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अखंड संकल्प एवं सामर्थ्य के प्रतिमान – कुलवाणी रत्न स्व. श्री श्याम बाबू वर्मा

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रामभरोसे विश्वकर्मा मण्डीदीप रायसेन

“जयंती विशेष श्रद्धांजलि”

पुण्य धरा भारत माता सदैव ही वीरों,पराक्रमियों, महापुरुषों,आदर्शों,की भूमि रही है । हमारी मातृभूमि ने सदैव ही अनेक बहुमूल्य रत्नों को जन्म दिया है,जिन्होंने स्व जीवन को ही राष्ट्र निर्माण में समर्पित कर ,तेरा तुझको अर्पण इस भाव को चरितार्थ कर दिया ।ऐसे ही आदर्श कुलवाणी रत्न स्व.श्री श्याम बाबू वर्मा जी की आज जयंती है।
आपका जन्म तत्कालीन धौलपुर रियासत (राजस्थान) के सवाईमाधौपुर जिले की बाढ़ी तहसील के ,ग्राम चिलाचौन्ध में कुलश्रेष्ठ परिवार में ,पिता श्री हरिविलास जी कुलश्रेष्ठ,एवं माता श्रीमती द्रौपदी देवी के घर 8 दिसम्बर 1932 को हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों का आपके जीवन पर व्यापक प्रभाव रहा,पिता संघ के प्रारंभिक दौर के स्वयंसेवक थे,अतः बाल पन से ही,राष्ट्रवादी विचारधार का पोषण आपके ह्रदय में पल्लवित होता रहा ।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा धौलपुर में ही संपन्न हुई,माध्यमिक शिक्षा हेतु ,मुरैना एवं ग्वालियर में प्रस्थान किया। यह दौर स्वतंत्रता प्राप्ति के निर्णायक संघर्ष का दौर था,अंतः छात्र जीवन के उत्साह व् राष्ट्रवाद के भाव से परिपूर्ण आप स्वतंत्रता के इस महासमर में ग्वालियर में सक्रिय रूप से सहभागी हो गए,परिणाम रहा की अंग्रेज शाशन द्वारा आपके विरुद्ध निरुद्ध करने की कार्यवाही की गयी।किन्तु यह अत्याचार भी आपकी राष्ट्रवादी सोच पर अंकुश न लगा सका।
ग्वालियर से ही आपने छात्र राजनीति में प्रवेश किया ,अपनी महाविद्यालयिन शिक्षा की अवधि से ही भारतीय राजनीति के अजातशत्रु पं. अटल बिहारी बाजपेयी आपके परम मित्र रहे । आप दोनों के प्रभावशाली राजनैतिक गुण का ही परिणाम था कि,राजमाता विजयराजे सिंधिया द्वारा आप दोनों को आजीवन पुत्रवत स्नेह प्राप्त होता रहा।
इसके पश्चात आप शिक्षाशास्त्र में स्नातक हेतु विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में रहे ,साथ ही इसी अवधि में ” जीयोग्राफिकेल डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडिया” ,द्वारा आयोजित प्रतिष्टित प्रतियोगिता में उस समय अपने क्षेत्र से चयन होने वाले आप प्रथम व्यक्ति थे,एवं तत्कालीन बॉम्बे(मुम्बई),से IGD की मानद उपाधि प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ।
इसी अवधि में आपके जीवन में आपकी जीवनसंगिनी श्रीमती शांतिदेवी का प्रवेश हुआ।एवं विवाह के तत्काल पश्चात् आपको अध्यन हेतु बॉम्बे जाना पड़ा।
शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वर्ष 1951 में शासकीय शिक्षक के रूप में ग्राम खड़िया ,जिला मुरेना में पदस्थ हुए।इस अवधि में भी शासकीय सेवा के साथ साथ,संघ के विभिन्न दायित्वों में रहते हुए राष्ट्रवादी कार्य चलता रहा।
संघ कार्य निर्वहन में पूर्ण निष्ठा को देख कर राज्य शाशन द्वारा ,समय-समय पर आपका स्थानांतरण विभिन्न स्थानों पर हुआ।किन्तु इसे भी अवसर मान कर जहाँ आपके चरण पड़े संघ कार्य का प्रस्फुटन हो गया।ऐसे प्रमुख स्थानों में, भोपालपटनम कुक्षी,दसई, अम्बागढ़ चौकी ,कोरबा,उरबा,बस्तर,बैहर अदि प्रमुख रहे।संपूर्ण प्रदेश उत्तर से दक्षिण ,पूर्व से पश्चिम आपके द्वारा परिपूर्ण हुआ था।
