं ।

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