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फिल्मी कहानियों जैसे रंग दिखाती रही है ग्वालियर की राजनीति

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ग्वालियर। ग्वालियर लोकसभा सीट खुद में समृद्ध ऐतिहासिक विरासत तो समेटे ही है, यहां की राजनीति फिल्मी कहानियों जैसे रंग भी दिखाती रही है। पहले लोकसभा चुनाव से अभी तक की राजनीति ड्रामा (नाटकीयता), ट्रेजेडी (दुख भरी घटनाएं) और उठापटक से होते हुए आगे बढ़ रही है। यहां की राजनीति की पुस्तक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का अध्याय मिलता है तो राजा-महाराजाओं का राजपाट छिनने के बाद शक्ति केंद्र बने रहने की जद्दोजहद भी।

देश के सबसे सशक्त दल की नींव पड़ने से लेकर ग्वालियर राजघराने की राजमाता का इकलौते बेटे से विरक्ति का दुखद प्रसंग भी यहां है। इस धरती पर जन्मे हिंदी प्रेमी, कवि हृदय स्व. अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने और पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में यह लोकसभा क्षेत्र कलंकित भी हुआ। अभी तक इस सीट पर उपचुनाव मिलाकर कुल 19 बार चुनाव हुए जिनमें से नौ बार भाजपा या उसकी पूर्ववर्ती जनता पार्टी और जनसंघ जीती है वहीं आठ बार कांग्रेस। दो बार अन्य दल भी जीते।

इस सीट पर महल की राजनीति का प्रभाव कितना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आठ बार तो सिंधिया उपनाम (विजयाराजे, माधवराव और यशोधरा राजे) वाला प्रत्याशी ही मैदान में उतरा और आसानी से जीता। पांच चुनाव ऐसे रहे जहां महल समर्थित प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में सिंधिया परिवार का दखल साफ नजर आता है। एक समय तो कहा जाने लगा था कि महल से जो नाम जारी हो जाए उसकी जीत तय मानिए।

नाटकीयताः जब राजीव गांधी ने अंतिम क्षणों में अटलजी के सामने उतार दिया माधवराव को

वर्ष 1984 की बात है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव हो रहे थे। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरने से यहां भाजपा की जीत तय मानी जा रही थी। इसके दो कारण थे, एक तो वह खुद ग्वालियर के थे दूसरा उन्हें पार्टी की दिग्गज नेता राजमाता विजयराजे सिंधिया का समर्थन हासिल था। स्व. माधवराव सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे।

नामांकन भरने के अंतिम दिन माधवराव से स्व. राजीव गांधी ने कहा कि आप ग्वालियर से अटलजी के खिलाफ लड़ेंगे। माधवराव अंतिम क्षणों में ग्वालियर पहुंचे और पर्चा दाखिल कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था कि वह किसी अन्य सीट से नामांकन भरें। इस चुनाव में राजमाता धर्मसंकट में रहीं। एक ओर पुत्र था तो दूसरी ओर पार्टी। अटल बिहारी वाजपेयी पराजित हुए।

ट्रेजडी – सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने पर कलंकित हुए थे सांसद

वर्ष 2005 में भारतीय राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया था जब एक टीवी चैनल ने 11 सांसदों का स्टिंग आपरेशन कर रुपये देकर संसद में सवाल पूछने के लिए राजी कर लिया। इनमें ग्वालियर से उस वक्त के कांग्रेसी सांसद रामसेवक बाबूजी भी शामिल थे। बाबूजी ने पचास हजार रुपये लिए थे। उनकी सदस्यता रद हो गई। इसके बाद इस सीट पर कांग्रेस कभी नहीं जीती।

उठापटकः जब छोड़नी पड़ी थी माधवराव को सीट

लगातार चुनाव जीत रहे माधवराव को उस वक्त तगड़ी चुनौती मिलनी शुरू हुई जब भाजपा के जयभान सिंह पवैया एक के बाद एक चुनाव में उनकी जीत का अंतर कम करते जा रहे थे। वर्ष 1984 में जहां माधवराव सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी को पौने दो लाख मतों से हराया था वहीं वर्ष 1998 में पवैया के सामने यह जीत का अंतर महज 26 हजार पर पहुंच गया। हार से आशंकित माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1999 का चुनाव ग्वालियर के बजाय गुना से लड़ना पसंद किया।