वर्ष 1970 में संघ कार्यालय इंदौर में ,श्री गुरुजी के एक आदेश पर आपके द्वारा “मध्यप्रदेश शिक्षक संघ” की स्थापना की गई।जो आज भी शिक्षकों के हित हेतु संपूर्ण प्रदेश में कार्य करता है।
आपके द्वारा अपने जीवन में विभिन्न देशों की यात्राएं भी की गईं थी। उनके संस्मरण भी प्रेरणास्पद रहे।जिसमे मॉरिशस का 12 वां सार्वदेशिक आर्य महा सम्मलेन अविस्मरणीय रहा।यहाँ यह इस कारण भी महत्वपूर्ण था,की आपके इस प्रवास की अवधि में आपके प्रयास से मॉरीशस में संघ का पथ संचलन सम्पन्न हो सका था। एवं मॉरीशस में ही 13 वें ज्योतिर्लिङ्ग दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साथ ही यहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मॉरीशस में प्रथम 21 दिवसीय शिविर भी संपन्न हुआ था।
वर्ष 1975 में जब राष्ट्रीय आपातकाल (मीसा) की घोषणा हुई,तब आप जैसे राष्ट्रवादियों को निरुद्ध कर दिया गया।किन्तु यह बेड़ियां भी राष्ट्रवाद की ज्वाला की बुझा न सकीं व् 21 माह पश्चात् पुनः सूर्य सम तेज के साथ आप राष्ट्र कार्य में सक्रिय हो गए ।
जीवन की गतिशीलता की अवधि में ,बालाघाट जिले की बैहर तहसील की मनोरमता से प्रभावित होकर आपके द्वाराइसे अपनी साधना स्थली हेतु उपर्युक्त समझा गया।
बैहर में जब आपके निवास की सुचना राजमाता विजयाराजे सिंधिया को प्राप्त हुई तब, उन्ही के आदेश पर बालाघाट जिले में जनसंघ के दिए को प्रज्वलित करने आपके द्वारा ही ,स्व.डॉ सुधन्वा सिंह नेताम जी को चयन कर विजयी दीप के रूप में जनसंघ को समर्पित किया गया ,जिसके परिणाम स्वरुप बालाघाट जिले में ,पूर्ववर्ती जनसंघ,एवं वर्त्तमान ,भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ।
संघ के प्रति समर्पण का कर्तव्य बोध इतना प्रबल था,की जहाँ रहे ,वहां संघ कार्य की स्थापना, एवं संघ कार्य के प्रसार में प्राण-पण से जुटे रहे ।परिणाम स्वरुप,बैहर,भोपालपटनम कुक्षी,आदि क्षेत्रों में संघ कार्य की नींव पड़ी।
श्री गुरुजी,एवं आपके मित्र श्री कुप्प.सी.सुदर्शन जी सदैव आपका संबोधन गृहस्थ प्रचारक के रूप में ही करते थे।
आपके राजनैतिक मित्रों में ,पं.अटल बिहारी वाजपेयी,डॉ.लालकृष्ण आडवाणी, उड़ीसा के श्री बीजू पटनायक,दिल्ली के साहब सिंह जी वर्मा,मध्यप्रदेश cm, श्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा,श्री कैलाश जोशी,श्री सुंदरलाल पटवा,श्री विक्रम वर्मा,श्री मेघराज जी जैन,श्री श्रीगोपाल जी व्यास आदि रहे । विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गिर्राज किशोर (जो आपके रिश्ते में साले थे )।आडवाणी जी तो आज भी समय समय पर संस्मरण सार्वजनिक मंचों पर भी प्रस्तुत करते हैं।
6 फरवरी 1998 को अस्वस्थता के कारण आपका निधन हुआ ।किन्तु आज भी आपके द्वारा स्थापित आदर्श अमर ही रहे।
मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के पितृ पुरुष का यह ध्येय वाक्य अमर हो गया,,
“शिक्षा व्यवसाय नहीं,यह यज्ञ है,राष्ट्र निर्माण हेतु स्वयं की आहुति का”

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