–हित, मित और मिष्ठ वचन बोलना चाहिये
सुरेन्द्र जैन धरसीवा रायपुर
महातपस्वी दिगंबर जैन आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महामुनिराज ने शनिवार को डोंगरगढ़ स्थित तीर्थ क्षेत्र चन्द्रगिरि में अपने अनमोल वचन में कहा कि मनुष्य की जैंसी संगति होती है बेंसी उसकी मति होती है और जैंसी उसकी मति होती है बेंसी उसकी गति होती है आचार्यश्री ने हित, मित और मिष्ठ वचन बोलने की बात धर्म सभा मे उपस्थित श्रद्धालुओ से कही।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आचार्यों द्वारा शास्त्रों के माध्यम से हमें मोक्षमार्ग के बारे में एवं उसमे चलने कि विधि और उसे पाने के लिये अथक पुरुषार्थ के बारे में बताया है | इस मार्ग में दूरी तो बहुत है परन्तु लक्ष्य प्राप्ति के लिये उत्साह पूर्वक एक – एक कदम उसी ओर चल रहे हैं और कभी न कभी तो लक्ष्य प्राप्त हो ही जायेगा | सत्मार्ग में चलने के साथ – साथ सत्संगति कि भी आवश्यकता पड़ती है | जैसी होगी संगती वैसी होगी गति | हमें गुणी जनों कि संगती में तब तक रहना चाहिये जब तक प्रभु से साक्क्षात्कर न हो जाये | हमें आर्यों कि संगती करनी चाहिये क्योंकि वे गुणी होने के साथ साथ दूसरों के गुणों को भी उद्घाटित कर देते है |
आर्य हमेशा आर्य खंड में ही होते हैं | हमें हमेशा हित, मित और मिष्ठ वचन बोलना चाहिये | हित से आशय ऐसे वचन बोलना जिससे स्वयं का और दूसरों का भी हित हो और किसी का अहित ना हो | मित से आशय जितना आवश्यक हो उतना बोलना है ज्यादा नहीं बोलना चाहिये | मिष्ठ से मिठाई जो आप लोगों को बहुत पसंद होती है | यहाँ इससे आशय है कि हमें हमेशा प्रिय एवं मीठा बोलना चाहिये जिससे बोलने वाले को और उसे सुनने वाले दोनों को अच्छा लगे | जिन देव जिन्होंने स्वयं को जीत लिया अपनी इन्द्रियों को जीता और मोक्ष मार्ग में चलकर मोक्ष को प्राप्त किया | हमें पूर्वाचार्यों द्वारा रचित पुराण ग्रंथों का अध्ययन व स्वाध्याय प्रतिदिन करना चाहिये | चार अनुयोगों में से कम से कम प्रथमानुयोग को जरुर पढना चाहिये जिसमे महापुरुषों के जीवन चरित्र के बारे में उल्लेख किया गया है | जिसे पढ़कर आपको पता चलेगा कि कितनी विषम परिश्तिथियाँ होने के बाद भी नियम, संयम को नहीं छोड़ा और सब कुछ अपना कर्म फल मानकर जीवन पर्यन्त सहन करते रहे | ऐसे ही संघर्षपूर्ण जीवन यापन करने के बाद ही महापुरुष बन पाते हैं | महापुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़कर हमारा उत्साह हमेशा सत्मार्ग कि ओर बढ़ता है और ऐसे ही उत्साह पूर्वक अपने लक्ष्य कि ओर चलने से लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त किया जा सकता है |