राजनीति ने इकलौते बेटे को मां से किया दूर

सिंधिया राजघराने की राजनीति में एंट्री कराने का श्रेय राजमाता विजयाराजे सिंधिया को है। वे सबसे पहले कांग्रेस के टिकट पर 1962 ही यहां से जीतीं। उसके बाद वह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में एक रहीं। सिंधिया परिवार पर प्रकाशित रशीद किदवई और वीर सांघवी की किताबों में जिक्र मिलता है कि राजनीतिक मतभिन्नता ने इकलौते बेटे को मां से दूर कर दिया। दरअसल लंदन से पढ़कर जब माधवराव लौटे तो राजमाता चाहती थीं कि वह जनसंघ की सदस्यता लें। माधवराव ने ऐसा किया भी लेकिन बहुत जल्दी उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। यह बात राजमाता को नागवार गुजरी। राजनीतिक विरोध उस वक्त चरम पर पहुंच गया जब माधवराव ने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ पर्चा भर दिया। राजमाता ने इसको बहुत बुरा माना और खुद को अपमानित महसूस किया।

महात्मा गांधी के हत्या के आरोपित बने पहले सांसद

वर्ष 1952 में यहां से पहला चुनाव जीतने वाले वीजी देशपांडे उसी हिंदू महासभा के प्रत्याशी थे जिससे महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे जुड़ा था। गांधी की हत्या के तीन दिन पहले भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के लिए गांधी को जिम्मेदार ठहराने वाले वीजी देशपांडे ने उनकी जमकर आलोचना की थी। हत्या की साजिश रचने के शक में देशपांडे को गिरफ्तार भी किया गया था।

ऐसी ही सीट की संरचना

ग्वालियर जिले की सभी छह विधानसभा सीटों के अलावा शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीट पोहरी और करैरा भी इस लोकसभा सीट में शामिल हैं।

चुनाव वर्ष विजेता पार्टी इन्हें हराया

 

    • 1952 वीजी देशपांडे हिंदू महासभा वैदेही चरण पाराशर (कांग्रेस)

 

    • 1952* नारायण भास्कर खरे हिंदू महासभा

 

    • 1957 सूरज प्रसाद एवं राधाचरण (दो सीट) कांग्रेस मुरलीधर सिंह (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी)

 

    • 1962 विजया राजे सिंधिया (कांग्रेस) मानिकचंद (जनसंघ)

 

    • 1967 राम अवतार शर्मा (भारतीय जनसंघ) वैदेही चरण पाराशर (कांग्रेस)

 

    • 1971 अटल बिहारी वाजपेयी (भारतीय जनसंघ) गौतम शर्मा (कांग्रेस)

 

    • 1977 नारायण शेजवलकर (भारतीय लोकदल) सुमेर सिंह (कांग्रेस)

 

    • 1980 नारायण शेजवलकर (जनता पार्टी) राजेंद्र सिंह कांग्रेस (आई) के

 

    • 1984 माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) अटलबिहारी बाजपेयी (भाजपा)

 

    • 1989 माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) शीतला सहाय (भाजपा)

 

    • 1991 माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) नारायण शेजवलकर (भाजपा)

 

    • 1996 माधवराव सिंधिया (मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस) फूलसिंह बरैया (बीएसपी)

 

    • 1998 माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) जयभान सिंह पवैया (भाजपा)

 

    • 1999 जयभान सिंह पवैया (भाजपा) चंद्रमोहन नागौरी (कांग्रेस)

 

    • 2004 रामसेवक सिंह (कांग्रेस) जयभान सिंह पवैया (भाजपा)

 

    • 2007* यशोधरा राजे सिंधिया (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)

 

    • 2009 यशोधरा राजे सिंधिया (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)

 

    • 2014 नरेंद्र सिंह तोमर (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)

 

    • 2019 विवेक शेजवलकर (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)

 

*उपचुनाव

    • कुल मतदाता- 21, 09,989

 

    • पुरुष मतदाता- 11,19,414

 

    • महिला मतदाता- 9,90,509

 

  • थर्ड जेंडर- 66
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