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सौ प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाएगी उज्जैन से शुरू होने वाली पंचक्रोशी यात्रा

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उज्जैन। धर्मधानी उज्जैन में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर 15 अप्रैल से पंचक्रोशी यात्रा का शुभारंभ होगा। देशभर से आने वाले श्रद्धालु पांच दिन तक वैशाख की तपती दोपहर में 118 किलो मीटर पद यात्रा करते हुए नगर के चार द्वार पर स्थित चार द्वारपालों का दर्शन पूजन करेंगे। धर्मशास्त्र के जानकारों के अनुसार इस बार पंचक्रोशी यात्रा के दौरान पांच अलग-अलग नक्षत्र विद्यमान रहेंगे। इनकी साक्षी में की गई धर्मयात्रा व आराधना भौतिक जगत के सौ प्रकार के तापों (कष्टों) से मुक्ति दिलाएगी। यात्रा का समापन 20 अप्रैल गुरुवार को अमावस्या पर होगा।

पंचक्रोशी यात्रा पांच नक्षत्रों की होगी साक्षी

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार किसी भी धार्मिक यात्रा अथवा धर्म अनुष्ठान में शुभफल की प्राप्ति के लिए पंचांग के पांच अंग तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण का विशेष महत्व रहता है। इसलिए किसी भी यात्रा, धार्मिक कार्य व अनुष्ठान से पहले मुहूर्त देखा जाता है। पंचक्रोशी यात्रा वैशाख की तपती दोपहर में अनेक कष्टों को सहते हुए पुण्य अर्जन का बड़ा माध्यम है। इस बार पंचक्रोशी में पांच नक्षत्रों की साक्षी के इसके शुभ फल में वृद्धि करेगी।

श्रवण व धनिष्ठा नक्षत्र में यात्रा का शुभारंभ

पंचक के पांच नक्षत्र पंचगुणित फल प्रदान करते हैं। कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि से अमावस्या पर्यंत यह पंचक प्रबल माना जाता है। किंतु जब इस पंचक के उद्देश्य धर्म, अध्यात्म, संस्कृति से जोड़ते हैं, तो उतना ही शुभ फल प्रदान करते हैं। इस दृष्टि से पंचक नक्षत्र श्रवण/धनिष्ठा में पंचक्रोशी यात्रा का आरंभ हो रहा है। यह पांच गुना शुभ फल प्रदान करेगा। इसके बाद क्रमशः धनिष्ठा, शतभिषा(शतत्तार का), पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद रेवती के पास नक्षत्र पंच की श्रेणी में आते हैं।

गुरुवार के दिन अमावस्या शुभ, इसी दिन पंचक्रोशी का समापन

पंचक्रोशी यात्रा के समापन वाले दिन गुरुवार का दिन और अमावस्या तिथि रहेगी। शास्त्रीय मान्यता अनुसार गुरुवार के दिन आने वाली अमावस्या शुभ फल प्रदान करती है। संयोग से उसी दिन पंचक्रोशी यात्रा का समापन भी हो रहा है यह उत्तम वृष्टि के रूप में दिखाई देगा।

नागचंडेश्वर से बल लेकर शुरू करेंगे यात्रा

उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा का शुभारंभ पटनी बजार स्थित श्री नागचंडेश्वर मंदिर में भगवान से बल लेकर शुरू किया जाता है। अमावस्या पर यात्रा पूर्ण होने के बाद श्रद्धालु पुन: भगवान के दर्शन करते हैं तथा उन्हे मिट्टी के घोड़े अर्पित कर बल लौटाते हैं। इसके बाद गंतव्य की ओर रवाना हो जाते हैं।

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